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वैश्रवण-व्यथयिता
वैश्रवण - पु० [सं०] कुबेर; रावण | वि० कुबेर-संबंधी । वैश्वजनीन - वि० [सं०] विश्व भरके लोगोंसे संबंध रखनेवाला; समस्त विश्वके लोगोंका कल्याण साधक । वैश्वदेव - वि० [सं०] सब देवोंसे संबंध रखनेवाला । पु० विश्वदेवके उद्देश्यसे किया हुआ होम, यश; एक एकाइ; उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ।
वैश्वदेव, वैश्वदैवत - पु० [सं०] उत्तराषाढ़ा नक्षत्र जिसके अधिपति विश्वदेव कहे जाते हैं ।
वैश्यदेविक, वैश्यदेव्य - वि० [सं०] विश्वदेव-संबंधी । वैश्वमनस - पु० [सं०] एक साम । वैश्वयुग - पु० [सं०] बृहस्पतिके पाँच संवत्सरोंका
समाहार ।
वैश्वरूप - वि० [सं०] बहुत से रूपोंवाला; विभिन्न प्रकारका । पु० विश्व |
वैश्वरूय - वि० [सं० ] दे० 'वैश्वरूप' । पु० बहुरूपता; विभिन्नता ।
वैश्वानर - वि० [सं०] अग्नि-संबंधी । पु० अग्नि; जठराग्नि, पित्त; चित्रक वृक्ष ।
वैषम्य - पु० [सं०] विषमता; समतल न होना; अनुपातराहित्य; कठिनाई; संकट; कठोरता; अनौचित्य; भूल । वैषयिक - वि० [सं०] विषय-संबंधी; प्रदेश, भूभाग संबंधी; पु० कामी, लंपट |
वैषुवत- पु० [सं०] विषुव (संक्रांति ); केंद्र, मध्य । वि० मध्यवर्ती; विषुव रेखा-संबंधी ।
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वैष्णव - वि० [सं०] विष्णु-संबंधी; विष्णुको पूजनेवाला । पु० विष्णुकी उपासना करनेवाला; एक धार्मिक संप्रदाय ( जिसमें विष्णुकी उपासना की जाती है ) । वैष्णवी - स्त्री० [सं०] वैष्णव संप्रदाय की स्त्री; विष्णुकी शक्ति; दुर्गा और मनसा; अपराजिता; शतावरी; तुलसी । वैसा - वि० उस तरहका । अ० उस प्रकार; उतना । वैसress - पु० [सं०] विषमता, असमानता; अंतर । वैसे - अ० उस प्रकार से; यों । वैहायस - वि० [सं०] आकाशमें विचरण करनेवाला;
उद्देश्य से कहे गये विपरीतार्थ- बोधक शब्द, ताना।-चित्रपु० व्यंग्य या उपहासको दृष्टिसे बनाया गया चित्र । व्यंग्योक्ति - स्त्री० [सं०] गूढ़ भाषा, वह उक्ति जिसमें व्यंग्य हो ।
व्यंजक - वि० [सं०] प्रकट करनेवाला, प्रकाशकः अर्थका संकेत करनेवाला |
व्यंजन- पु० [सं०] प्रकट करना; स्वरहीन वर्ण; चिह्नः परिचायक चिह्न भोजन-सामग्री, मसाले आदि; पका हुआ भोजन ( बोलचाल ); पंखा (व्यजनका विकृत रूप ); दे० 'व्यंजना' (सा० ) । - कार - पु* भोजन बनानेवाला । - संधि - स्त्री० व्यंजन वर्णोंके मिलनसे होनेवाला विकार । व्यंजनास्त्री० [सं०] व्यक्त करनेकी क्रिया; तीन प्रकारकी शब्दशक्तियों में से एक जो अभिधा और लक्षणाके विरत हो जानेपर संकेतितार्थ प्रकट करती है। -वृत्ति - स्त्री० व्यंग्यपूर्ण भाषा लिखनेकी शैली; व्यंजना-शक्ति । व्यंजित - वि० [सं०] प्रकट किया हुआ; चिह्नित; संकेतित । व्यक्त - वि० [सं०] प्रकट; विकसित; प्रत्यक्ष, स्पष्ट, श्य । व्यक्ति स्त्री० [सं०] व्यक्त, प्रकट होनेकी क्रिया; प्रकट रूप; स्पष्टता । पु० व्यष्टि, जन (जाति या समष्टिका उलटा ) । - गत- वि० एक व्यक्तिका, अपना, निजी । व्यक्तित्व-पु० [सं०] व्यक्तिकी अपनी विशेषता, गुण; वह विशेषता जो किसी व्यक्तिमें असामान्य रूपसे पायी जाय । व्यक्तीकरण पु० [सं०] व्यक्त, प्रकट करनेकी क्रिया । व्यक्तीभूत- वि० [सं०] जो प्रकट हो गया हो । व्यप्र- वि० [सं०] व्याकुल, परेशान, घबड़ाया हुआ; डरा हुआ; संलग्न, व्यस्त; अस्थिर । - मना (नस) - वि० घबड़ाया हुआ, परेशान । व्यजन-पु० [सं०] पंखा झलना; पंखा ।
व्यतिक्रम - पु० [सं०] बीतना, गुजरना (समय); उल्लंघन; उपेक्षा; रीति-भंग; क्रम विपर्यय; संकट; बाधा । व्यतिक्रमण-पु० [सं०] क्रमभंग करना; पाप करना, बुराई करना ।
व्यतिक्रमी (मिन्) - वि० [सं०] पापी, अपराधी । व्यतिक्रांत - वि० [सं०] भंग किया हुआ; उल्लंघित; विपर्यस्त; बिताया हुआ ।
व्यतिक्षेप - पु० [सं०] अदल-बदल; वितंडा, कहासुनी, झगड़ा ।
व्यतिचार - पु० [सं०] पापाचरण, बुराई ।
वोछा* - बि० दे० 'ओछा' ।
व्यतिपात - पु० [सं०] विष्कंभ आदि सत्ताईस योगों में से एक ।
वोट- पु० [अ०] किसी व्यक्तिके निर्वाचनके लिए दिया व्यतिरिक्त-वि० [सं०] अतिशय, बहुत अधिकः पृथक् । जानेवाला मत ।
अ० सिवा, अलावा, छोड़कर ।
वोड़ना * - स० क्रि० फैलाना, पैसारना ।
वोढव्य - वि० [सं०] सहनीय; ले जाये जाने योग्य, वाह्म । वोद - वि० [सं०] आर्द्र, गीला ।
व्यतिरेक- पु० [सं०] भेद, अंतर, पार्थक्य; अभाव, राहित्य; एक काव्यालंकार जहाँ उपमानकी अपेक्षा उपमेयकी अधिकता कही जाय ।
वोदर, वोद्र* - पु० उदर- 'जग जाके वोदर बसै तिहि तूं व्यतीत - वि० [सं०] बीता हुआ, गत; प्रस्थितः मृतः त्यक्त । ऊपर लेय' - दास ।
व्यतीतना* - अ० क्रि० व्यतीत होना, बीतना, गुजरना । व्यतीपात - पु० [सं०] दे० 'व्यतिपात'; भारी उपद्रव । व्यत्यय, व्यत्यास - पु० [सं०] व्यतिक्रम; विपर्यय, वैपरीत्य; परिवर्तन; विरोध; बाधा ।
व्यथयिता (तृ) - वि० [सं०] पीड़ा देनेवाला; दंड देनेवाला ।
आकाशस्थ, वायु संबंधी । पु० देवता; एक झील । वैहासिक-पु० [सं०] बिदूषक; अभिनेता । वि० हँसाने
वाला ।
वोक* - स्त्री० तरफ, ओर - 'सूर स्याम कालीपर निर्तत आवत व्रजकी वोक' - सू० ।
वोर* - स्त्री० अंत; तरफ ।
वोहित्थ - पु० [सं०] जहाज, पोत, बड़ी नाव |
व्यंग्य - वि० [सं०] व्यंजनावृत्ति द्वारा बोधित, संकेतित । पु० संकेतितार्थ, गूढ़ार्थ; चिढ़ाने, नीचा दिखाने आदिके
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