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जनमेजयने किया था)। -राज-पु० वासुकि । -लता, - वल्ली - स्त्री० नागवल्ली । -विद् - वि० जिसे सपका ज्ञान हो । पु० सँपेरा। -विद्या- स्त्री० सर्प-संबंधी विद्या; साँपों को पकड़ने आदिकी विद्या । - विवर- पु० साँपका बिल । - वेद-पु० सर्पविधा ।-सत्-पु० दे० 'सर्पयश' । - हा ( हनू ) - पु० नेवला; गरुड़ । सर्पण -पु० [सं०] रेंगनेकी क्रिया; धीरेसे खिसकना; टेढ़ा चलना; बाणका जमीन के पाससे उसके समानांतर चलना । सर्पा - स्त्री० [सं०] साँपिन; फणिलता । सर्पाक्ष - पु० [सं०] रुद्राक्ष ।
सर्पाति - पु० [सं०] दे० 'सर्पारि' | सर्पारि - पु० [सं०] गरुड़; नेवला; मोर ।
सर्पावास - पु० [सं०] साँपके रहनेका स्थान; बामी; चंदन । सर्पाशन - पु० [सं०] मोर; गरुड़ |
सर्पि - पु० [सं०] धी; एक ऋषि ।
सर्पिणी - स्त्री० [सं०] साँपिन; एक लता, भुजगी । सर्पिल - वि० [सं०] साँपकासा; साँपकी तरह कुंडली मारे हुए ।
सर्पा * - पु० घी ।
सर्पी (र्पिन् ) - वि० [सं०] रेंगने, धीरे-धीरे चलनेवाला । सर्फ - पु० [फा०] फजूल खर्च, अपव्ययः [अ०] खर्च करना; बसर करना, बिताना । सफ़ - पु० [अ०] खर्च; अपव्ययः कंजूसी, खर्च में तंगी करना (फा० ) ।
सर्फी - वि० [अ०] व्याकरण जाननेवाला, वैयाकरण | सर्वस* - पु० दे० 'सर्वस्व' ।
सर्म* - स्त्री० दे० 'शर्म' ।
सर्राफ - पु० [अ०] सोना-चाँदी रुपये आदि परखनेवाला; दे० 'सराफ' ।
सर्राफ्रा - पु० दे० 'सरराफ़ा' ।
सर्राफ्री-स्त्री० दे० 'सरराफ़ी' |
सर्वंकष - वि० [सं०] सबको पीड़ित करनेवाला, निर्दय । पु० दुष्ट व्यक्ति; पाप ।
सर्वभरि - वि० [सं०] सबका भरण-पोषण करनेवाला । सर्व सहा - स्त्री० [सं०] पृथ्वी ।
सर्वर - वि० [सं०] सब कुछ ले जानेवाला ।
सर्व - वि० [सं०] सब, समस्त, समग्र, कुल । पु० शिव; विष्णु; एक मुनि; एक जनपद; जल । -कांचन - वि० खालिस सोनेका । - काम - वि० सब इच्छाएँ रखनेवाला; सब तरद्दकी इच्छा पूरी करनेवाला । पु० शिव; एक अर्हत् । - कामिक- वि० सारी इच्छाएँ पूरी करनेवाला; जिसकी सारी इच्छाएँ पूर्ण हों । - कामी (मिन् ) - वि० सारी इच्छाएँ पूरी करनेवाला; स्वेच्छापूर्वक काम करनेवाला; जिसकी सारी इच्छाएँ पूर्ण हों । -काम्यवि० सर्वप्रियः जिसकी हर एक व्यक्ति इच्छा करे । - कारी (रिन्) - वि० सब कुछ करनेवाला या करनेमें समर्थ । पु० सबका निर्माता । -काल- अ० सर्वदा, हमेशा । -कालीन - वि० सब कालका । - कृत्- वि० सर्वोत्पादक । - क्षमा- स्त्री० ( एमनेस्टी) किसी विशेष अवसरपर या विशेष कारणसे किसी कोटिके बहुतसे बंदि -
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सर्पण - सर्व
