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ईरखा-उऋण न रहना-धर्मपर दृढ़ न रहना। -डिगना-नीयतमें ईश्वर-पु० [सं०] स्वामी; राजा; धनी या बड़ा व्यक्ति खामी आना। -बिगड़ना,-में फर्क आना-नीयत | पति; जगन्नियंता, परमेश्वर; आत्मा एक संवत्सर; शिव । बिगाड़ना; धर्ममें सच्ची निष्ठा न रहना। -लाना-किसी वि० ऐश्वर्ययुक्त; शक्तिमान् ; समर्थ; धनी। -निष्ठ-वि० मत, सिद्धांत या धर्मकी सचाई पर विश्वास करना; उसे ईश्वर में विश्वास करनेवाला। धर्मरूपमें स्वीकार करना।
| ईश्वरा-स्त्री० [सं०] ईश्वरी; दुर्गा; लक्ष्मी या कोई शक्ति । ईरखा*-स्त्री० दे० 'ईा'।
ईश्वराधीन-वि० [सं०] ईश्वरकी इच्छापर अवलंबित। . ईरमद*-पु० बिजली; वज्राग्नि वडवाग्नि ।
ईश्वरी-स्त्री० [सं०] दुर्गा; लक्ष्मी; कोई शक्ति। [हिं०] वि०दे० ईरानी-वि० [फा०] ईरान या फारस देशका। पु० ईश्वरीय-वि० [सं०] ईश्वरका ईश्वर-संबंधी। ['ईश्वरीय'। ईरानवासी।
ईषत्-वि० [सं०] थोड़ा। अ० कुछ-कुछ, आंशिक रूपमें । ईर्षणा*-स्त्री० दे० 'ईर्ष्या'।
ईषदुष्ण-वि० [सं०] थोड़ा गरम, कुनकुना। ईर्षा-स्त्री० [सं०] दे० 'ईर्ष्या' ।
ईषना*-स्त्री० एषणा; बलवती इच्छा। ईर्षित-वि० [सं०] जिससे ईर्ष्या की गयी हो।
ईस*-पु० दे० 'ईश'। ईर्ष्या-स्त्री० [सं०] दूसरेकी बढ़ती न देख सकना, डाह, ईसन-पु० ईशान कोण । जलन ।
ईसब(र)गोल-पु० दे० 'इसबगोल' ईर्ष्यालु-वि० [सं०] ईर्ष्या करनेवाला ।
ईसर*-पु० महादेव; ऐश्वर्य । ईयु-वि० [सं०] डाह करनेवाला ।
ईसवी-वि० [अ०] ईसासे संबंध रखनेवाला, मसीही। ईश-पु० [सं०] स्वामी, मालिक राजा; पति ईश्वर शिव -पु० ईसाके जन्मकालसे चला हुआ सन् ।
एक रुद्र; ११की संख्या । वि० ऐश्वर्ययुक्त समर्थ । ईसा-पु० [अ०] ईसाई धर्मके प्रवर्तक, मसीह । ईशता-स्त्री० [सं०] प्रभुत्व, स्वामित्व ।
ईसाई-पु० [अ०] ईसा-प्रवर्तित धर्मको माननेवाला। ईशा-स्त्री० [सं०] ऐश्वर्यः अधिकार; ऐश्वर्ययुक्त स्त्री; दुर्गा। ईसान*-पु० ईशान कोण । ईशान-पु० [सं०] शिव; एक रुद्र; उत्तर-पूर्वका कोना ईहा-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाहा उद्यम, चेष्टा । -मृग-पु० ईशिता-स्त्री०, ईशित्व-पु० [सं०] ईश्वरत्व प्राधान्य भेड़िया रूपकका एक भेद जिसमें चार अंक होते हैं । आठ सिद्धियोंमेंसे एक ।
। ईहित-वि० [सं०] चाहा हुआ, अभिलषित; चेष्टित ।
उ-देवनागरी वर्णमालाका पाँचवा (स्वर) वर्ण । इसका | उँचान*-पु० ऊँचाई । उच्चारणस्थान ओष्ठ है।
उचाना*-स० क्रि० ऊँचा करना, ऊपर उठाना। उ-अ० प्रश्न, क्रोध आदिका सूचक एक अव्यक्त शब्द । उँचाव-पु० ऊँचाई। उँखारी -स्त्री० दे० 'उखारी' ।
उंचास-वि०, चालीस और नौ, ४९ । पु० ४९की संख्या। उँगनी-स्त्री० ओंगने अर्थात् गाड़ीकी धुरीमें तेल देनेकी किया। उँचास-स्त्री० ऊँचाई। उंगल*-पु० दे० 'अंगुल'।
उंछ-पु० [सं०] खेतमें (लुनाईके बाद) या रास्तेमें पड़े हुए उँगली-स्त्री० हाथके फलीके आकारवाले अंतिम भाग जो दाने जीविकाके लिए चुनना, सीला बीनना। -वृत्तिछोटी चीजोके पकड़ने-उठाने आदिके साधन होते है। पाँवके | स्त्री० खेतमें छूटे हुए दाने चुनकर गुजर करना । वि० इस ऐसे ही भाग, अंगुली । मु०-उठना-बदनामी होना, प्रकार निर्वाह करनेवाला। -शील-वि० उंछवृत्तिसे उपहासका पात्र होना। -उठाना-दोष, लांछन लगाना; जीविका करनेवाला। बदनाम करना; बुरी निगाह, हानि पहुँचानेकी दृष्टिसे उजरिया-स्त्री० चाँदनी रोशनी। वि० स्त्री० उजेली । देखना । -करना-परेशान करना, सताना ।-चटकाना उजियार*-पु० प्रकाश । वि० प्रकाशमान; उज्ज्वल । -उँगलियोंसे चट-चट शब्द करना। -चमकाना-उँग- उजियारी, उज्यारी-स्त्री० चाँदनी, प्रकाश। वि० स्त्री० लियोंको हिलाना। -पकड़ते पहुंचा पकड़ना-थोड़ा प्रकाशयुक्त । पाकर अधिक पानेका प्रयत्न करना, किप्तीकी भलमनसीका उँजेरा, उँजेला-पु०, वि० दे० 'उजेला'। अनुचित लाभ उठानेका यल करना ।-रखना-(किसीकी उँटड़ा(रा)-पु० गाड़ीका अगला भाग जमीनपर टिकानेके कृतिमें) दोष दिखाना।-लगाना-(किसी काममें) नाम- लिए जूएके नीचे लगायी जानेवाली लकड़ी। मात्र सहायता या सहारा देना, हाथ लगाना ।-(लियाँ) उडेलना-स० क्रि० दे० उड़ेलना' । नचाना-उँगलियाँ चमकाना । -(लियों) पर नचाना- | उंदुर, उंदुरु-पु० [सं०] चूहा ।
म कराना, इशारोपर नचाना हेरान करना।। उह-अ० अस्वीकार, घृणा, वेदना आदिका सूचक शब्द । उघाई-स्त्री० ऊँधनेकी क्रिया, झपकी ।
उअना*-अ० क्रि० उगना, उदय होना। उंचन-स्त्री० अदवान ।
उआना*-स० क्रि० उगाना; हाथ या हथियार उठाना । उंचना-स० क्रि० अदवान कसना
उऋण-वि० ऋणमुक्त; जो किसीके प्रति अपने कर्तव्यका उँचाई-स्त्री० ऊँचापन; ऊँचेपनकी सीमा; बड़ाई
पालन कर चुका हो।
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