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सूतकाशौच-सून सूतकाशौच-पु० [सं०] संतान-जन्मके कारण लगनेवाला सूत्रण-पु० [सं०] सूत्ररूपमें रचना; सूत्ररूपमें नत्थी करना; अशौच ।
सिलसिलेसे सजाना। . सूतता-स्त्री० [सं०] सूत, सारथिका काम ।
सूत्रिका-स्त्री० [सं०] सेंवई; हार, माला । सूतना-अ० क्रि० दे० 'सोना'।
सूत्रित-वि० [सं०] नत्थी किया हुआ; सिलसिलेसे लगाया सूतरी*-स्त्री० दे० 'सुतली'।
हुआ; सूत्ररूपमें कथित । सूति-स्त्री० [सं०] जनन, प्रसव; संतान; सिलाई; सोम- सूत्री(त्रिन्)-वि० [सं०] सूत्र-विशिष्ट । पु० कौआ निष्पीडन सोमरस निकालनेका स्थान; उद्गम; फसलकी (नाटकका) सूत्रधार । पैदावार । -काल-पु० प्रसवकाल ।-गृह-पु० सूतिका- सूत्रीय-वि० [सं०] सूत्र-संबंधी । गृह, जच्चाखाना। -मारुत,-वात-पु० प्रसववेदना। सूथन-पु० दे० 'सुथना' । -रोग-पु० दे० 'भूतिकारोग'।
सुथनी-स्त्री० स्त्रियोंके पहननेका पाजामा । सूतिका-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसने तुरत या हालमें ही सूद-पु० [सं०] हनन, वध; व्यंजन; रसोइया ।-शालाबच्चा जना हो, नवप्रसूता, जच्चा; सद्यःप्रसूता गौ ।-गृह- पु० रसोईघर । -शास्त्र-पु० पाकविद्या। गेह,-भवन-पु० जच्चाखाना, सौरी-मारुत-पु०दे० सूद-पु० [फा०] लाभ, नफा; ब्याज । -खोर,-स्वार'सूतिमारुत' । -रोग-पु० प्रसूताको आहार-विहारके पु० सूद लेनेवाला, ब्याजसे जीविका चलानेवाला। दोषसे होनेवाला रोग।
-खोरी-स्त्री० सूद लेना, ब्याज-बट्टेका रोजगार । सूतिकागार, सूतिकावास-पु० [सं०] जच्चाखाना ।
-दरसूद-पु. वह ब्याज जो मूल और ब्याज दोनोंको सूती-* स्त्री० सीपी; [सं०] सूतकी पत्नी। वि० सूतका, जोड़कर लगाया जाय, चक्रवृद्धि ब्याज । सूतका बना हुआ। -कपड़ा-पु० सूतका बना हुआ | सदक-वि० [सं०] मारने, नष्ट करनेवाला। कपड़ा।
सूदन-पु० [सं०] हनन, वध; फेंकना; अंगीकार करना; सूतीगृह-पु० [सं०] दे० 'सूतिगृह' ।
हिंदीके एक प्रसिद्ध कवि, ('सुजान-चरित्र' के रचयिता)। सूतीघर-पु० सूतिकागार।
वि० हनन, नाश करनेवाला (रिपुसूदन, मधुसूदन)। सूकार-पु० [सं०] सिसकारी, सीत्कार ।
सूदना*-स० क्रि० हनन करना, नष्ट करना। सूत्र-पु० [सं०] सूत, तंतु; तागा धागोंकी राशि; यज्ञसूत्र, | सदी-वि० (रकम) जिसपर ब्याज मिलता हो। मु०जनेऊ कठपुतली नचानेकी डोरी, रेशा व्यवस्था, नियम; चलाना-सूदपर रुपया देना । योजना छोटा, अर्थगर्भ वाक्य जिसमें दर्शनादि शास्त्रोंकी सूद्रा-पु० दे० 'शूद्र'।। रचना हुई है। ऐसे वावयों में रचित मूल ग्रंथ (कल्पसूत्र, सध-वि० दे० 'सूधा'; शुद्ध । स्त्री० सीध । * अ०सीधा। गृह्यसूत्र इ०); करधनी; कारण, निमित्त; (हिं०) जरीया, सधना-अ० क्रि० सत्य होना; सफल होना। किसी सूचना-समाचारके मिलनेका स्थान (विश्वसनीय
