SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाह-बिखम ५७० दिनोंका। -मुहँ-वि० जिसने सबेरेसे कुछ खाया न ग्रहण करना आरंभ होता है । हो। अ० बिना कुछ खाये, खाली पेट । मु०-कढ़ीमें बिंदुरी, बिदुली-स्त्री० बिंदी, टिकली। उबाल आना-बुढ़ापेमें जवानीका जोश जगना; समय बिंध-पु० दे० 'विंध्याचल'। बीत जानेपर कुछ करनेकी इच्छा होना। | बिँधना-अक्रि० बींधा जाना; उलझना । सक्रि० छेदना। बाह*-पु० प्रवाह निकास, उपाय । स्त्री० खेतकी जुताई, बिब-पु० [सं०] अकस, प्रतिच्छाया; कमंडलु; सूर्य या जोत । वि०ढ़, सशक्त। चंद्रमाका मंडल; कुंदरू; गिरगिट झलक मंडल जैसा कोई बाहक-पु० दे० 'वाहक'; * सवार । तल; उपमेय; आईना; * बाँबी । -फल-पु. कुंदरू। बाहकी-स्त्री० पालकी ढोनेवाली कहारिन । बिंबक-पु० [सं०] चंद्रमा या सूर्य का भंडल; कुंदरू । बाहन-पु० दे० 'वाहन'; एक पेड़ । बिंबा, बिंबी-स्त्री० [सं०] कुंदरकी लता। बाहना-* स० क्रि० ढोना; हाँकना; फेंकना; मारना; खेत | बिंबित-वि० [सं०] प्रतिबिंबित । जोतना + गाय आदिको गाभिन कराना। अ० क्रि० बिंबोष्ट, बिंबोष्ट-वि० [सं०] जिसके होठ कुंदरकी तरह बहना। लाल हो । पु० कुंदरू जैसा लाल होठ । बाहनी*-स्त्री० नदी; सेना । बि, बिअ*-वि० दो। बाहर-अ० स्थान या वस्तुविशेषकी सीमाके उस पार; बिआजी-पु० सूद; बहाना । अंदरका उलटा; अलग; दूर, अन्यत्र;-से अधिक (बूतेसे | विआधा-पु. व्याधा । स्त्री० व्याधि । बाहर)। पु० बाह्य रूप, ऊपरी भाग परदेश ।-का-वि० बिआधि*-स्त्री० दे० 'व्याधि' । जो धरका न हो, गैर; ऊपरका । -जामी*-पु० ईश्वरका बिआना-सक्रि० जनना । अनि पशुका बच्चा जनना। सगुण रूप । -बाहर-अ० ऊपर-ऊपर; दूर-दूर । बिआहना*-स० क्रि० ब्याह करना । -भीतर-अ० अंदर और बाहर । -वाला-पु० भंगी। बिकट-वि० दे० 'विकट' । वि० बाहरी । -वाली-स्त्री. भंगिन । -से-ऊपरसे, बिकना-अ०वि० बेचा जाना, दाम लेकर दिया जाना; जाहिरा; दूसरे स्थान, परदेशसे । मु०-करना-निकाल | * मुग्ध होना। देना, अलग करना, बहिष्कृत करना । -की हवा | बिकरम* -पु० दे० 'विक्रम'; दे० 'विक्रमादित्य' । लगना-बाहरवालोंका असर पड़ना; आवारा होना। बिकरार*-वि० बेकरार, विकल; दे० 'विकराल' । बाहरी-वि० याहरका पराया; अजनबी; दिखाऊ । बिकराल-वि० भयंकर, भीषण । बाहाँजोरी*-१० हाथसे हाथ मिलाये हुए । बिकल-वि० विकल, बेचैन । बाहिज*-अ० बाहरसे, ऊपरसे । बिकलाई, बिकलाई*-स्त्री० विकलता, बेचैनी। बाहिनी-स्त्री० सेना; सवारी। विकलाना*-अ०क्रि० व्याकुल होना । सक्रि० व्याकुल बाहिय*-अ० बाहर । करना। बाह-स्त्री० [सं०] बाँह, भुजा । -ज-पु० क्षत्रिय तोता। बिकवाना-स० कि० बेचनेका काम दूसरेसे कराना -त्र-त्राण-पु० बाहुपर बाँधा जानेवाला वर्म-दंड- बिकने में सहायता करना। पु० भुजदंड । -पाश-पु० बाँहोंको फैलाकर हथेलियोंको बिकसना-अ० क्रि० खिलना, फूलना; प्रसन्न होना; मिला लेनेसे बननेवाला घेरा, आलिंगन करते समय फूटना, फटना। बाहुओंकी मुद्रा। -प्रलंब-वि० जिसकी भुजाएँ बहुत बिकसाना-स० क्रि० विकसित करना; प्रसन्न करना। लंबी हो। -बल-पु. भुजबल, शरीरवल; पराक्रम । * अ० क्रि० दे० 'बिकसना' । -भूषण-पु०,-भूषा-स्त्री० भुजबंद, केयूर । -मूल- | बिकाऊ-वि० जो बेचा जानेवाला हो । पु० कंधे और बाँहका जोड़।-युद्ध-पु० कुश्ती, भिड़त । बिकाना-अ० कि० बिकना; वश होना। स० क्रि० -लता-स्त्री० लता जैसी बाँह सुकुमार बाहु । हजार*- खरीदना। पु० दे० 'सहस्रबाहु । बिकार-पु० दे० 'विकार' । * वि० विकृत । बाहुरना*-अ० क्रि० मुड़ना, लौटना, वापस आना। बिकारी-स्त्री० मन, सेर, रुपये आदिके चिह्नरूप टेढ़ीपाई। बाहुल्य-पु० [सं०] बहुतायत, इफरात; बहुरूपता । वि० दे० 'विकारी'। बाह्य-अ० बाहर, परे । वि० [सं०] बाहरी; गैर, बेगाना; बिकास-पु० दे० 'विकास'। बहिर्गत, बहिष्कृत, ऊपरी, दिखाऊ ।-रति-स्त्री० आलिं- | बिकासना*-स० कि.विकसित करना, खोलना । अ० गन, चुबन आदि ।-रांगी-पु० दे० 'बहिर्वासी रोगी'। क्रि० विकसित होना; प्रकट होना । बाह्याचरण-पु० [सं०] ढकोसला। बिकुंठ*-पु० वैकुंठ । बिंजन* -पु० दे० 'व्यंजन'। बिक्ख*-पु० विष। बिंद*-पु० विदु, बूंद; भ्रमध्य; बिंदी । बिक्रम-पु० दे० 'विक्रम'। बिंदा-पु० बड़ी बिंदी। स्त्री० दे० 'वृंदा'। बिक्रमी-वि० दे० 'विक्रमी' । बिंदी-स्त्री० सुन्ना, सिफर; नुक्ता; गोल टीका । बिक्री-स्त्री० देचा जाना, विक्रय विक्रीकी आय । बिंदु-पु० [सं०] बूंद; बिदी; शून्य; अधरक्षत; भ्रमध्य; | बिख*-पु० दे० 'विष' । नाटकका बह स्थल जहाँ गौण घटनाओंका विस्तृत रूप | बिखम-वि० दे० 'विषम' । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy