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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ गराँव-गर्भ गराँबा-पु० बैल आदिके गलेकी फंदेदार रस्सी । गरेबान-पु० [फा०] दे० 'गरीबान' । गराज*-स्त्री० गर्जन । गरेरना*-स० क्रि० घेरना, मुहासिरा करना; रोकना। गराड़ी-स्त्री० चरखी, घिरनी; रगड़से पड़ी हुई लकीर । गरेरा*-पु० घेरा । वि० धुमावदार । गराना*-स० कि० गलाना निचोड़ना । गरेरी-स्त्री० चरखी, घिरनी; गडेरी। *वि० घुमावदार, गरानी-स्त्री० ग्लानि; भारीपन; महँगी; पेटका भारी होना। चक्करदार । गरारा-वि० घमंडी; उद्धत । गरैयाँ-पु० दे० 'गराँव' । ग़रारा-पु० [अ०] गले में पानी लेकर 'गरगर' आवाजके गरोह-पु० [फा०]समूद, दल, झुंड।-बंदी-स्त्री० दलबंदी। साथ कुल्ली करना; कुल्ली करनेकी दवा; पाजामेकी ढीली गर्ग-पु० [सं०] एक मंत्रकार ऋषि साँड़ा केंचुआ। मोहड़ी शामियानेके चौबका गिलाफ । -(२)दार-वि० गर्गरी-स्त्री० [सं०] गगरी, घड़ा, कलसी; भथानी; दहेड़ी। ढीली मोहड़ीका (पजामा) । गर्ज-पु० [सं०] हाथीका चिग्धाइना; बादलोंका गर जना; गरास*-पु० दे० 'ग्रास'। गर्जना; (चिग्धाइता हुआ) हाथी । गरासना*-स० क्रि० ग्रसना; निगलना; कष्ट देना। ग़र्ज-स्त्री० दे० 'गरज'। गरिमा(मन)-स्त्री० [सं०] गुरुता, भारीपन, गौरव, | गर्जन-पु० [सं०] गरजनेकी क्रिया, गरजना; गरजनेकी महत्त्व; गर्व आठ सिद्धियोंमेंसे एक जिससे अपना देह- आवाज; बादलोंकी गड़गड़ाहट; गंभीर ध्वनि; गुस्सा; युद्ध भार चाहे जितना बढ़ाया जा सकता है। फटकार । -तर्जन-पु० गरज-तड़प डाँटना-धमकाना। गरियाना-स० क्रि० गाली देना। गर्जना-स्त्री० [सं०] गर्जन । गरियार(ल)-वि० अड़ियल, मट्टर (बैल); सुस्त । गर्त-यु० [सं०] गढ़ा, खड; बिल नहर; कब्र । गरिष्ठ-वि० [सं०] सबसे भारी; सबसे सम्मानित; बहुत गर्ताश्रय-पु० [सं०] बिलमै रहनेवालाजंतु (चूहा,खरगोश)। कड़ा; दुष्पाच्य (भोजन); सबसे खराब । गर्द-स्त्री० [फा०] धूल, राख । वि० घूमनेवाला (केवल गरी-स्त्री० नारियलका मग्ज, खोपरा; गिरी। समासमें-'आवारागर्द', 'जहाँगर्द')। -खार,-ख़ोरगरीब-वि० [अ०] परदेसी; अनोखा; निर्धन, मुफलिस; वि० धूलको जज्ब कर लेनेवाला, जल्दी मैला न होनेदीन-हीन । -खाना-पु० दीनकी कुटिया (नम्रतावश ।वाला। पु० दरवाजेके सामने पैर पोंछनेके लिए बिछायी अपने घरको कहते है)। -निबाज़-वि० दीनपर दया, हुई नारियल आदिकी चटाई, पाअंदाज, पापोश ।-(व) अनुग्रह करनेवाला, दीनदयालु । -परवर-वि० गरीबों | गुबार-पु० खाक-धूल, धूलधक्कड़ । का पालन करनेवाला । . गर्दभ-पु० [सं०] गधा; सफेद कुई; गंध । गरीबान-पु० [फा०] अँगरखे, कुरते आदिका वह भाग गर्दभी-स्त्री० [सं०] गधी; गर्दभिका नामक चर्म रोग; जो गलेके नीचे और छातीके ऊपर रहता है। गुबरैला । गरीबाना-वि० [अ०] निर्धनोचित । अ० गरीबी ढंगसे। गर्दिश-स्त्री० [फा०] घुमाव, फेरा चकरगति परिवर्तन, ग़रीबी-स्त्री० [अ०] निर्धनता, मुफलिसी; दीनता । फेर। -(शे) जमाना-स्त्री० दिनका फेर, दुर्भाग्य । गरु*-वि० भारी, वजनदार; गंभीर, शांत । गर्नाल-स्त्री० दे० 'गरनाल। गरुअ(आ)*-वि० वजनदार, भारी; गौरवयुक्त । गर्ब-पु० दे० 'गर्व'। गरुआई*-स्त्री० भारीपन, गुरुत्व । गीला-वि० धमंडी। गरुआना-अ० क्रि० भारी या वजनदार होना। गर्भ-पु० [सं०] शुक्र-शोणितके संयोगसे उत्पन्न मांसगरुड-पु० [सं०] विनताके गर्भसे उत्पन्न कश्यपके पुत्र जो | पिंड, गर्भाशयमें स्थित बच्चा या भ्रण, हमला; कोख, गर्भापक्षिराज और विष्णुके वाहन माने जाते हैं; उकाब; लंबी शय; गर्भाधानकाल; किसी वस्तुका भीतरी, मध्यवती गरदनवाला एक पक्षी जो मछलियाँ पकड़कर खाता है। भाग; बिल; नदीका पेटा; घर-मंदिरका भीतरी भाग; -गामी(मिन्)-पु०विष्णु ।-घंटा-पु० वह घंटा जिस- नाटककी ५ प्रकारकी संधियों से एक । -कर-वि० गर्भ पर गरुड़की प्रतिमा बनी हो। -ध्वज-पु० विष्णु; वह धारण करानेवाला। पु० पुत्रजीव वृक्ष । -काल-पु० खंभा जिसमें ऊपर गरुड़की मूर्ति बनी होती है; गुप्त ऋतुकाल, गर्भधारणका समय । -केसर-पु० फूलके सम्राटोंका राजचिह्न । -पुराण-पु० अठारह पुराणों में से सूत जैसे रेशे जो गर्भनाल के अंदर होते हैं। -कोश,-- एक जिसमें नरकोंका वर्णन, प्रेतकर्मका विधान आदि है। कोष-पु० गर्भाशय, बच्चादानी । -गुवीं-स्त्री० -मंत्र-पु० एक विषहारक मंत्र । गर्भिणी । -गृह-पु० घरके बीचोबीचका कमरा, घरका गरुता*-स्त्री० दे० 'गुरुता'। मध्य भाग; मंदिरकी वह कोठरी जिसमें मुख्य देवताकी गरमानू(मत्)-पु० [सं०] पक्षी; गरुड़ अग्नि । प्रतिमा हो। -च्युति-स्त्री० प्रसव; गर्भपात । -ज,गरुवाई*-स्त्री० दे० 'गरुआई'। जात-वि. जन्मका, पैदाइशी। -द-वि० गर्भ देनेगरू*-वि० गुरु, भारी; बड़ा । वाला । पु० पुत्रजीव वृक्ष । -दा,-दात्री-स्त्री० सफेद ग़रूर-पु० [अ०] गर्व, घमंड । भटकटैया । -धारण-पु० गर्भवती होना, हमल रहना। गरूरत, गरूरताई-स्त्री० मस्ती; धमंड | -नाल-स्त्री० फूलके भीतरकी पतली नाली जिसके गरूरा*-वि० मगरूर; मतवाला। सिरेपर गर्भकेसर होता है। -पत्र-पु० कोपल; फूलके गरूरी*-वि० घमंडी, मगरूर । अंदरके पत्ते । -पात-पु० गर्भका गिर जाना । -भवन For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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