| सूधरा*--वि० दे० 'सूधा'। सूत्रसे)। -कंठ-पु० ब्राह्मण, कबूतर; पेंडुकी; खंजन । सधा*-वि० निष्कपट, भोला-भाला, सीधा; जो वक्र न -करण-सूत्रवाक्यका निर्माण । -कर्ता(त)-पु० सूत्र-| होः जो उलटा न हो। ग्रंथका रचयिता। -कर्म(न)-पु० बढ़ई, मेमारका सूधे*-अ०सीधेसे। -सूध-अ० सीधा, दोटूक । काम जुलाहेका काम। -कार-पु० सूत्र रचनेवाला; | सन*-वि० दे० 'शून्य'; दे० 'सूना'; रहित । -सानबढ़ई; सूत कातनेवाला; जुलाहा। -कृत्-पु० दे० वि० दे० 'सुनसान'। 'सूत्रकार'। -क्रीडा-स्त्री० सूतका एक खेल जिसकी सुन-वि० [सं०] जनमा हुआ, जात; खिला हुआ; रिक्त, गणना ६४ कलाओंमें है । -जाल-पु० सूतका खाली। पु० प्रसव कली; फूल, फल; पुत्र। -शर-पु० बना हुआ जाल। -दरिद्र-वि० जिसकी बुनावटमें कामदेव । कम सूत लगाया गया हो, झीना। -धर-वि० सूत्र सूना-वि० खाली, शून्य, जनहीन । पु० एकांत स्थान । धारण करनेवाला। पु० सूत्रज्ञ व्यक्ति दे० 'सूत्रधार'।
-पन-पु० सूना लगना, शून्यता। मु०-लगना-धार-पु. नास्यशालाका व्यवस्थापक या प्रधान नरः उचाट, उदास लगना । इंद्रा बढ़ई । -पदी-वि० स्त्री० सूत जैसे पतले पैरवाली।। सूना-स्त्री० [सं०] कन्या, पुत्री; पशुओं आदिका वध-पात-पु० कार्यका आरंभ; मापवाले सूतसे मापनका स्थान; मांसविक्रय; चोट पहुँचाना; वध करना; गलेका कार्य । -बद्ध-वि० सूत्ररूपमें लिखित, रचित । -भृत्- कौवा गलग्रंथियोंका शोथ; गलसुआ; हाथीकी सूंड़ घरपु० नाटकका सूत्रधार । -यंत्र-पु० सूतका बना जाल; की उन पाँच वस्तुओं (चूल्हा, चक्की, ओखली, घड़ा और करघा ढरकी। -वाप-पु० बुननेका कार्य । -विद- झाडू) मेंसे कोई जिनसे जीवहिंसाकी संभावना हो; वि० सूत्रश।-वीणा-स्त्री०वीणाका एक भेद जिसमें तार- तत्काल होनेवाली मृत्यु । -दोष-पु० घरकी उक्त पाँच की जगह सूत लगे होते थे, लाबुकी। -वेष्टन-पु० वस्तओंसे होनेवाली हिंसाका दोष । बुननेकी क्रिया; ढरकी। -शाला-स्त्री० सूत कातने, सूनिक, सूनी(निन्)-पु० [सं०] ब्याध; मांस बेचनेएकत्र करनेका कारखाना (को०)। -संचालक-पु० |
वाला। (वायर पुलर) वह राजनीतिज्ञ जो गुप्त रूपसे घटनाओंका | सन-पु० [सं०] बेटा बच्चा; नाती; छोटा भाई; सूर्य । सूत्रसंचालन करता हो, दुरभि-संधिक ।
सूनू-स्त्री० [सं०] बेटी ।
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