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घर-घर्राटा
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रागका स्थान; घरका माल-असबाब, घर-बार; घरका काम- -बिगाड़ना-घरको बिगाड़ना, बर्बादीकी ओर ले जाना; काज, गृहस्थी; चोट मारनेका स्थान; आँखका गोलक; घरमें फूट डालना । -बेचिराग़ हो जाना-कोई नामदाँव। -का-वि० अपने घरका, कुटुंबका (आदमी); लेवा न रह जाना। -बैठना-बाहर निकलना बंद कर अपना, निजका; आपसका। -गिरस्ती,-गृहस्थी- देना; एकांतवासी होना; नौकरी छोड़ देना; (वर्षासे) स्त्री० घरका काम-काज । -घाल,-घालन-वि० घर मकानका ढह जाना । (किसीके)-बैठना-किसीकी घालने, बिगाड़नेवाला । -घुसड़ा,-घुसना-वि० जो पत्नी या रखेली बनना । -बैठी रोटी-घर बैठे सदा घरमें घुसा, जनानखानेमें बैठा रहे । -जवाई- मिलनेवाली रोजी, पेंशन । -भरना-घरका धन-जनसे पु. वह दामाद जिसे सास-ससुर अपने घर रख लें। भरा होना; घरको धन-धान्यसे भरना; धन जोड़ना; माल -जाया-पु० गुलाम, गृहदास । -जोत-स्त्री० निजकी जमा करना। -भाँय-भाँय करना-सूनेपनके कारण खेती, खुदकाश्त । -दासी-स्त्री० गृहिणी, पत्नी । घरका डरावना लगना ।-में-पत्नी या पति (बो०)।-में -द्वार-पु० घर, वासस्थान; घरकी चीज-वस्तु, माल- डालना-रखेली बना लेना। -सिरपर उठा लेनाअसबाब; गृहस्थी । -फोड़नी-वि० स्त्री० घरमें झगड़ा बहुत शोर, ऊधम मचाना। -से-पाससे, गाँठसे । लगानेवाली । -फोरी*-वि० दे० 'घरफोड़नी'। -बसा -सेना-बेकार बैठे रहना ।-से पाँव निकालना-कुल-वि० दे० 'घर-घुसना' । पु० उपपति । -बसी-स्त्री० मर्यादाका अतिक्रमण करना, स्वच्छंदाचारी हो जाना। उपपत्नी । वि० स्त्री० सौभाग्यवती; घर बसानेवाली; घरका घरघराना-अ० क्रि० 'घर-घर'की आवाज निकलना । नाश करनेवाली (व्यंग्य)। -बार-पु० घर, वासस्थान; घरघराहट-स्त्री० 'घर-घर'की आवाज; गले में कफ होनेपर गृहस्थी; बाल-बच्चे घरकी चीज-वस्तु, माल-असबाब । साँस लेने में होनेवाली आवाज । -बारी-पु० बाल-बच्चोंवाला, गृहस्थ । -बैठे-अ० बिना घरणी-स्त्री० [सं०] दे० 'घरनी' । काम किये। -वात*-स्त्री० घरका सामान, चीज-वस्तु । घरनाल-स्त्री० एक तरहकी पुरानी तोप । -वाला-पु० गृहस्वामी, पति । -वाली-स्त्री० गृह- घरनी-स्त्री० गृहिणी, पत्नी। स्वामिनी, पत्नी । -हाई*-वि. स्त्री० घर में कलह | घरम-पु० दे० 'धर्म'। -कर-पु० सूर्य । कराने, घर बिगाड़नेवाली । मु०-आबाद होना-दे० घरयार*-पु० दे० 'घड़ियाल'। 'घर बसना'। -उजड़ना-घरका तबाह होना, घरके | घररना-अ० क्रि० रगड़ खाना, घिसना । धन-जनका नाश होना। -करना-अपने लिए जंगह घरसा*-पु० दे० 'घिस्सा'। निकालना; बसना; घर बनाना । -का अच्छा-खुश- घरा*-पु० दे० 'घड़ा'। हाल । -का आँगन हो जाना-खंडहर हो जाना घराऊ-वि० घरू, घरेलू । संतान उत्पन्न होना । -का उजाला-घरभरका प्यारा, घराती-पु० कन्यापक्षका आदमी, 'बराती'का उलटा । बहुत सुंदर ( बेटा); घरकी समृद्धिका कारण । -का काटे घराना-पु० कुल, वंश । खाना-घरका भयानक लगना । -का चिराग़-दे० घरिआ(या)री-पु० दे० 'घड़ियाल'। 'घरका उजाला'। -का न घाटका-जो कहींका न हो; घरिया-स्त्री० दे० 'घड़िया' । निकम्मा । -का बोझ उठाना,-सँभालना-घरका | घरियाना -स० क्रि० घरी लगाना, तह करना। काम-काज देखना, घर-बार सँभालना। -का भेदिया,- | घरियारी*-पु० घंटा बजानेवाला । का भेदी-धरके सब भेद जाननेवाला । -का मर्द,- | घरी-स्त्री० दे० 'घड़ी'; छोटा घड़ा; घड़िया; तह, लपेट । का शेर-जो घरमें ही बहादुरी दिखा सके, गेहेशूर । घरीक*-अ० घडीभर, छनभर । -की खेती-अपने यहाँ पैदा होनेवाली चीज; अपना घरुआ(वा) -पु० घरका अच्छा प्रबंध; चश्मा आदि माल । -की बात-घरका मामला; स्वजनोंसे संबंध | रखनेका डिब्बा। रखनेवाली बात; घरका भेद । -की मुर्गी दाल बराबर-घरू-वि० घरका, खानगी । घरकी अच्छी चीजकी भी कद्र नहीं होती। -के घर | घरेलू-वि० घरका; घरसे संबंध रखनेवाला; पालतू । रहना-किसी सौदे या रोजगारमें न घाटा होना, न घरैया-पु० स्वजन । वि० घरका; घनिष्ठ संबंधवाला। नफा । -के लोग-कुटुंबी; स्त्री-बच्चे । -घरका हो घरौंदा(धा)-पु० खेलनेके लिए बच्चोंका बनाया हुआ जाना-तितर-बितर हो जाना, मारे-मारे फिरना । मिट्टीका नन्हासा घर । -घालना-घर बिगाड़ना; घरकी प्रतिष्ठा नष्ट करना। | घरौना-पु० घर घरौंदा । -जमना-गृहस्थी ठीक होना। -डूबना-घर तबाह धर्म-पु० [सं०] धूप, घाम; ग्रीष्मकाल; पसीना; पतीली । होना । -तक पहुँचना-बाप-दादा बखानना; माँ- | | -चर्चिका,-विचर्चिका-स्त्री० घमौरी, अम्हौरी । बहिनकी गाली देना। ख लेना-बार-बार कुछ माँगने -जल,-वारि-पु० पसीना। -विंद-पु० श्रमसीकर । आना, परच जाना। -फूंक तमाशा देखना-घरको | घात-पु० [सं०] वर्षा ऋतुका आरंभ; वर्षाकाल । बरबाद कर, घरकी दौलत लुटाकर, मौज करना। घमाबु-पु० [सं०] पसीना। -फोड़ना-घरमें फूट डालना, झगड़ा लगाना ।-बसना घाशु-पु० [सं०] सूर्य। -घरका आबाद होना; घरमें स्त्रीका आना, ब्याह होना। घर्मोदक-पु० [सं०] पसीना। -बसाना-घरको आबाद कराना; शादी करा देना। घर्राटा-पु० खर्राटा (भरना)।
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