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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमि-भुंगी भूमि-स्त्री० [सं०] जमीन, धरती; स्थान, क्षेत्र; देश भूरा-पु० स्याह और सफेदके बीचका रंग, खाकी रंग; (भारतभूमि); जींदारी भूमिका (ना०); विस्तार, जीभ, कधी चीनी; चीनी । वि० भूरे रंगका, कपासी ।-कुम्हड़ा एककी संख्या; आधार मंजिल, तला (सप्तभूमिक प्रासाद); -पु०पेठा। योगीके चित्तकी एक अवस्था; उत्पत्तिस्थान (वीरोंकीभूमि)। भूरि-वि० [सं०] प्रचुर, बहुत ज्यादा; बड़ा । पु० ब्रह्मा -अवाहि-अधिनियम-पु० (लैंड ऐक्विजिशन ऐक्ट) किसी विष्णुः शिव; इंद्रा सोना । अ० बहुत अधिक प्रायः । सार्वजनिक कामके निमित्त या राज्यादिकी कोई विशेष -द-वि० बहुत देनेवाला, महादानी । -दा-वि० आवश्यकता पूरी करने के लिए दूसरेकी भूमि खरीदने, ले बहुत बड़ा दानी । -भाग्य-वि बड़भागी। लेनेकी अधिकार प्रदान करनेवाला अधिनियम । -कंप, भूरिता-स्त्री० [सं०] आधिक्य, बाहुल्य । -कंपन-पु० भूकंप, भूवाल ।-कदंब-पु० एक तरहका भूर्ज-पु० [सं०] भोजपत्रका पेड़। -पत्र-पु० भोजपत्र । कदंब । -कुष्मांड,-कूष्मांड-पु. जमीनपर होनेवाला | भूलोक-पु० [सं०] मर्त्यलोक; विषुवत् रेखाके दक्षिणका कुम्हड़ा, भुइँकुम्हड़ा। -गृह-पु० तहखाना । -जा- देश । स्त्री० सीता। -जीवी (विन्)-पु० जमीनसे जीविका भूल-स्त्री० भूलनेका भाव, भ्रम; चूक; दोष; गलती, करनेवाला, कृषक ।-तल-पु० जमीनकी सतह ।-दान अशुद्धि । -चूक-स्त्री० भूल, भ्रम; गलती। -चूक -पु. जमीनका दान। -देव-पु० ब्राह्मण । -धर- लेनी-देनी-हिसाबमें भूलचूक हो तो लेन-देनकी कमीपु० पर्वत शेषनाग; भूमिपर विशेष अधिकार रखनेवाला वेशी ठीक कर ली जाय (पुरजे, बिल, बीजक आदिपर किसान (आ०)। -नाग-पु० कंचुआ। -प-पु० लिखा जाता है)। -भुलैया-स्त्री. वह इमारत जिसका राजा । -पक्ष-पु० बहुत तेज घोड़ा। -पति,-पाल- रास्ता ऐसा चक्करदार हो कि आदमी जल्दी वाहर न पु० राजा क्षत्रिय । -भुक(ज)--पु० राजा। भृत्- निकल सके। -से-भृलकर, गलतीसे । पु० राजा । -रुज --पु० वृक्ष ।-रुह-पु० वृक्ष ।-रहा भूलक-वि० भूल करनेवाला। -स्त्री० दूब । -लवण-पु० शोर।।- लाभ-पु० मृत्यु। | भूलना-अ० कि० याद न रहना, विसरना; गलती करना; -लेपन-पु० धरती लीपना; गोवर । -शयन-पु०,- भटकना, गलत रास्तेपर जाना; धोखा खाना, भुलावे में शय्या-स्त्री० जमीनपर सोना। -संभव-पु. मंगल पड़ना; बेखबर, अचेत होना; इतराना; खो जाना । स० ग्रह नरकासुर ।