________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
१३५
कथनी * - स्त्री० बात, कथन; बकवाद । कथनीय - वि० [सं०] कहने योग्य ।
www.kobatirth.org
कथम् - अ० [सं०] किस रूपमें; कैसे; कहाँसे ।
कथरी - स्त्री० चीथड़े जोड़कर बनाया हुआ बिछौना, गुदड़ी। कथांतर - पु० [सं०] दूसरी कथा; किसी कथाके अंतर्गत दूसरी गौण कथा |
कथा-स्त्री० [सं०] कहानी; कल्पित कहानी, हिकायत; वृत्तांत-वर्णन; चर्चा, जिक्र; हाल; रामायण-पुराणादिका अर्थसहित वाचन । -नायक - पु० कथाका प्रधान पात्र या आलंबन । - पीठ-पु० कथाका मुख्य भाग; कहानीकी प्रस्तावना । - प्रबंध - पु० कहानी ; ( कल्पित ) आख्या - यिका । - प्रसंग-पु० बातचीत का सिलसिला; कथावार्त्ता । - वस्तु - स्त्री० कथाका मूल रूप । - वार्त्ता - स्त्री० पुराणादिकी कथाओंकी चर्चा; अनेक प्रकारके प्रसंग | कथानक - पु० [सं०] छोटी कथा; कहानीका खुलासा । कथित - वि० [सं०] कहा हुआ, उक्त ।
कथोद्धात - पु० [सं०] रूपककी प्रस्तावना के पाँच भेदोंमेंसे कदाचन - अ० [सं०] दे० 'कदाचित्' ।
दूसरा कथाका आरंभ ।
कदन्न - पु० [सं०] खराब, मोटा अन्न- साँवा, कोदो आदि । कदम - पु० दे० 'कब' |
क़दम - पु० [अ०] पाँव; डग; चलनेमें दोनों पगोंके बीचका अंतर; पदचिह्नः कार्यविशेषके लिए किया गया यत्न, कोशिश; काम; घोड़ेकी एक चाल । -चा-पु० पैर रखनेकी जगह; पाखाने की खुड्ढी; पाखाना - ब क़दम - अ० साथ-साथ - बाज़- वि० कदमकी चाल चलनेवाला (घोड़ा) । - बोसी - स्त्री० पाँव चूमना; गुरुजनोचित सम्मान-दर्शन; साक्षात्कार । मु०- उखड़ना - पाँव उख ड़ना, भाग जाना। - उठाना- आगे बढ़ना । - चूमनापाँव छूना; गुरुजनोचित सम्मान करना; गुरु मान लेना । - छूना - पाँव पकड़कर प्रणाम करना; किसीकी कसम खाना; खुशामद करना। -निकालना - (घोड़ेको) कदमकी चाल सिखाना; बाहर जाना । पर क़दम रखनापीछे-पीछे चलना, अनुसरण करना ।-ब-क़दम चलनासाथ-साथ चलना; अनुसरण करना । - बढ़ाना- चाल तेज करना; आगे बढ़ना । - मारना-दौड़-धूप करना; यत्न- प्रयत्न करना। -लेना - पाँव पड़ना, पाँव छूकर प्रणाम करना; आदर-सम्मान करना । ( इस शब्द के बहुतसे मुहावरे 'पाँव' में मिलेंगे ।)
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क़दर - स्त्री० [अ०] माप; मात्रा; भाग्य; प्रतिष्ठा, इज्जत । - दान - वि० दे० ' कद्रदान' । दानी स्त्री दे०
९-क
कथनी
'क़द्रदानी' ।
कदरई * - स्त्री० कायरपन ।
कदरज * - वि० दे० 'कदर्य' । पु० एक प्रसिद्ध पापी; + कूड़ाकरकट |
कदरमस* - स्त्री० मार-पीट, लड़ाई । कदराई - स्त्री० कायरपन ।