योंको क्षमा प्रदान कर कारागृहसे मुक्त कर देना । - क्षय- पु० सबका नाश, प्रलय । - क्षारनीतिस्त्री० ( स्कार्चड अर्थ पालिसी ) युद्ध भूमिमें पीछे हटनेवाली सेना द्वारा इमारतों, खेतों, पुलों, रेलों आदिका संपूर्ण विनाश जिससे शत्रु उनका प्रयोग न कर सके या उनसे लाभ न उठा सके, सर्वस्वादानीति । -गंध-वि० जिसमें हर तरह की गंध हो । पु० कपूर, कक्कोल, अगुर आदिका समाहार । -ग- वि० सब जगह जानेवाला, सर्वव्यापक । पु० ब्रह्म; आत्मा; शिव; जल । - गामी ( मिनू ) - वि० दे० 'सर्वग' । - ग्रंथि - ग्रंथिक- पु० पिप्पलीमूल । - ग्रह - वि० सब कुछ एक ही बार खा जानेवाला । - ग्रास - वि० सब खा जानेवाला । पु० खग्रास ग्रहण | - जनीन - वि० सबसे संबंध रखनेवाला, सार्वजनिक । - जनीय - वि० सबके हितका । - जित्- वि० सबको जीतनेवाला, अजेय । पु० मृत्यु । -जीवी (विन्) - वि० जिसके पिता, पितामह और प्रपितामह जीवित हों । - ज्ञ - वि० सब कुछ जाननेवाला । पु० ईश्वर; देवता । -ज्ञाता (तृ) - वि० सर्वज्ञ । -द- वि० सब देनेवाला । पु० शिव । - दम, दमन- वि० सबका दमन करनेबाला । पु० शकुंतलाका पुत्र, भरत । - दर्शी (शिंन्) - वि० सब कुछ देखनेवाला । पु० ईश्वर । -दाबि०, स्त्री० सब कुछ देनेवाली । - दाता (तृ) - वि० सव कुछ देनेवाला । - दान - पु० सर्वस्वका दान | - दिग्विजय - स्त्री० विश्वविजय । - देवमय - वि० जिसमें सब देव हों । पु० शिव । - देशीय - वि० सब देशोंसे संबद्ध; सब देशोंमें पाया जानेवाला । - द्रष्टा (ष्ट्र) वि० सर्वदशीं । - धन्वी (न्विन् ) - पु० कामदेव । - नाम(मन्) - पु० संज्ञाके स्थान में प्रयुक्त होनेवाला शब्द ( व्या० ) । -- नाश - पु० विध्वंस, बरबादी, तबाही। - नियंता (तृ) - पु० सबको अपने वशमें रखनेवाला । - पावन - वि० सबको पवित्र करनेवाला । पु० शिव । - पूजित - वि० सबके द्वारा पूजित । पु० शिव । पूतवि० पूर्णतः शुद्ध । - प्रद- वि० सब कुछ देनेवाला ।प्रिय - वि० जो सबको प्रिय हो, लोकप्रिय; जिसे सब प्रिय हों । - अंधविमोचन - वि० सभी बंधनोंसे मुक्त करनेवाला । पु० शिव । -भक्षी (क्षिन्) - वि० सब कुछ खानेवाला । पु० अग्नि । - भोगी (गिन् ) - वि० सबका भोग करनेवाला; सब कुछ खानेवाला । - भोग्य - वि० सबके लिए लाभदायक, सबके भोगके योग्य । - मंगलास्त्री० दुर्गा; लक्ष्मी । -रक्षी ( क्षिन् ) - वि० सबकी रक्षा करनेवालां । - रसोत्तम - पु० नमक । -वल्लभवि० जो सबको प्रिय हो । -वल्लभा - स्त्री० असती नारी, व्यभिचारिणी । -विद् - वि० सर्वश | पु० ईश्वर । - विद्य- वि० सारी विद्याएँ जाननेवाला, सर्वज्ञ । - वेत्ता (तृ) - वि० सर्वज्ञ । - व्यापक - वि० सबमें रहनेवाला । - व्यापी (पिन) - वि० दे० 'सर्वव्यापक' । पु० ईश्वर; एक रुद्र । - शक्तिमान् ( मत्) - वि० सब कुछ करनेकी शक्ति युक्त । पु० ईश्वर । - शून्य - वि० बिलकुल रिक्त; सबको अस्तित्वरहित माननेवाला । - श्राव्य - वि० सबके सुनने योग्य । -श्री- वि० आदर
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