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बीजू-बुज़
५७८ बीजू-वि० बोजसे उत्पन्न; जो कलमी न हो (-आम)। | बीरना-पु० भाई, बीर; वीरण, खस । पु० दे० 'बिज्जू'।
बीरबहूटी-स्त्री० किलनीकी जातिका, गहरे लाल रंगका बीझ, बीझा*-वि० बीहड़, जनशून्य ।
एक बरसाती कीड़ा, इंद्रवधू । बीझना*-अ० कि० फँसना, उलझना।
बीरा*-पु० दे० 'बीड़ा'; प्रसादस्वरूप दिये जानेवाले बीट-स्त्री० चिड़ियोंका मैला।
फल-फूल आदि । बीड़-स्त्री० गुल्लीकी शकलमें रखे हुए रुपये।
बीरी*-स्त्री० पानका बीड़ा, मिस्सी; कानका एक गहना; बीड़ा-पु. पानकी गिलौरी; म्यानके मुँहके पास बँधी पत्तेसे बना हुआ सिगरेट । डोरी । मु०-उठाना-किसी कामका भार लेना, करनेकी बीरौ-पु०दे० विरवा'-'जस अशोक बोरी तर सीता'-५०। प्रतिज्ञा करना। -डालना,-रखना-किसी कठिन वील-वि० पोल । पु० नीची जमीन जहाँ पानी जमा कामका भार उठाने के लिए सामंतों, सरदारोंके सामने हो जाय; * मंत्र; बेल । पानका बीड़ा रखना। -देना-नाचने-गानेवालों आदि-| बीवी-स्त्री० [फा०] बीबी, स्त्री, पत्नी, गृहिणी । को साई देना।
बीस-वि० दसका दूना, उन्नीससे एक अधिक; बढ़कर, बीड़ी-स्त्री० छोटा बीड़ा; गठड़ी; पत्ते लपेटकर बनाया श्रेष्ठ । पु० बीसकी संख्या, २०; * विष । -बिस्वे-अ० हुआ सिगरेट; मिस्सी।
निश्चयपूर्वक, यकीनन; बहुत करके । बीतना-अ० क्रि० गुजरना, कटना; दूर होना; घटित बीसरना-अ० क्रि० स० क्रि० भूल जाना। होना पड़ना।
बीसी-स्त्री० वीसका समूह, कोड़ी; साठ संवत्सरोंके तीनबीता-पु० दे० 'बित्ता'।
मेंसे कोई विभाग; जमीनकी एक नाप । बीती-स्त्री० किसीके ऊपर बीती गुजरी हुई बात, घटित बीह-वि० दे० 'बीस'--'साँचहु मैं लबार भुजबीहा'घटना वृत्तांत ।
रामा। बीथि, बीधी-स्त्री० दे० 'वीथी' ।
बीहड़-वि० ऊबड़-खाबड़ विकट; विभक्त, जुदा । बीथित*-वि० दे० 'व्यथित' ।
बुंद-स्त्री०, पु० बूंद, वीर्य । बीधना*-अ०क्रि०दे० 'बि धना'। सक्रि०दे० 'बी धना' । बुंदकी-स्त्री० छोटी बिंदी या दाग । -दार-वि० जिसपर बीन-स्त्री० वीणा । -कार-पु० वीणावादक ।
बहुतसी बुंदकियाँ बनी हो । बीनना*-स० क्रि० चुनना; बुनना।
बुंदा-पु० टिकली; टिकलीके आकारका गोदना; कानका बीना-स्त्री० दे० 'वीणा'।
एक गहना; * बूंद । बीफै।-पु० बृहस्पतिवार ।
बुंदिया-स्त्री० 'बूंदी' नामक मिठाई । बीबी-स्त्री० भले घरकी स्त्री, कुलांगना; पत्नी; बेटी, स्त्री बुंदीदार-वि० जिसपर बिंदियाँ हों।
और छोटी ननदका आदरार्थक संबोधन; फातिमा। बुंदेलखंड-पु० बुंदेलोंका देश, भारतका वह भूभाग जिसमें बीभत्स-वि० [सं०] घृणा उत्पन्न करनेवाला; सड़ा-गला | उत्तर प्रदेशके उत्तर-पश्चिमके कुछ जिले और पन्ना, (मांसादि); पापी । पु० साहित्यके नौरसोंमेंसे एक जिसका छतरपुर आदिका क्षेत्र पड़ता है। स्थायी भाव जुगुप्सा है; घृणोत्पादक वस्तु; अजुन। बुंदेलखंडी-वि० बुंदेलखंडका । पु० बुंदेलखंडका निवासी । बीमा-पु० [फा०] मृत्यु, दुर्घटना, मालके रास्ते खो स्त्री० बुदेलखंडकी भाषा। जाने आदिको हानि भर देने, उसके बदले में नियत धन बुंदेला-पु० राजपूतोंका एक भेद जो बुंदेलखेडमें रहता है। देनेकी जिम्मेदारी (इंश्योरेंस)।-दार-पु. बीमा कराने- बँदौरी-स्त्री० बुंदिया नामकी मिठाई । वाला (पालिसी होल्डर) । -पत्रक-पु. (इंश्योरंस | बुआ-स्त्री० दे० 'बूआ'। पालिसी) बीमा करनेवाली संस्था और बीमा करानेवाले बुक-स्त्री० एक बारीक कपड़ा जो बकरमकी तरह कड़ा व्यक्ति या व्यक्तियोंके बीच हुए समझौतेका लिखित पत्र । होता है। पु० [सं०] हास्य । मु०-करना-क्षतिपूर्तिकी जिम्मेदारी लेना। (बीमे)की | बकचा-पु० [फा०] कपड़ेकी गठरी। पालिसी-बीमेका इकरारनामा ।
बुकची-स्त्री० छोटा बुकचा; दजियोंकी थैली जिसमें वे बीमार-पु० [फा०] वह व्यक्ति जिसे रोग हुआ हो,मरीज ।
° [फा०] वह व्यक्ति जिस राग हुआ हा मरोज।। सुई, तागा आदि रखते हैं। वि० रोगी; आशिक । -दारी-स्त्री० रोगीको सेवा, बुकटा, बुकट्टा-पु० दे० 'बकोटा'। तीमारदारी।
बुकनी-स्त्री० चूर्ग, सफूफ; चूर्णरूप रंग । बीमारी-स्त्री० [फा०] रोग, मर्ज; लत; झंझट । बुकवा -पु० उबटन। बीय, बीया-वि० दूसरा । पु० बीज ।
बुकुना*-पु० बुकनी; पाचक । वीर-वि० वीर, बहादुर । पु० वीर पुरुष; भाई; एक तरह- बुक्क-पु० [सं०] हृदय; हृदयस्थ अग्रमांस, बकरा; समय । का प्रेत । * स्त्री० सखी-'फिरत कहा है बीर बावरी वुक्कन-पु० [सं०] कुत्ते आदि जानवरोंका बोलना। भईसी'-हठी; कलाईका एक गहना; कानका एक गहना; बुक्का-पु० अभ्रकका चूर्ण । चरागाह; चरानेका कर ।
बुखार-पु० [अ०] भाप; ज्वर; भड़ास, दिलका गुबार । बीरउ*-पु० दे० 'बिरवा'।
बुग़चा-पु० [तु.] कपड़ोंकी गठरी, बुकचा । बीरज*-पु० दे० 'वीर्य' ।
बुज़-पु०, स्त्री० [फा०] बकरा, बकरी। -कसाब-पु०
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