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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुरभुरा-भू भुरभुरा-वि० चूर्णरूप; जो झट टूटकर चूर्णरूप हो जाय । जमीन -हट-स्त्री० भुरभुरापन । मूंसना-अ० क्रि० पूँकना । भुरवना*-स० क्रि० भुलावा देना, बहकाना । भू-स्त्री० [सं०] भूमि, धरती, जमीन; स्थानयज्ञाग्नि भुरसना*-अ० कि०, सक्रि० भुलसना । एकका संकेत; पदार्थ । वि० (समासांतमें ). "से उत्पन्न भुरहरा*-पु० भोर, तड़का ( भुरहरी बेर - प्रातःकाल)। होनेवाला (स्वयंभू , मनोभू)। -कंप-पु. भूगर्भ में भुराई*-स्त्री० भोलापन । होनेवाली उथल-पुथलसे धरतीकी ऊपरी सतहका हिलना, भुराना*-अ० क्रि० भुलावे में आना । स० क्रि० भुलवाना, | भूचाल । -कंप-मापक,-कंप-सूचक यंत्र-पु० (साइजबहकाना; भूल जाना। मोमीटर, साइजमोग्राफ) भूकंपके धक्के, भूकंपके केंद्रकी भुरावना-अ० क्रि० स० क्रि० दे० 'भुराना। दूरी,प्रवेग आदि सूचित करनेवाला यंत्र ।-कंप-विज्ञानभु(रिका, भुर्भुरी-स्त्री० [सं०] एक तरहकी मिठाई । पु० (साइजमोलॉजी) भूकंपके कारणों तथा स्वरूप आदिका भुर्रा-वि० बहुत काला । पु० विशेष प्रकारसे बनायो विवेचन करनेवाला विज्ञान ।-कर्ण-पु० पृथ्वीका व्यास । हुई एक तरहकी चीनी। -कर्मी(मिन)-पु० (ग्राउंडस्टाफ) हवाई अड्डेके वे भुलक्कड़-वि० बहुत भूलनेवाला, विस्मरणशील । कर्मचारी जिन्हें उड़नेवाले विमानके साथ रहकर नहीं, भुलना -वि०विस्मरणशील । पु० एक तरहकी धास।। वरन् भूमिपर ही काम करना पड़ता है। -खंड-पु० भुलवाना-स० क्रि० भूलनेको प्रेरित करना; बहकाना; भूभाग।-गर्भ-पु०धरतीका भीतरी भाग ।-गर्भ-गृहभुलाना। पु० तहखाना । -गर्भ-विद्या-स्त्री० दे० 'भूगर्भशास्त्र' । भुलसना-अ० क्रि० स० क्रि० गरम राखमें झुलसना । -गर्भशास्त्र-पु. वह शास्त्र जिससे भूमिकी भीतरी भुलाना-स० क्रि० भूलना; दे० भुलवाना । अ० क्रि० बनावटका ज्ञान हो। -गृह,-गेह-पु० तहखाना । भुलावे में पड़ना; बहकना; विस्मरण होना। -गोल-पु०भूमंडल; भूगोलशास्त्र।-गोल-विद्या-स्त्री०, भुलावा-पु० बहकानेकी युक्ति, धोखा, चकमा । -गोल-शास्त्र-पु. पृथ्वीके बाह्य रूप, प्राकृतिक विभाग भुवंग*-पु० दे० 'भुजंग'।। आदिका ज्ञान करानेवाली विद्या या शास्त्र । -गोलकभुवंगम*-पु० दे० 'भुजंगम' । पु. भूमंडल। -चर-वि० स्थलचर । पु० स्थलचर प्राणी भुव-पु० [सं०] भुवोका अग्नि । * स्त्री० भूमि; भौं।। शिव । -चरी-स्त्री० योगकी एक मुद्रा। -चर्या, -पति-पु० राजा । -पाल*-पु० दे० 'भूपाल'। च्छाया-स्त्री०, धरतीकी छाया; अंधकार । -चालभुवन-पु० [सं०] जगत् , लोक (तीन या चौदह); जन, | पु० [हिं०] भूकंप । -छाया-स्त्री० (अंबा) सूर्यग्रहण प्राणी; आकाश; जल; समृद्धि; चौदहकी संख्या (संकेत)। या चंद्रग्रहणके समय सूर्य अथवा चंद्रमाके बिंबपर पड़ने-त्रय-पु० स्वर्ग, मर्त्य और पाताल । -पावनी-स्त्री० वाली छाया। -जंतु-पु० हाथी; एक तरहका घोंधा । गंगा । -भर्ता (त)-पु० जगत्का धारण-पोषण करने- -जंबु-पु० गेहूँ बनजामुन।