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घर्षक-पाल घर्षक-पु० [सं०] घिसनेवाला; पालिश करनेवाला। जानेका रास्ता; पहाड़; नाव या पुलकी उतराई, महसूल घर्षण-पु० [सं०] घिसना, रगड़ना; माँजना पीसना । ओर, तरफ; तलवारका बाढ़से ऊपरका भागः रंग-ढंग, घलना-अ० कि० मारा, फेंका जाना (तीर आदिका); चाल-ढाल । * वि० न्यून, कम, थोड़ा। + स्त्री० कपट; मार-पीट हो जाना।
कुकर्म । -कपतान-पु० बंदरगाहका बड़ा अफसर । घलाघल(ली)*-स्त्री० परस्पर आघात, मारपीट । -बंदी-स्त्री० नाव खोलनेकी मनाही। -वाल-पु० घलुआ-पु० घाल, घाता।
घाटिया, गंगापुत्र । मु०-घाटका पानी पीना-जगहघवद*-स्त्री० दे० 'घौद'।
जगह फिरना, भटकना; बहुतेरेकी बीबी बनना ।-धरनाघवरि*-स्त्री० दे० 'घौर'।
राह वेंकना । -नहाना-जिस घाट या तालाब आदिपर घसकना -अ० क्रि० खिसकना।
प्रेतकर्म किया जा रहा हो वहाँ नहाकर तिलांजलि देना। घसखुदा-पु० घास छीलनेवाला ।
-मारना-घाटका महसूल, उतराई न देना । घसना-स० क्रि०, अ० क्रि० दे० 'घिसना'।
घाटा-पु० टोटा, घटी, नुकसान ।-()का आयव्ययकघसिटना-अ०क्रि० घसीटा जाना।
पु० (डेफिसिट बजट) बह आयव्ययक जिसमें आयसे व्यय घसियारा-पु० घास खोदने, बेचनेवाला; तुच्छ आदमी।। अधिक दिखाया गया हो। घसियारिन, घसियारी-स्त्री० घास खोदने, बेचनेवाली स्त्री। | घाटारोह*--पु० बाटका अवरोध, घाटबंदी, घाटसे किसीघसीट-स्त्री० घसीटनेका भाव; जल्दी में लिखे हुए अक्षर को उतरने न देना। जिनकी शुद्धि और सुंदरताका खयान न रखा गया हो, घाटि*-वि० कम, न्यून । स्त्री० नीच कर्म; बुराई; कपट । शिकस्त लिखावट ।
घाटिया-पु० घाटपर बैठकर दान लेनेवाला ब्राह्मण । घसीटना-स० कि० किसी चीजको इस तरह खींचना कि घाटी-स्त्री० दो पहाड़ोंके बीचकी नीची जमीन, मैदान; वह जमीनसे रगड़ खाती हुई खिंचे किसीको किसी मामले दर्रा पहाड़का ढाल । -मार्ग-पु० (गॉर्ज) पहाड़ियोंके में उसकी इच्छाके विरुद्ध शामिल करना; जल्दी-जल्दी, बीचमें नदीकी धारा आदि द्वारा बनाया हुआ संकीर्ण पथ । घसीट लिखावट लिखना।।
घात-पु० [सं०] चोट, आघात,प्रहार; वध, हत्या; अहित; घहनाना-अ० क्रि० दे० 'घहराना।
गुणनफल; * टक्कर। घहरना-अ० कि० दे० 'घहराना।
घात-स्त्री० कार्यसिद्धिका अच्छा अवसर, ताक; दाँव-पेंच घहराना-अ० क्रि० गरजना, गड़गड़ाना ।
छल; चाल ।मु०-पर चढ़ना-में आना-बशमें आना, घहरानि*-स्त्री० घहरानेका भाव; गर्जन; गंभीर ध्वनि । दाँव पर चढ़ना। -में फिरना-ताकमें घूमना। -में घहरारा*-पु० धहरानेकी ध्वनि,गर्जन । वि० गरजनेवाला। बैठना-आक्रमण आदि करनेके लिए छिपकर बैठना । घहरारी*-स्त्री० दे० 'घहरानि'।
-में रहना-किसीके खिलाफ कोई काम करनेका मौका घाँ*-स्त्री० ओर, तरफ, दिशा।
ढूँढ़ते रहना । -लगना-अच्छा मौका मिलना । घाँघरा-पु. लहँगा; बोड़ा, लोबिया ।
-लगाना-ताकमें बैठना; आक्रमण आदिके अवसरकी घाँघरी-स्त्री० दे० 'घाँघरा'।
खोजमें रहना। घाँटी-स्त्री० गलेके अंदरकी घंटी, कौआ।
घातक-वि० [सं०] घात करनेवाला; कतल करनेवाला, घाँह, घाँही*-स्त्री० ओर, तरफ ।
हत्यारा हानिकर । पु० घात करनेवाला व्यक्ति । घा*-स्त्री० ओर, तरफ ।
घातकी-वि० दे० 'घातक' । घाइ -स्त्री० दे० 'धाव' ।
घाता-पु० घलुआ, घाल। घाइल*-वि० दे० 'घायल' ।
घाती(तिन्)-वि० [सं०] घात करनेवाला; नाशक । धाई *-स्त्री० ओर, तरफ; दो वस्तुओंके बीचकी जगह, घाती-वि० घातमें रहनेवाला; छली, विश्वासघाती। संधि; भँवर, बार, दफा ।
घान-पु० उतना अनाज जितना एक बार पीसने के लिए घाई-स्त्री० दो उँगलियोंके बीचकी जगह, अंटी; * धोखा; चक्की में डाला जाय, उतना तेलहन जितना एक बार दे० 'धाव'।
कोल्हू में डाला जाय; उतनी चीज जितनी एक बार भाड़घाउ*-पु० दे० 'घाव' ।
में भूनी या कड़ाहमें एक बार छानी जाय; आघात, चोट । घाउघप-वि० दूसरेका माल-जमा चुपचाप डकार जाने- घाना*-स० कि० मारना; नष्ट करना; पकड़ना । पु० वाला; जिसका भेद जल्दी न खुले, भारी चंट । | प्रहार युद्ध । घाघ-पु० भोजपुरी बोलीके एक कवि जिनकी कृषिकर्म, घानी-स्त्री० घान; ढेर । नीति आदि विषयकी कहावतें बहुत प्रसिद्ध है; बहुत | घाम-पु० धूप; पसीना । -निधि -पु० सूर्य । चालाक आदमी, काइयाँ; जादूगर ।
घामड़-वि० मूर्ख; आलसी; धूपका सताया हुआ (पशु)। घाघरा-पु. लहँगा । स्त्री सरयू नदी ।
घाय*-पु० दे० 'घाव। . घाट-पु० [सं०] नाव आदिसे उतरनेका स्थान; [हिं०] | घायक*-वि० नाश करनेवाला। नदी, झील आदिमें वह स्थान जहाँ लोग नहाये-धोयें, घायल-वि० जो चोट खाये हो, जख्मी, क्षतयुक्त, आहत । जानवर पानी पियें, धोबी कपड़ा धोयें; वह स्थान जहाँसे घाल-पु० ग्राहकको तौल या गिनतीके ऊपर दी जानेवाली नदी हलकर पार की जाय; पहाड़पर चढ़ने या उसके पार चीज, घलुआ । मु०-न गिनना-कुछ न समझना ।
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