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ओछाई - ओलिक
ओछाई - स्त्री० छिछोरापन, हलकापन; क्षुद्रता, खोटाई । ओज (स्) -पु० [सं०] शुक्रकी सारभूत और शरीरको कांति, तेज देनेवाली धातु; बल; वीर्य; तेज; कांति; जल; आविर्भाव; रचनाका वह गुण जिससे पढ़ने-सुननेवालेके हृदय में उत्साह या जोश पैदा हो; शस्त्रकौशल । ओजना + - स० क्रि० सहना, झेलना, अंगेजना । ओजस्विता - स्त्री० [सं०] प्रताप; तेज; दीप्ति; प्रभाव; वर्णनका प्रभावोत्पादक ढंग ।
ओधना* अ० क्रि० (काममें) लगना; फँसना, उलझना । ओनंत* - वि० भवनत, झुका हुआ। ओनचन - स्त्री० अदवान, पैतानेकी रस्सी । ओनचना - स० क्रि० पैतानेकी रस्सी खींचकर कड़ी करना । ओनवना* - अ० क्रि० झुकना; घिर आना; टूटना । ओना* - पु० पानी निकलनेका रास्ता । ओनाना * - स० क्रि० कान लगाकर सुनना; झुकाना, प्रवृत्त करना; आदेशका पालन करना ।
ओजस्वी ( स्विन्) - वि० [सं०] ओजभरा; जोश पैदा | ओनामासी - स्त्री० अक्षरारंभ; आरंभ ( 'ॐ नमः सिद्धम्'करनेवाला; बल-वीर्य-शाली ।
का बिगड़ा हुआ रूप ) ।
ओझ - पु० पेट; आमाशय, अँतड़ी ।
ओझड़ी (री) - स्त्री०, ओझर - पु० पेट; आमाशय, मेदा ओझल - पु० ओट, आड़ ।
ओप - स्त्री० चमक, कांति, आब; जिला, पालिश । ओपची - पु० कवचधारी योद्धा; रक्षकयोद्धा । ओपना - स० क्रि० चमक लानेके लिए माँजना, रगड़ना, पालिश करना | अ० क्रि० चमकना, आब आना । ओपनि* - स्त्री० झलक, चमक। - वारी - वि० स्त्री० चमकवाली ।
ओझा - पु० झाड़-फूँक करनेवाला; ब्राह्मणोंकी एक उपजाति । ओझाई - स्त्री० झाड़-फूँक या उसकी उजरत; ओझाका काम । ओट-स्त्री० आड़; रोक; शरण, सहारा । ओटना - स० क्रि० रुईसे बिनौलेको अलग करना; किसी ओपनी स्त्री० ईंट या पत्थरका टुकड़ा जिससे तलवार आदि बातको बार-बार कहना; ऊपर लेना, ओढ़ना ।
ओटनी - स्त्री० वह चरखी जिसमें दबाकर रुईसे बिनौलेको अलग करते हैं ।
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माँजी जाय; मोहरा ।
ओन-अ० [अ०] दे० 'उफ़' ।
ओद - वि० गीला, भीगा हुआ । पु० गीलापन, तरी । ओदन - पु० [सं०] भात; बादल । ओदर* - पु० दे० 'उदर' ।
ओदरना* - अ० क्रि० फटना; गिर पड़ना; नष्ट होना । ओदा - वि० गीला, नम ।
ओदारना * - स०क्रि० गिराना, ढाना; फाड़ना; नष्ट करना ।
ओबरी - स्त्री० तंग कोठरी, ऐसी कोठरी जिसमें हवा और रोशनी के लिए रास्ता न हो ।
ओटा - पु० परदे के लिए बनी हुई दीवार । ओठंगना । - अ० क्रि० किसी चीजका सहारा लेकर बैठना; ओम् - पु० [सं०] वेदपाठके पहले और पीछे कहा जानेवाला सुस्ताने के लिए लेटना । पवित्र शब्द, प्रणव, ॐ ।
ओ गाना - सु० क्रि० टिकाकर रखना; साँकल आदि ओर - स्त्री० तरफ, दिशा, पक्ष । पु० छोर; अंत; आरंभ ।
लगाये बिना ही किवाड़ से किवाड़ लगा देना । ओठ-पु० ओठ, होंठ ।
मु० - निबाहना, - निभाना - अंततक कर्तव्य पूरा करना । ओरती* - स्त्री० दे० 'ओलती' |
ओड़ - पु० गधेपर मिट्टी, चूना आदि ढोनेवाला ।
ओड़न* - पु० वह चीज जिससे वार रोका जाय, ढाल, फरी । ओड़ना - स० क्रि० रोकना, ऊपर लेना; (हाथ) पसारना । ओड़ा। - पु० बड़ा टोकरा; ओंडा; टोटा; टोकरेका मान । ओढ़ना - स० क्रि० किसी कपड़े, खाल आदिसे बदनको ढँकना, छिपाना; अपने ऊपर, जिम्मे लेना । पु० ओढ़नेकी चीज । मु० - उतारना - अपमानित करना । - ओढ़ानाविधवा स्त्रीके साथ सगाई करना । - बिछौना बना लेनाहर वक्त काममें लाना; लापरवाहीसे बरतना । ओढ़नी - स्त्री० स्त्रियोंके ओढ़नेका छोटा दुपट्टा | मु० - बदलना-सहेली बनाना, बहनापा जोड़ना । ओढ़र* - पु० बहाना, व्याज ।
ओढ़ाना - स० क्रि० (दूसरेको) कपड़े से ढकना । ओत- स्त्री० आराम, चैन; लाभ, प्राप्ति । वि० [सं०] बुना हुआ; गुंथा हुआ । पु० तानेका सूत । -प्रोत - वि० ताने-बानेकी तरह बुना या गुंथा हुआ; भरा हुआ । पु० ताना-बाना | ओता* - वि० उतना ।
ओरमना* - अ० क्रि० झुकना; लटकना, झूलना। ओरमाना * - स० क्रि० झुकाना; लटकाना । ओरा* - पु० ओला ।
ओराना। - अ० क्रि० समाप्त होना, चुकना । ओरिया । - स्त्री० दे० 'ओरी' | भरी-स्त्री० ओलती ।
ओलंबा* - पु० दे० 'ओलंभा' । ओलंभा* - पु० उलाहना, शिकायत |
ओल-स्त्री०आड़; आश्रय; गोदः शरण; किसी बातकी जमानत में रखी या रोक रखी गयी चीज या आदमी; जमानत; बहाना । वि० [सं०] गीला, नम । पु० सूरन । ओलचा - पु० लकड़ीका दस्तेदार पात्र जो खेतको छिड़ककर सींचने के काम आता हैं, हत्था; छिछली दौरी जिससे पानी उलीचने या अनाज ओसानेका काम लेते हैं । ओलती-स्त्री० छप्पर या छाजनका छोर जहाँसे वर्षाका पानी जमीनपर गिरता है। मु० तलेका भूत - पास रहनेवाला आदमी जो घरके सब भेद जानता हो । ओलना * - स० क्रि० परदा करना; रोकना; चुभाना; ओड़ना, ऊपर लेना ।
ओला- पु० जमे हुए जलकणों या बर्फका गोला जो जाड़ेकी वर्षा में कभी-कभी गिरता है, बिनौली, उपल; मिश्री या दानेदार चीनीका बना हुआ गोला लड्डू; भेद; परदा । वि० बहुत ठंडा, बर्फसा ठंडा । ओलिक * - पु० आड़, परदा ।.
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