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कनउँगली कशी
स्त्री० कान में धीरेसे कही हुई बात। - मैलिया-पु० कानका मैल निकालनेवाला । -रस-पु० संगीतका रसः गाने-बजाने या बात सुननेका व्यसन । - रसिया - वि० संगीत- प्रिय । - सुई - स्त्री० छिपकर सुनना, टोह लेना । - हार* - पु० दे० ' कर्णधार' ।
कनउँगली - स्त्री० कानी उँगली, छिगुनी । कनउड़ * - वि० दे० 'कनौड़ा' ।
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कनक - पु० [सं०] सोना; गेहूँ या उसका आटा; धतूरा; पलाश; नागकेशर; चंपा । - कली - स्त्री० कान में पहनेकी लौंग । -कशिपु-पु० हिरण्यकश्यप । -क्षार पु० सुहागा। - गिरि, -शैल- पु० सुमेरु पर्वत । - चंपा - स्त्री० कनियारीका पेड़ । - रंभा - स्त्री० स्वर्णकदली । कनकना - वि० हलकी-सी चोटसे भी टूट जानेवाला; चिड़
चिड़ा, तुनुकमिजाज |
कनकनाना - अ० क्रि० चौकन्ना होना; रोमांचित होना; कनिहार - पु० कर्णधार, मल्लाह ।
चुनचुनाना; नागवार लगना ।
कनकनाहट - स्त्री० कनकनाने का भाव ।
कनका - पु० कनकी; कण ।
कनकाचल, कनकाद्रि- पु० [सं०] सुमेरु पर्वत । कनकाध्यक्ष - पु० [सं०] खजांची, कोषाध्यक्ष ।
कनकाना - पु० घोड़ेकी एक जाति ।
करना ।
कनखैया * - स्त्री० दे० 'कनखी' ।
कनकी - स्त्री० चावलका टूटा हुआ कण; छोटा कण । कनकूत - पु० जमींदार और असामीमें उपजके बँटवारे के कनूका * - पु० दाना; कण ।
लिए खड़ी फसलका कृत होना । कनकैया - स्त्री० दे० 'कनकौवा' । कनकौवा - पु० बड़ा पतंग, गुड्डी । - (वे) बाज़ - पु० पतंग उड़ाने-लड़ानेवाला । मु०- (वे) से दुमछल्ला बड़ामुख्य वस्तुसे अंगभूत, उससे उपजी वस्तुका बड़ा होना । कनखियाना - स० क्रि० कनखी से देखना; इशारा करना । कनखी-स्त्री० आँखकी कोर; तिरछी निगाह से देखना; आँखका इशारा, सैन | मु०-मारना - आँखसे इशारा
कनगुरिया - स्त्री० कानी उँगली, छिगुनी ।
कनधार * - पु० कर्णधार, केवट ।
कनमनाना - अ० क्रि० सोनेमें आहट पाकर या बेचैनीसे हाथ-पाँव हिलाना, सिकोड़ना; विरोध-सूचक चेष्टा करना । कनय* - पु० कनक, सोना । कनवास - पु० [ अं० कैनवस ] सन, पटसन आदिका बना
मोटा कपड़ा जिसके पर्दे, जूते आदि बनते हैं, 'किरमिच' । कनस्तर - पु० [अ० 'कनिस्टर'] टीनका चौखूँटा पीपा । कनहार* - दे० 'कन' के साथ |
कना - पु० कन; सरकंडा ।
कनाई - स्त्री० पतली शाखा, टहनी ।
कनाउड़ा* - वि० दे० 'कनौड़ा' ।
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कनावड़ा-वि० दे० 'कनौड़ा' । कनिआरी - स्त्री० कनकचंपा । कनिक-स्त्री० गेहूँ; गेहूँ का आटा । कनिका - स्त्री० दे० 'कणिका' | कनिगर* - वि० आनवाला । कनियाँ * - स * - स्त्री० गोद ।
कनियाना - अ० क्रि० कतराना, आँख बचाकर निकल जाना; गुड्डीका एक ओर झुकना । कनियार - पु० कनकचंपा |
कनिष्ठ वि० [सं०] उम्र में सबसे छोटा; छोटा; अत्यल्प. । कनिष्ठा - वि० स्त्री० [सं०] सबसे छोटी; छोटी । स्त्री० कानी उँगली; सबसे पीछे ब्याही हुई पत्नी; वह नायिका जो पतिको कम प्यारी हो; छोटे भाईकी स्त्री । कनिष्ठिका - स्त्री० [सं०] छिगुनी ।
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कनी - स्त्री० छोटा टुकड़ा; कणिका; हीरेकी कणिका; चावल या भातका वह (छोटा) भाग जो कच्चा रह गया हो; बूंद ।
कनीनका - स्त्री० [सं०] क्कारी लड़की; आँखकी पुतली । कनीनिका, कनीनी - स्त्री० [सं०] छिगुनी; आँख की पुतली । कनीर* - पु० कनेर वृक्ष या उसका फूल । कनु* - पु० दे० 'कण' |
कनेखी* - स्त्री० दे० 'कनखी' । कनेठा - वि० काना; ऍचा-ताना । कनेठी - स्त्री० कान ऐंठना, गोशमाली कनेर, कनैर-पु० एक पौधा जिसमें सफेद, पीले और लाल रंगके फूल लगते हैं, करवीर । कनेरिया - वि० कनेर के फूलके रंगका । कनोई * - पु० कानका मैल, खूंट कनोखा - वि० कटाक्षयुक्त ।
कनौजिया - वि० कन्नौजका रहनेवाला । पु० कान्यकुब्ज
ब्राह्मण |
कनौठा - पु० कोना; किनारा; भाई-बंधु ।
कनौड़ा - वि० काना; अपंग; बदनाम; क्षुद्र; हीन; लज्जित; एहसानमंद | पु० क्रीत दास ।
कनौती - स्त्री० पशुका कान या उसकी नोक; कान खड़े करनेका ढंग; बाली । मु० कनौतियाँ बदलना - घोड़ेका कान खड़ा करना; चौकन्ना होना ।
कन्ना - पु० किनारा, कोर; पतंगमें ऊपर-नीचे बँधा हुआ वह धागा जिसमें लंबी डोर बाँधकर उसे उड़ाते हैं; चावलकी धूल जो छाँटने में निकलती है; पौधोंका एक रोग । वि० कन्ना लगा हुआ (फल या लकड़ी) । मु० - ढीला होनाहौसला पस्त होना; ऐंठ ढीली पड़ जाना। -साधनाकन्नेकी गाँठ ठीक जगह पर बाँधनेके लिए उसकी लंबाई नापना ।
कनागत* - पु० पितृपक्ष ।
क़नात - स्त्री० [तु०] कपड़ेकी दीवार जो खेमे या किसी कन्नी - स्त्री० किनारा; कोर; हाशिया; पतंगका किनारा; खुले स्थानके चारों ओर खड़ी करते हैं ।
नाती - वि० [अ०] कनातसे बनाया हुआ । - मस्जिद - स्त्री० कनात खड़ी कर नमाज पढ़नेके लिए बनाया हुआ स्थान ।
वजन बराबर करनेके लिए पतंगकी काँप या कमानीमें बाँधी जानेवाली धज्जी; वह औजार जिससे राजगीर गारा लगाता, पलस्तर करता है; पेड़का नया कला; तंबाकू के
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