-जात-पु० वृक्षा-डोलवाला। -माता (त)-स्त्री० दुर्गा। -मोहिनी-वि० पु०[हिं०] भूकंप।-तत्त्व-पु०धरतीकी बनावटका विज्ञान । स्त्री० जगत्को मोहनेवाली।-विदित-वि० जगत्प्रसिद्ध । -तत्त्व-विज्ञान-पु०,-तत्त्व-विद्या-स्त्री० भूगर्भशास्त्र । भुवनेश्वर-पु० [सं०] राजा शिव; उड़ीसाके अंतर्गत एक -तत्त्व-विद्-पु. भूगर्भशास्त्रका पंडित । -तल-पु. प्रसिद्ध तीर्थ, वहाँ स्थापित शिवलिंग । जमीनकी सतह, धरातल, भूपृष्ठ ।-ताली-स्त्री०भूपाटली; भुवनेश्वरी-स्त्री० [सं०]दस महाविद्याओंके अंतर्गत एक देवी। मुघली। -तुंबी-स्त्री० एक तरहकी ककड़ी। -तृणभुवनौका (कस्)-पु० [सं०] देवता । पु० रूसा नामकी घास । -दान-पु० घर, जमीन, खेत भुवर्लोक-पु० [सं०] अंतरिक्ष लोक । आदिका दान, भूमिहीन वर्गमें भूमिका वितरण करनेके भुवा-पु० घुआ; रुई। लिए चलाये गये आन्दोलनमें सहयोग करते हुए खेतों, भुवाल, भुवार*--पु० दे० 'भूपाल'। बाग-बगीचों आदिका दान करना। -दार-पु० सूअर । भुवि*-स्त्री० दे० 'भूमि'। -दृश्य-पु० (लैंडस्केप) भूमिका वह दृश्य जो किसी ओर भुशंडि-पु० [सं०] काकभुशुडि । स्त्री० एक अस्त्र । दृष्टि डालनेपर दूर-दूरतक दिखाई दे, किसी भूभागमें भुस-पु० भूसा। स्थित पेड़ों, पहाड़ों, नदियों आदिका दृश्य। -देव-पु० भुसी*-स्त्री० दे० 'भूसी' । ब्राह्मण ।-धन-पु० राजा ।--धर-पु० पहाड़ शेषनाग भुसुंड-स्त्री० सैंड। रस आदि बनाने के काम आनेवाला एक यंत्र; कृष्णशिव भुसुंडी* -पु० दे० 'भुशंडि' । सातकी संख्या। -धर-राज-पु० हिमालय । -नागभुसौरा-पु. भूसा रखनेका घर । पु० भूमिनाग, केंचुआ । -निब-पु० चिरायता। भुक्ना-अ० क्रि० कुत्तेका भौं-भौं करना; व्यर्थ बकना । । -नेता(त)-पु० राजा। -प-पु० राजा। -पटलअॅजना -स० क्रि० पकाना; सताना; * भोगना-'राज | पु० पृथ्वीकी ऊपरी सतह । -पति-पु० राजा; शिव; कि भूजब भरत पुर नृप कि जियहिं बिनु राम'-रामा । इंद्र। -पतित-वि० पृथ्वीपर (घायल आदि होकर) मूंजा -पु० भड़भूजा; भूना हुआ अन्न, चबैना। गिरा, पड़ा हुआ। -परिधि-स्त्री० पृथ्वीकी परिधि । भुंड-स्त्री० बालू मिली हुई भुरभुरी मिट्टी। -परिमाप-स्त्री. (लैंड सर्वे) भूमिके किसी टुकड़े या मँडरी-स्त्री० नाऊ, बारी आदिको माफी मिलनेवाली देश, राज्यादिकी भूमिकी नाप-जोख। -पवित्र-पु० For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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