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कटंगर - वि० मोटा; कड़ा ।
कठ - पु० एक बाजा; काठ (केवल समासमें ) । वि० काठका बना; घटिया, निकृष्ट; कठोर (समास में ) । – केला - पु० एक घटिया जातिका केला, जो कड़ा और कम मीठा होता है । -कोला - पु० कठफोड़ा चिड़िया । -गुलाब - पु० एक तरहका जंगली गुलाब । - गूलर - पु० एक प्रकारका गूलर, कठूमर । - घरा-पु० काठका जँगलेदार घर; बड़ा पिंजड़ा जिसमें कोई जंगली जानवर रखा जा सके । - घोड़ा-पु० घोड़ेकी सवारीका एक स्वाँग । -जामुनपु० घटिया जामुन, छोटा और अधिक खट्टा जामुन । - ताल - ५० दे० 'करताल' । - पुतली - स्त्री० काठकी पुतली या गुड़िया जिसे तार या सूत हिलाकर नचाते हैं; दूसरे के आदेश या इशारेपर काम करनेवाला व्यक्ति । - ० का नाच - एक तमाशा जिसमें कठपुतलियोंका नाच दिखाया जाता है । -फोड़वा, - फोड़ा - पु० एक चिड़िया जो अपनी चोंचसे पेड़ोंकी छाल छेदकर उसके नीचेके कीड़ोंको खाती है । - बाप- पु० सौतेला बाप | - मलिया * - वि० जो काठकी माला पहने हो । पु० बना हुआ साधु । - मस्त, - मस्ता- वि० मस्त, बेफिक्र; मुस्तंडा । - मुल्ला - पु० कम पढ़ा हुआ, कट्टर, अक्षरपूजक मुल्ला या मौलवी ।
कठरा - पु० दे० 'कठघरा'; कटौता; काठका संदूक | कठला - पु० चाँदीकी चौकियों, बघनखा, बजरबट्टू आदिकी माला जो बच्चोंको पहनायी जाती है ।
कठवत - स्त्री०, कटवता - पु० दे० 'कठौत' ।
कठारा* -- पु० नदी आदिका किनारा । कठिन - वि० [सं०] कड़ा, सख्त; दुस्साध्य, मुश्किल ; टेढ़ा । * स्त्री० कठिनाई; कष्ट । - पृष्ट-पु० कछुआ । कठिनताई * - स्त्री० दे० 'कठिनाई' | कठिनाई - स्त्री० कठिन, दुस्साध्य होना; कष्टः संकट; दिक्कत, झंझट |
कठिया - वि० कड़े छिलकेवाला । पु० एक तरहका गेहूँ । कटुवाना * - अ० क्रि० सूखकर काटकी तरह कड़ा हो जाना । कठूमर - पु० जंगली गूलर । कठेठ, कठेठा* - वि० कठोर ।
कठोर - वि० [सं०] कड़ा, सख्त, निष्ठुर, बेरहम; विकासप्राप्त । - गर्भा - स्त्री० जिस स्त्रीका गर्भ पूर्ण विकसित - ७-८ मासका - हो चुका हो ।
कठोरता - स्त्री० [सं०] कड़ापन, सख्ती; निर्दयता ।
कठोरताई* - स्त्री० दे० 'कठोरता' । कठौत - स्त्री० छोटा कठौता ।
कठौता - पु० काठका वह छिछला बरतन जिसमें प्रायः खाने-पीनेका सामान रखा जाता है । कठौती - स्त्री० छोटा कठौता ।
कडक - पु० [सं०] समुद्री नमक ।
कड़क -स्त्री० बहुत कड़ी और डरावनी आवाज; बिजली चमकनेके बाद होनेवाली आवाज; जोरसे डाँटने, डपटनेकी आवाज; बिजली; पेशाबका रुक-रुककर जलन के साथ आना; रुक-रुककर होनेवाला दर्द; घोड़ेकी सरपट चाल; पटेबाजीका एक हाथ - नाल-स्त्री० एक तरहकी तोप ।
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कटंगर - कदना
कड़कड़ाता - वि० जिससे कड़कड़की आवाज निकले, कलफदार; तेज ।
कड़कड़ाना-अ० क्रि० कड़कड़ शब्द करना; धी तेलका इतना गरम हो जाना कि उसमेंसे कड़कड़की आवाज निकले । स० क्रि० खूब गरम करना ( घी आदि ) । कड़कड़ाहट - स्त्री० कड़कड़की आवाज । कड़कना - अ० क्रि० बिजली कौंधनेकी आवाज होना, गरजना; डाँटते हुए जोर से बोलना ।
कड़खा- पु० वीरोंकी प्रशंसा में रचित गीत जो योद्धाओंको उत्साहित करने के लिए गाया जाता है । कड़खैत - पु० कड़खा गानेवाला, भाट | कड़वा - वि० जीभको लगनेवाला; झालदार; कटुः अप्रिय; नागवार ; क्रोधी; चिड़चिड़ा; रुष्ट, खफा; कठिन; टेढ़ा । तेल - पु० सरसों का तेल । - पन - पु०, - हट - स्त्री० कड़वा होनेका भाव, कटुता । मु०- घूँट पीना - अति कष्टकर बातको सह लेना |
कड़वाना - अ० क्रि० कड़वा लगना; कड़वा हो जाना । कड़वी - वि० स्त्री० दे० 'कड़वा' । स्त्री० जुआरके डंठल जो चारेके काममें लाये जायें। - खिचड़ी, - रोटी - स्त्री० वह खाना जो मृत व्यक्तिके निकट संबंधी या मित्र उसके कुटुंबियों के लिए भेजते हैं ।
कड़ा - वि० सख्त, कठोर; जो नरम या लचीला न हो; कसा हुआ, ठोस; रिआयत न करनेवाला; दचित्त, धीर; कठिन; दुष्कर; न दबने, न डरनेवाला; तेज; गहरा; कर्कशः तीव्र असह्य; रोषसूचक (तेवर); कड़ी देहवाला; सशक्त । [स्त्री० कड़ी ] । पु० चूड़ीके आकारका गहना जो हाथ या पाँव में पहना जाता है, वलय; लोहेका बड़ा छला जिसे सिख पहनते हैं; कंडाल - कड़ाही आदिको उठानेके लिए उसमें लगा हुआ छला; एक तरहका कबूतर । मु०पड़ना-ध्दता दिखाना, न दबना । कड़ाई - स्त्री० कड़ापन, सख्ती; कठोर व्यवहार
कड़ाका - पु० कड़ी चीजके टूटने की आवाज; उपवास, फाका । - - (के) का - तेज, सख्त, जोरका । कढ़ाबीन - स्त्री० घोड़सवारोंके उपयुक्त छोटी बंदूक । कड़ाह, कड़ाहा - पु० लोहेका गोला, छिछला बरतन जो अधिक मात्रामें पूरियाँ, तरकारी, गुड़ आदि बनानेके काम आता है ।
कड़ाही - स्त्री० कड़ाहेकी शक्लका छोटा पात्र । कड़िहरा - स्त्री० कमर । कड़िहार* - पु० ऊद्धारक, निकालनेवाला । कड़ी - स्त्री० कठिनाई, मुसीबत; जंजीरका एक छला कोई चीज लटकानेका छल्ला; गीतका एक पद; छोटी धरन या शहतीर; भेड़ आदि की छातीकी हड्डी; जरीबका १ / १०० भाग । वि० दे० 'कड़ा' । - कैद - स्त्री० वह सजा जिसमें कैदीसे कड़ी मेहनतके काम लिये जायँ, सपरिश्रम कारावास । क. हुआ - वि० दे० 'कड़वा' । - कसैला - वि० अरुचिकर । - तेल - पु० सरसों का तेल ।
क. हुआना-अ० क्रि० कडुवा लगना; आँखें गड़ना; खफा होना ।
कढ़ना - अ० क्रि० निकलना; खिंचना; * उदय होना; लाभ
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