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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुजुर्ग-बुनियादी कसाई, बूचड़ । -दिल-चि० डरपोक, भीरु ।-दिली- पू०४४७)। -गया-स्त्री० गयाके :पासका स्थान जहाँ स्त्री० कायरपन, भीरता। बुद्धको बुद्धत्व प्राप्त हुआ। -धर्म-पु० बौद्ध धर्म । - बुज़र्ग-वि० [फा०] बड़ा, वृद्ध; आदरणीय । पु० गुरुजन | पुराण-पु० पराशररचित ललितलघुविस्तर । संत, महात्मा पुरखा, बाप-दादा । बुद्धव-पु० [सं०] बुद्धपद। बुजर्गाना-वि० [फा०] बुजुर्गके अनुरूप, गुरुजनोचित । बुद्धागम-पु० [सं०] बौद्ध धर्मके सिद्धांत । बुज़र्गी-स्त्री० [फा०] बड़प्पन, बड़ाई । बुद्धि-स्त्री० [सं०] जानने, समझने और विचार करनेकी बुझना-अ०क्रि० (आग, दीपक आदिका) जलना बंद होना, शक्ति, समझ, अक्कु; अंतःकरणकी निश्चयात्मिका वृत्ति शांत होना; जलती चीजका ठंढा होना; बुझाया जाना; (वे.); प्रकृतिका पहला परिणाम, महत्तत्त्व । -कौशलशांत होना, मिटना (प्यास); (चित्तका) सुस्त, उदास पु० चतुराई । -गम्य,-ग्राह्य-वि. जो समझमें आ होना। सके। -चक्षु(स)-पु० प्रज्ञाचक्षुः धृतराष्ट्र । -जीविबुझाई-स्त्री० बुझानेकी क्रिया या उजरत; बूझनेकी क्रिया। वर्ग-पु० (इंटेलिजेंशिया) बुद्धिसे जीविका प्राप्त बुझाना-स० क्रि० आग या जलती हुई चीजको ठंढा करना, करनेवाले, दिमागी काम करनेवाले लोगोंका समुदाय । जलनेका अंत करना, गुल करना; जलती हुई चीजको -दोष-पु० समझकी कमी, खराबी ।-पर-वि० बुद्धिकी पानी में डालकर ठंढा करना; तलवार आदिको जहर मिले पहुँचके बाहर । -पुरस्सर-पूर्वक-अ० इरादा करके, हुए पानीमें डालकर ठंढा करना; शांत करना, मिटाना | इच्छा पूर्वक, सोच-समझकर । -बल-पु० बुद्धिका बल । (प्यास); समझाना; बूझनेका काम दूसरेसे कराना, पहेली -भ्रंश-पु० एक दोष या रोग जिसमें बुद्धि ठिकानेसे का उत्तर पृछना । * अ० क्रि० शांत होना; बुझना। काम नहीं करती। -योग-पु० झानयोग। -वादबुझीवल-स्त्री० किसी वस्तुका ऐसा अनोखा वर्णन जिसके पु० अन्य विषयोंकी तरह धर्ममें भी बुद्धि ही सर्वोपरि आधारपर उसका अर्थ बूझने, उत्तर देने या वस्तुका नाम प्रमाण है-यह मत (रैशनलिज्म)। -वादी(दिन)बताने में बहुत सोच-विचार करना पड़े, पहेली। वि० बुद्धिवादको माननेवाला। -विलास-पु० कल्पना । बुट*-स्त्री० दे० 'बूटी' । -वैभव-पु. बुद्धि की प्रखरता, बुद्धिबल। -शक्तिबुटना*-अ० कि० हटना, भागना । स्त्री० बुद्धिबल । -शाली(लिन)-वि० बुद्धिमान् । बुड़की*-स्त्री० डुबकी। -हीन-वि० निर्वृद्धि, नासमझ । बुड़ना*-अ० क्रि० बना। बुद्धिमत्ता-स्त्री० [सं०] बुद्धिमानी, समझदारी । बुदभस-स्त्री० बूढोंकी दिर्स, बुढ़ौतीमें जवानीकी उमंग।। बुद्धिमानी-स्त्री० दे० 'बुद्धिमत्ता' । बुड़ाना*-स० क्रि० दे० 'डुबाना'। बुद्धिमान्(मत्)-वि० [सं०] चतुर । बुड़बुड़ाना-अ० कि० कुड़बुड़ाना। बुद्धिवंत-वि० अक्लमंद, समझदार । बुड्ढा -वि० बूढ़ा। बुबुद-पु० [सं०] बुलबुला । बुढ़ाई-स्त्री० बुढ़ापा, वृद्धावस्था । बुधंगड़ -वि० मूर्ख। बुढ़ाना-अ० कि० बूढ़ा होना। बुध-पु० [सं०] पंडित, विद्वान सौरमंडलका एक ग्रह जो बुढ़ापा-पु० बूढ़ा होनेकी अवस्था, वार्धक्य, बुढ़ौती। पुराणोंके अनुसार चंद्रमाका बृहस्पतिकी पत्नी ताराके बुढ़िया-स्त्री० वृद्धा स्त्री, बूढ़ी। गर्भसे उत्पन्न पुत्र है; देवता; कुत्ता। -जन-पु. पंडित, बुढ़ौती-स्त्री० बुढ़ापा । विद्वान् । -जायी*-पु० बुधके पिता, चंद्रमा । -रत्नबुत-पु० [फा०] मूर्ति, प्रतिमा प्रेमपात्र, माशूक । वि. पु० पन्ना। -वार,-वासर-पु० मंगलवार और गुरुवारमूर्तिकी तरह जड़, निश्चेष्ट । खाना-पु० मंदिर। के बीचका दिन । -तराश-पु० मूर्तियाँ बनानेवाला । -परस्त-पु० मूर्ति बुधवान-पु० बुद्धिमान् । की पूजा करनेवाला। -परस्ती-स्त्री० मूर्ति-पूजा । - बुधि*-स्त्री० दे० 'बुद्धि' । शिकन-पु० मूर्तिको तोड़ने फोड़नेवाला, मूर्तिभंजक । बुध्य-वि० [सं०] जानने योग्य । मु०-बन (हो) जाना-मूर्तिकी तरह स्थिर और मौन बुनकर-पु० कपड़ा बुननेवाला । हो जाना। बुनना-स० क्रि० धागेसे कपड़ा बनाना, तानोंके सूतोके बुतना-अ० कि० बुझना; शांत होना । बीच बानेका सूत भरना; ऊन आदिके धागोंसे सलाईके बुताना-स० कि० बुझाना; शांत करना । अ० क्रि० दे० द्वारा मोजा, गुलूबंद आदि बनाना सुतली, बान, बेतके 'बुतना'। छिलके आदिसे जाली बनाकर चारपाई, कुरसी आदिकी बुताम-पु० बटन। खाली जगह भरना। बुत्त-वि० दे० 'बुत'। बुनवाना-सक्रि० वुननेका काम दूसरेसे कराना। बुत्ता-पु. झाँसा, दम। बुनाई-स्त्री० बुननेकी क्रिया; बुनावट; बुननेकी मजदूरी । बुदबुदा-पु० बुलबुला। बुनावट-स्त्री० बुननेका हंग, ताने-बानेका धना-झीना बुद्ध-वि० [सं०] जगा हुआ; ज्ञानी; पंडित विकसित । होना। पु० बौद्धधर्मके प्रवर्तक गौतम बुद्ध जो विष्णुके नवें अवतार | बुनियाद-स्त्री० [फा०] जड़, नी, आधार; आरंभ । माने जाते हैं, सिद्धार्थ (जन्म ई० पू० ५५७, निर्वाण ई० । बनियादी-वि० [फा०] मूलगत; नीवका कार्य देनेवाला, For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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