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सरिस्वान्-सर्प
८२४ सरित्वान् (स्वत्)-पु० [सं०] समुद्र ।
सरोष-वि० [सं०] ऋद्ध, कुपित । सरियाना-स० क्रि० तरतीबसे रखना, व्यवस्थित करना; सरोही-स्त्री० दे० 'सिरोही'। बटोरकर ठीक तरहसे रखना ।
सरौता-पु० सुपारी काटनेका एक औजार । सरिवन-पु० एक ओषधि, शालपर्ण ।
सरीती-खी० छोटा सरौता; एक तरहका ऊख । सरिवर, सरिवरि*-स्त्री० बराबरी, समता ।
सर्कस-पु० [अं॰] वह स्थान जहाँ नृत्य, शौर्य आदिके सरिश्त-स्त्री० [फा०] सृष्टि; बनावट; प्रकृति, स्वभाव । प्रदर्शनके साथ सिखाये हुए जानवरोंके खेल दिखाये जायें; सरिश्ता-पु० [फा०] दफ्तर, महकमा; कचहरी रीति | नटों और पशुओंके खेलोंका प्रदर्शन करनेवाली मंडली। उपाय । -दार-पु० दफ्तरका प्रधान; माल और दीवानी | सर्कार-स्त्री० दे० 'सरकार'। दफ्तरोंका एक विशेष कर्मचारी।
सर्ग-पु० [सं०] त्याग रचना, निर्माण सृष्टि; प्रकृति सरिस-वि० समान, तुल्य, बराबर ।
प्रवृत्ति स्वभाव; (काव्य) ग्रंथका अध्यायः कूच; आक्रमण सरी-स्त्री० [सं०] छोटा सरोवर सोता, झरना ।
मतस्याग; मूल, उद्गम; प्रजनन; संतान उथम, चेष्टा; सरीका-वि० दे० 'शरीक' ।
(किसी तरल पदार्थका) प्रवाह; गति प्राणी। -कर्तासरीकता*-स्त्री०साझा, शिरकत ।
(र्तृ)-पु० सृष्टिकर्ता । -बंध-पु० सर्गों में विभक्त सरीखा-वि० समान, सहश ।
महाकाव्य। सरीफा-पु० दे० 'शरीफा' ।
सर्ग*-पु० दे० 'स्वर्ग'। -पताली-वि० ऐंचाताना। पु० सरीर*-पु० दे० 'शरीर'।
वह बैल जिसका एक सींग ऊपर गया हो और दूसरा सरीसृप-वि० [सं०] रेंगनेवाला । पु० रेंगनेवाला कीड़ा, नीचे झुका हो। साँप आदि।
सर्गुन -बि० दे० 'सगुण' । सरीहन्-अ० [अ०] खुले तौरपर ।
सर्चलाइट-स्त्री० [अं॰] बिजलीकी तेज रोशनी जिसे सरुज-वि० [सं०] रोगयुक्त, रोगी।
प्रकाशपरावर्तक द्वारा बहुत दूरतक फैलाया जाता है, सरुष-वि० [सं०] क्रुद्ध, कुपित ।
अन्वेषक प्रकाश, प्रकाश-प्रक्षेपक (जो जहाज आदिमें सरुहना*-अ० क्रि० सुधरना, अच्छा, ठीक होना। लगाया जाता है)। सरुहाना*-स० कि० अच्छा, चंगा करना।
सर्ज-स्त्री० [अं॰] एक तरहका बढ़िया गरम कपड़ा। पु. सरूप-वि० [सं०] साकार, रूपवाला; एक हो रूपका; [सं०] शालवृक्ष; धूना; सलईका पेड़। -निर्यासक,
समान, तुल्य, एक सा; सुंदर । * पु० दे० 'स्वरूप' । रस-पु० धूना । सरूपता-स्त्री०,सरूपत्व-पु० [सं०] तुल्यरूपता,साहश्य। सर्जन-पु० [सं०] त्याग, छोड़ना; निर्माण, रचना, सृष्टि । सरूर-पु० दे० 'सुरूर'।
सर्जू-स्त्री० सरयू नदी। सरेख*:-वि० उम्र में बड़ा और चालाक; सज्ञान ।
सर्त -स्त्री० दे० 'शर्त'। सरेखना-सक्रि० सहेजना, सँभालनेके लिए प्रवृत्त करना। सर्द-वि० [फा०] ठंढा; फीका, बेमजा; उदास, बेरौनक सरेखा* -वि० दे० 'सरेख'-'हँसि हँसि पूछहि सखी | (ला) निरुत्साह निर्जीव ।-गर्म-वि० ऊँच-नीच काल सरेखी'-प० ।
या दशाके उलट-फेर । (मु०-गर्म झेलना-दुनियाके सरेश-पु० [फा०] एक लसदार पदार्थ जो पशुओंके चमड़े भले-बुरे, दशाके परिवर्तनोंका अनुभव प्राप्त करना। आदिसे तैयार किया जाता है । वि० लसदार ।
-गर्म देखे हुए होना-जमाना देखे हुए होना) । सरेस-पु० दे० 'सरेश'।
-बाज़ारी-खी०बाजारका ठंडा होना, माँग या पूछ न सरौंट*-स्त्री० कपड़ोंकी सिलवट, सिकुड़न ।
होना । -मिज़ाज-वि० शीतप्रकृतिः उत्साहहीन; सरो-पु० बनझाऊ, एक सुंदर, सुडौल पेड़ जो सीधा बेमुरौवत । मु०-हो जाना-ठंढा हो जाना; गरमी दूर बढ़ता और ऊपरकी ओर गावदुम होता है (उर्दू फारसी हो जाना; मर जाना। कवितामें कद या सुंदर देह-यष्टिका उपमान ।
सई-वि० सर्वेके रंगका, हरापन लिये हुए पीला । सरोई-पु० एक ऊँचा पेड़ ।
सर्दा-पु० [फा०] खरबूजेका एक भेद । सरोकार-पु० [फा०] लगाव, वास्ता प्रयोजन । सर्दार-पु० दे० 'सरदार'। सरोकारी-वि० [फा०] सरोकार रखनेवाला।
सर्दी-स्त्री० ठंढा, जाड़ा; जाडेका मौसिम; जुकाम जुड़ी। सरोज-वि० [सं०] ताल आदिमें उत्पन्न । पु. कमल । -गरमी-स्त्री० जाड़ा-गरमी । मु०-खाना-ठंढ लगना; -मुखी-स्त्री० कमलके समान मुखवाली स्त्री।
ठंढसे कष्ट पाना। सरोजना*-स० क्रि० पाना।
सर्प-पु० [सं०] रेंगना, सरकना; गमन साँप; म्लेच्छोंकी सरोजिनी-स्त्री० [सं०] कमलोंसे भरा तालाब; कमल- एक जाति । -कोटर-पु० साँपका बिल । -गृह-पु० समूह कमलका पौधा।
साँपका बिल । -फेण-पु० अफीम । -बेलि-स्त्री० सरोता*-पु० श्रोता; सरौता।
[हिं०] नागवल्ली, पान । -भक्षक-पु० मयूर नकुलसरोद-पु० [फा०] एक बाजा।
कंद। -भुक(ज)-पु० मयूर सारसः गरुड़ नकुलसरोरुह-पु० [सं०] कमल ।
कंद । -मणि-पु. सर्पके सिरपर पाया जानेवाला सरोवर-पु० [सं०] तालाब, ताल, झील ।
मणि। -यज्ञ-याग-पु० सपोंके नाशका यज्ञ (जो
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