-संभवा-स्त्री० सीता। -संरक्षण- कि० याद न रखना, भुला देना । । वि. विस्मरणशील । पु. (साँइल कंसवेंशन) कटाव आदिसे भूमिका बचाव । | भूलकर-अ० भूलसे, गलतीसे (भी)। मु० भूलकर -सत्र-पु० भूमिदानरूप यश । -सुत-पु० दे० 'भूमि- नाम न लेना-कभी याद न करना। भूला-भटकासंभव'। -सर-पु. बाहाण। -स्वामी(मिन)-पु० जो रास्ता भूलकर, साथियोंसे बिछुड़कर भटक रहा हो। राजा। -हस्तांतर अधिनियम-पु. (लैंड एलियनेशन | भूले-भटके-कभी-कभी। ऐक्ट) भूमिका स्वत्व या स्वामित्व हस्तांतरित करनेग | भूवा-पु०, वि*-दे० 'भूआ'। संबंध रखनेवाला अधिनियम। -हार-पु० मध्यदेशमें ! भूपण-पु० [सं०] गहना, जेवर; सजावट, शोभाजनक बसनेवाली एक हिंदू जाति जो अपनेको ब्राह्मण कहती है। वस्तु; विष्णु । -पेटिका-स्त्री० रत्नमंजूषा । भूमिका-स्त्री० [सं०] धरती तला; वक्तव्य विषयकी पूर्व- भृषणीय, भूष्य-वि० [सं०] अलंकृत करने योग्य । सूचना, ग्रंथादिकी प्रस्तावना, तमहोद लिखनेका तख्ता भूपन -पु० दे० 'भूषण' । योगसिद्धिकी दृष्टिसे योगीके चित्तकी कोई विशेष अवस्था भूषना*-स० क्रि० सजाना, भूपित करना। (योग); नटकी वेशभूषा अभिनेताका पार्ट । -गत-प० भूषा-स्त्री० [सं०] गहना, भूषण; सजावट, शृंगार। नाटकीय वस्त्र पहननेवाला। मु०-बाँधना-किसी बातको ! भूषाचार-पु० [सं०] ( फैशन) कपड़े आदि पहननेका सीधे-सीधे थोडेमें न कहकर उसे कहने के लिए इधर-उधरसे विशिष्ट ढंग समाजके उच्च वगों में प्रचलित या आरत ढंग, बहुत-सी बातें लाकर जोड़-तोड़ भिड़ाना। रीति, तौर-तरीका। भूमिया-पु० जमींदार देवता। भूषित-वि० [सं०] सजाया हुआ, अलंकृत । भूमीश्वर-पु० [सं०] राजा। भुसन*-पु० दे० 'भूषण'। भूयः(यस्)-अ० [सं०] पुनः; और अधिक साधारणतः। | भूसना*-अ० क्रि० दे० 'भू कना'। भूयशः (यस)-अ० [सं०] अधिकतर, बहुत करके। । भूसा-पु० गेहूँ, जौ आदिका टुकड़े-टुकड़े किया हुआ डंठल भूयसी-वि० स्त्री० [सं०] वन अधिका-दक्षिणा-स्त्री० | जो पशुओंको खिलाया जाता है। धर्मकृत्यके अंतमें उपस्थित ब्राह्मणोंको दी जानेवाली थोड़ी- | भूसी-स्त्री. धान, चने, मटर आदिका छिलका । थोड़ी दक्षिणा। भुंग-पु० [सं०] भौरा: बिलनी; लंपट, भेंगरा; मुंगराज भूयोभूयः-अ० [सं०] पुनः पुनः, बार-बार । पक्षी। -ज-पु० अगर; अभ्रक । -जा-स्त्री० भारंगी। भूर*-वि० दे० 'भूरि' । पु० रेत । रू० भूल । -पर्णिका-स्त्री. छोटी इलायची। -राज-पु० बड़ा भूरज*-पु० दे० 'भूज' । -पत्र-पु० दे० 'भूर्जपत्र'। भौंरा एक पक्षी; भगर। नामक क्षुप । भूरपूर*-वि० भरपूर। भुंगावली-स्त्री० [सं०] भौरोंकी पाँत । भूरसी दक्षिणा-स्त्री० दे० 'भूयसी दक्षिणा'; बड़े खर्चके मुंगि-पु० [सं०] शिवका एक अनुचर । बाद होनेवाले छोटे खर्च। | भुंगी-स्त्री० [सं०] भौरी; बिलनी नामक कीड़ा-'डरि For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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