कदराना * - अ० क्रि० डरना; कचियाना, पीछे हटना । कदर्थ - वि० [सं०] निरर्थक, निकम्मा | कदर्थन - पु०, कदर्थना - स्त्री० [सं०] सताना, पीड़ा पहुँचाना; तिरस्कार; निंदा; दुर्दशा ।
- कन
कदर्शित - वि० [सं०] जिसकी दुर्दशा की गयी हो; तिरस्कृत । कदर्य - वि० [सं०] कृपण, कंजूस; तुच्छ; क्षुद्र । कदली- स्त्री० [सं०] केला; एक हिरन; झंडा । कदा - अ० [सं०] कब, किस समय ।
कदाकार - वि० [सं०] कुरूप, भद्दा, भोंड़ा । पु० बुरा रूप । कदाच, कदाचि* - अ० कदाचित् ।
कथोपकथन - पु० [सं०] बातचीत, संवाद |
कदंब - पु० [सं०] एक सुंदर पेड़ जिसमें गोल, पीले फूल
लगते हैं, कदम; देवताडक तृण; समूह; सरसोंका पौधा । कदंश - पु० [सं०] हीन, निकृष्ट भाग ।
कद - वि० [सं०] जल देनेवाला; सुखद । पु० बादल । * अ० कब, किस समय ।
क़द - पु० [फा०] डील, देहकी ऊँचाई लंबाई ।
कदधव * - पु० कुमार्ग ।
कद्दावर - वि० [अ०] बड़े डील-डौलका, लंबा-चौड़ा ।
कदन-पु० [सं०] वध; विनाश; युद्ध; पाप; *छुरी- 'विरह कद्दू - पु० [फा०] एक प्रसिद्ध तरकारी, लौकी । -कशकदन करि मारत लुंजै' - सू० । पु० कद्दू, कुम्हड़ा आदि रेतनेका आला । क़द्र-स्त्री० [अ०] बड़ाई; इज्जत; दरजा; मरतबा ।-दानवि० कद्र समझनेवाला; सिरपरस्त । - दानी -स्त्री० सिरपरस्ती; गुणकी पहचान |
कद्रु, कद्रू स्त्री० [सं०] कश्यपकी पत्नी जो साँपों की माता मानी जाती है । -ज, पुत्र, सुत- पु० साँप, नाग । कधी । - अ० कभी । कनक* - पु० कनक, सोना ।
कदाचार - पु० [सं०] बुरा, कुत्सित आचार | कदाचित् - अ० [सं०] कभी; शायद । कदापि - अ० [सं०] कभी, हर्गिज
कदाहार - पु० [सं०] बुरा भोजन; खराब चीजें खाना । क़दीम - वि० [अ०] पुराना, प्राचीन । क़दीमी - वि० दे० 'क़दीम' |
कदुष्ण - वि० [सं०] थोड़ा गरम, कुनकुना ।
कद * - अ० कदा; कभी ।
For Private and Personal Use Only
कन-पु० कण; प्रसाद; भीख; कन्ना; बूँद; सत; 'कान' का समासमें व्यवहृत संक्षिप्त रूप । - कटा - वि० जिसका कान कटा हो, बूचा 1 - खजूरा - पु० गोजरकी जातिका एक कीड़ा जो कभी-कभी कान में घुस जाता 1 - खोदनीस्त्री० लोहे, ताँबे आदिका बना कान खुजलाने और उसका मैल निकालनेका एक औजार । - छेदन - पु० कान छेदे जानेकी रस्म, कर्णवेध संस्कार । - टोप - पु० वह टोपी जिससे कान ढँके रहें । - पट- पु०, पटीस्त्री० कान और आँखके बीचका स्थान, गंडस्थल । - फटा - पु० गोरखपंथी साधु जिसके कान फटे होते हैं । - फुंकवा - पु० कान फूंकनेवाला, दीक्षागुरु । - फुंकावि० दीक्षा देने या लेनेवाला । पु० कान फूँकनेवाला गुरु; शिष्य । - फुसका - पु० कानमें धीरेसे बात कहनेवाला, चुगलखोर; बहकानेवाला । - फुसकी - स्त्री० दे० 'कानाफूसी' । - फूल-पु० दे० 'करनफूल | - बतिया -