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कढ़राना-कथना
१३४ होना; बढ़ जाना; काढ़ा जाना; दूधका खौलकर गाढ़ा कतरी-स्त्री० कोल्हूका पाट; एक गहना; कतरनी; जमी होना। मु० कढ़ जाना-किसी स्त्रीका किसीके साथ हुई मिठाईका पतला टुकड़ा, कतरी। निकल जाना।
क़तल-पु० दे० 'कल'। कढ़राना,कढ़लाना*-सक्रि० घसीटकर बाहर निकालना। कतला-पु० किसी खाद्य वस्तुका तिकोने या चौकोने कढ़वाना-स० क्रि० दे० 'काढ़ना'।
आकारमें कटा हुआ टुकड़ा, फाँक । कढ़ाई-स्त्री० बेल-बूटे बनानेका काम या उत; निकालने-कतली-स्त्री० पकवान आदिके चौकोर कटे टुकड़े; चीनीकी की क्रिया था उज्रत; दे० 'कड़ाही'।
चाशनीमें पगे खरबूजेके बीज, चिरौंजी आदि । कढ़ाना-स० क्रि०निकलवाना, बाहर कराना; बेल-बूटे | कतवाना-सक्रि० कातनेका काम कराना। बनवाना।
कतवार-पु. कूड़ा-करकट; * कातनेवाला । -खानाकढ़ाव-पु० बेल-बूटेका काम दे० 'कड़ाह' ।
पु० कूड़ा-करकट आदिके फेंकनेका स्थान । कढ़ावना*-स०नि० दे० 'कढ़ाना।
कतहुँ, कतहूँ*-अ० कहीं, किमी जगह । कढ़ी-स्त्री० बेसन, दही और मसालेके योगसे बननेवाला क़ता-स्त्री० [अ०] काटना; काट, तराश; काट-छाँट दंग। लपसी जैसा एक व्यंजन । मु०-का(कासा)उबाल- कताई-स्त्री० कातनेकी क्रिया; कातनेकी मजदूरी । क्षणिक उत्साह या आवेश ।-में कंकड़ी,-में कोयला- कतान- पु० अधिक ऐंठनेवाले धागेका बारीक रेशमी कपड़ा अत्यंत सुंदर वस्तुमें खटकनेवाला दोष होना।
जिससे साड़ियाँ, दुपट्टे आदि बनाये जाते हैं। पुराने कदआ(वा)-पु० मटके अदिसे पानी निकालनेका बरतन | जमानेका एक अत्यंत सुंदर कोमल वस्त्र।
आटा-चावल आदि निकालने या नापनेका काम देनेवाला ताना-स० वि० 'कातना'का प्रे०, कतवाना । बरतन; ऋण; बच्चोंके प्रातःकाल खानेके लिए बचाकर कतार-स्त्री० [अ०] पाँत, पंक्ति; क्रम, सिलसिला समूह । रखा गया रातका भोजन । वि० अलग किया हुआ। कति-वि० [सं०] कितना; कितने; * कितने ही; कौन करैया-पु० निकालनेवाला । स्त्री० कड़ाही।
बहुसंख्यक। कढ़ोरना, कढ़ोलना*-सक्रि० घसीटना ।
कतिक-वि० कितना; थोड़ा बहुत । कण-पु० [सं०] अनाजका एक दाना; चावल आदिका कतिपय-वि० [सं०] कई; कुछ । बहुत छोटा टुकड़ा, जलसीकर; रवा; भिक्षा। -जीर, कतीरा-पु० एक पेड़का गोंद । -जीरक-पु० सफेद जीरा। -भक्ष,-भुक् (ज)- कतेक*-वि० दे० 'कितेक' । पु० कणाद मुनि ।
कतेब-स्त्री० किताब, धर्मग्रंथ । कणाद-पु० [सं०] वैशेषिक दर्शनके प्रवर्तक उलूक मुनि। कतौनी-स्त्री० कताई; ढिलाईसे काम करना; बहुत देर कणिका-स्त्री० [सं०] कण; तिनका; जीरा; अग्निमंथ वृक्ष। लगाना; कातनेकी उज्रत । कणी-स्त्री० कणिका; एक अन्न ।
कत्ता-पु० बसफोरोंका बाँस काटनेका एक औजार, बाँक कणीकरण-पु० [सं०] (क्रिस्टलाइजेशन) कणों या रवोंके छोटी और कुछ टेढ़ी तलवार; पासा । रूपमें परिणत करना; दे० 'स्फटिकीकरण' ।
| कत्ती-स्त्री० छोटी तलवार; बटार; सोनारीको कतरनी; कण्व-पु० [सं०] शकुंतलाका पालन करनेवाले ऋपि। एक तरहकी पगड़ी। कत*- क्यों, किसलिए।
कत्थई-वि० कत्थेके रंगका, खैर। । पु० कत्थई रंग। कृतई-वि० [अ० पका, निश्चित; बिना शर्तका । अ० कत्थक-पु० गाने-बजानेका पेशा करनेवाली एक हिंदू एकदम, नितांत, बिलकुल । -फैसला-पु० पक्का, अंतिम जाति। -नृत्य-पु० कत्थकोंमें प्रचलित एक प्रकारका निर्णय । -हक्म-पु० पक्का, अवश्य कर्तव्य आदेश । नाच। कतक*- अ० क्यों, किसलिए; कैसे कितना ।
करथन-पु० [सं०] डींग मारना । वि० डीग मारनेवाला। कतना-अ०नि० काता जाना।
कथा-पु० खैरकी लकदीका सत जो पानमें खाया जाता है। कतर-छाँट-स्त्री० काट-छाँट ।
काल-पु० [अ०] जानसे मार डालना, वध, हत्या। -की कतरन-स्त्री० कपड़े, कागज आदिके काटने के बाद बच रात-स्त्री० मुहर्रमकी दसवीं रात ।-गाह-पु० वधस्थल । रहनेवाले छोटे, रद्दी टुकड़े।
करले आम-पु० अंधाधुंध वध, अपराधी-निरपराध, बच्चे कतरना-स० क्रि०. कैची या सरौतेसे काटना ।
बूढेका विचार किये बिना सबको करल करना। कतरनी-स्त्री० कतरनेका साधन, औजार; कैची। कथंचित्-अ० [सं०] शायद । कतरब्योंत-स्त्री० काट-छाँट; हिसाब या खर्च में काट-छाँट; कथा-पु० कत्था । किफायतशारी; जोड़-तोड़।
कथक-पु० [सं०] कथा कहनेका पेशा करनेवाला; पुराण कतरवाना-स० कि० कतरनेका काम दूसरेसे कराना। | बाँचनेवाला; दे० 'कत्थक' । कतरा-पु० दे० 'क़तला'।
कथक्कड़-पु० कथा बाँचनेका पेशा करनेवाला; रामायणादिक़तरा-पु० [अ०] बूँद ।
के तरह-तरहके अर्थ करनेवाला । कतराई-स्त्री० कतरनेका काम या मजदूरी।
कथन-पु० [सं०] कहना; वचन, उक्ति वर्णन; उपन्यासकतराना-अ० क्रि० किसीसे बचनेके लिए थोड़ा हटकर का एक भेद । किनारेसे निकल जाना। स० क्रि० कतरवाना, कटवाना। कथना*-स० कि० कहना; निंदा करना।
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