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भुक्कड़-भुरता
६०२ भुक्कड़-वि० दे० 'भुक्खड़'।
मोर नेवला ।-ग-राज-पु० शेषनाग ।-च्छाया-स्त्री० भुक्खड़-वि० भूखा, पेटू; जिसके पास कुछ न हो, कंगाल।। निरापद् आश्रय । -दंड-पु० दंड-रूप हाथ; लंबा हाथ भुक्त-वि० [सं०] खाया हुआ; भोगा हुआ; जो भोगा जा |
बाहमें पहननेका तीन फेरेका एक गहना। -दल-पु० रहा हो। पु० भोजन (सं०)। -पूर्व-वि० जो पहले हाथ ।-पाश-पु० गलबाही । -बंद-पु० [हिं०] बाजूभोगा जा चुका हो। -भोग-वि० जो भोग चुका हो । बंद |-बंध-पु० केयूर ।-बंधन-पु० भुजपाश, बाहोंके जो भोगा गया हो। -भोगी-वि० [हिं०] जो किसी भीतर भर लेना। -बल-पु. बाहुबल । -बाथ*चीजका दुःख-सुख उठा चुका हो, कृतभोग। -शेष-पु० पु० अँकवार । -मध्य-पु० कोड। -मूल-पु० कंधा । खानेसे बचा हुआ अन्नादि, उच्छिष्ट ।
-यष्टि-स्त्री० भुजदंड। -लता-स्त्री० लता जैसी भुक्ति-स्त्री० [सं०] भोजन; भोग; आहार; कब्जा, दखल; कोमल कमनीय बाँह । -वीर्य-पु० भुजबल । ग्रहकी दैनिक गति सीमा। -पान-पु० खानेका बर- भुजगांतक-पु० [सं०] गरुडा मोर नेवला । तन, थाल आदि ।
भुजगाशन-पु० [सं०] मोर, गरुड़ । भुक्तोच्छिष्ट-पु० [सं०] जूठन ।
भुजगी-स्त्री० [सं०] सर्पिणी; अश्लेषा नक्षत्र । भुखमरा-वि० भूखों मरनेवाला, भुक्खड़ ।
भुजगेंद्र, भुजगेश-पु० [सं०] शेषनाग, वासुकि । भुखमरी-स्त्री० भूखों मरनेकी स्थिति पोषणके अभावमें भुजपात*-पु० दे० 'भूर्जपत्र'। क्षीण होना।
भुजरिया*-स्त्री० जरई। भुखाना-अ० क्रि० क्षुधित होना।
भुजवा -पु० भड़ जा । भुखालू*-वि० भूखा।
भुजा-स्त्री० [सं०] बाहु, भुजा; सर्पकी कुंडली (आर्म) भुगत-स्त्री* बिसात; * दे० 'भुक्ति' ।
कोण वनानेवाली दो सरल रेखाओंमेंसे कोई भी एक । भुगतना-स० क्रि० भोगना, सहना । अ० क्रि० बीतना, -मूल-पु० कंधा, बाहुमूल । मु०-उठाकर कहना,पूरा होना। मु० भुगत लेना-निबट लेना, समझ | टेकना-प्रतिज्ञा करना। लेना।
भुजाली-स्त्री० एक तरहका टेढ़ा छुरा, खुखरी। भुगतान-पु० भुगतानेकी क्रिया, कीमत या देनका चुकता भुजिया-पु० उबाले हुए धानका चावल । किया जाना; गाहकको खरीदा हुआ माल देना (डेलि-भुजेना-पु० चबैना। वरी); निबटारा। -तुला-स्त्री० (बैलेंस ऑफ पेमेंट)। भुजीना*-पु० भुना हुआ अन्न; भुनाईमें दिया जानेहिसाबकी वे मदें (व्यापारकी वस्तुएँ, पूँजी, सूद, बीमाशुल्क, जहाजका किराया आदि) जिनके संबंधमें एक भुट्टा-पु० मक्केकी हरी बाल; जुआर या बाजरेकी बाल । देशको दूसरे देशोंसे कुछ पावना हो या दूसरे देशोंको भुतनी-स्त्री० स्त्री प्रेत; दे० 'भूतिनी'। देना हो।
भुनगा-पु० उड़नेवाला छोटा कीड़ा, फतिंगा; तुच्छ, भुगताना-स० क्रि० चुकाना, अदा करना; समाप्त करना; नगण्य प्राणी। बिताना; पहुँचाना (मेरी सारी बातें वहाँ भुगता दी); भनगी-स्त्री० ईखकी फसलको लगनेवाला एक कीड़ा । भुगतनेके लिए बाध्य करना।
भुनना-अ० क्रि० भूना जाना, सिकना; रुपये आदिका भुगाना-सक्रि० भोग कराना, भोगवाना ।
छोटे सिक्कों में बदला जाना । भुगुत-स्त्री० बिसात; * दे० 'भुक्ति' ।
भुनभुनाना-अ० क्रि० 'भुन-भुन' करना, अस्पष्ट स्वरमें भुगुति-स्त्री० दे० 'भुक्ति'-'चला भुगुति माँगै कहँ कुढ़न प्रकट करना। साधि कथा तप जोग'-५०।
भुनवाई, भुनाई-स्त्री० भुनानेके बदलेमें दी जानेवाली भुग्गा-वि० बुद्धू , मूर्ख ।
रकम, भाँज; भूननेकी उजरत । भुच्च, भुच्चड़-वि० मूर्ख, जड़मति ।
भुनाना-सक्रि० नोटको रुपयों या किसी बड़े सिक्केको भुजंग-पु० [सं०] साँप; जार; पति; सीसा; अश्लेषा छोटे सिक्कोंमें बदलवाना; भूननेका काम दूसरेसे कराना। नक्षत्र, आठकी संख्या विदूषक । -घातिनी-स्त्री० भबि*-स्त्री० दे० 'भूमि' । काकोली। -भक(ज)-पु० गरुड; मोर। -भोगी-भूमिया-पु० दे० 'भूमिया' (जमींदार)। (गिन)-पु० मोर, गरुड । -भोजी(जिन)-पु० भुरकना-सक्रि०छिड़कना, बुरकना । अ० क्रि० भुरभुरा मोर, गरुड; एक तरहका साँप। -शत्रु-पु० गरुड । होना; * भूलना, बहक जाना । भुजंगम-पु० [सं०] साँप: सीसा; राहु, आठकी संख्या। भुरकस-पु० दे० 'भुरकुस' । भुजंगिनी-स्त्री० [सं०] सर्पिणी; एक छंद ।
भुरकाना -स० क्रि० भुरभुराना, छिड़कना; * भुलावा भुजंगी-स्त्री० [सं०] सर्पिणी, नागिन; एक वर्णवृत्त । देना। भुजंगेश-पु० [सं०] दे० 'भुजगेश'।
भुरकुन-पु० चूर्ण। भुज-पु० [सं०] बाहु; बाजू; हाथ; हाथीकी सुंडा डाली; भुरकुस-पु० चूर्ण; वह वस्तु जो चूर-चूर हो गयी हो। रेखागणितके किसी क्षेत्रकी सीमारेखा, बाहु; त्रिभुजका | मु०-निकलना-चूर-चूर होना; पीटकर भरता बना आधार; छायाका मूल । -कोटर-पु० काँख । -ग- दिया जाना। पु० साँप ।-ग-दारण,-ग-भोजी(जिन)-पु० गरुडा | भुरता-पु० दे० 'भरता'।
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