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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उकचन-उघटना ९८ उकचन*-पु० मुचकुंदका फूल । तोड़ कुश्तीका एक पंच । -पछाड़-स्त्री० उलट-पुलट । उकचना*-अ० क्रि० उखड़ना, उचड़ना; हट जाना। उखाड़ना-स० क्रि० गड़ी, जमी, बैठायीहुई चीजको उसकी उकटना-स० क्रि०किसीपर अपने उपकार या उसके अप- जगहसे हटा देना; ऊपर लाना; हड्डीको जोड़से हटा देना कारको बार-बार कहना, उघटना ।। तितर-बितर कर देना; रंग, प्रभाव आदि न जमने देना; उकटा-वि० उकटनेवाला । पु० उकटनेका कार्य। -पुरान भगाना, उदवासना; नष्ट करना । (गड़े मुरदे उखाड़ना -पु० पुरानी शिकायतोंको उघटना, गड़े मुर्दे उखाड़ना।। बीती हुई बातोंकी चर्चा फिर चलाना)। उकठना-अ० क्रि० सूखकर ऐंठ जाना। उखाड़ -वि० उखाड़नेवाला। उकठा-वि० सूखकर ऐंठा हुआ। उखारना*-स० क्रि० दे० 'उखाड़ना। उक-पु० बैठनेका वह ढंग जिसमें घुटने (खड़ेबल) मोड़े। उखारी-स्त्री० ईखका खेत । जाते हैं (बैठना)। उखालिया-पु० सरगही, व्रत आरंभ करनेके पूर्व कुछ रात उकत*-स्त्री० दे० 'उक्ति' । रहते ग्रहण किया जानेवाला अल्पाहार । उकताना-अ० क्रि० ऊबना, अधीर होना उखेड़ना-स० क्रि० दे० 'उखाड़ना' । उकति -स्त्री० दे० 'उक्ति। उखेरना*-स० कि० दे० 'उखाड़ना'। उकलना-अ० क्रि० लपेट या ऐंठनका खुलना, उघड़ना। उखेलना*-स० क्रि० तसवीर बनाना, उरेहना। उकलाना-अ० क्रि० कै करना । उगटना*-सक्रि० दे० 'उघटना'। उकवथ-पु० एक चर्मरोग, एक तरहकी सूखी या गीली दाद।। उगना-अ० क्रि० उदय होना; जमना; उपजना । उकसना-अ० क्रि० उभरना; अंकुरित होना । उगरना -अ०क्रि० निकलना; कुएँ में जमी हुई मिट्टी ऊकसनि*-स्त्री० उभार । आदिकी सफाई होना। उकसाना-स० क्रि० उभारना; भड़काना; उछाल देना उगलना-स० कि. मुंहमें ली हुई चीज थूक देना; खायी(दीयेकी बत्तीको) आगे सरकाना, बढ़ाना। अ०क्रि० पी हुई चीजको मुंहकी राह बाहर कर देना; छिपा रखी हट जाना-'हाथिनके होदा उकसाने'-भू०। हुई बात प्रकट कर देना; अपराध स्वीकार कर लेना उकसाहट-स्त्री० उकसानेका भाव; उत्तेजना । दबा, छिपा रखा हुआ माल लौटा देना; बाहर निकालना, उकसौहा*-वि० उठता, उभरता हुआ। बिखेरना (आग, जहर आदि)। उक्राब-पु० [अ०] गरुड़; बड़ी जातिका गिद्ध । उगलवाना, उगलाना-सक्रि. उगलनेका काम कराना। उकासना*-स० कि.० ऊपरकी ओर फेंकना। उगवना*-स० क्रि० उगाना, उपजाना । उकासी*--स्त्री० उघड़ जाना; छुट्टी; उत्सव । उगसाना-स० क्रि० दे० 'उकसाना'। उकिलना -अ० क्रि० दे० 'उकलना। उगसारना-स० क्रि० कहना; प्रकट करना। उकील*-पु० दे० 'वकील'। उगहना-स० क्रि० दे० 'उगाहना। उकुति-स्त्री० दे० 'उक्ति'। उगहनी -स्त्री० चंदा। उकुरू-पु० दे० 'उकइँ । उगाना-स० क्रि० जमाना, उपजाना; उदय करना; उकुसना*-स० क्रि० उधेड़ना; उजाड़ना। उठाना; तानना। उकेलना-स० क्रि० खोलना, उधेड़ना; उचाइना । उगार-पु० निचुड़ा या निचोड़ा हुआ पानी रँगे हुएकपड़ेउकोथ(था)-पु० दे० 'उकवर्थ' । के निचोड़नेसे निकलनेवाला पानी; दे० 'उगाल'। उकौना -पु० गर्भावस्थामें होनेवाली इच्छाएँ, दोहद ।। उगारना-स० कि० कुएँकी मिट्टी आदि निकालकर सफाई उक्त-वि० [सं०] कहा हुआ, कथित । करना। उक्ति-स्त्री० [सं०] कथन; वाक्य; कवित्वमय वचन, पद्य । उगाल-पु० थूक, खखार; पीक । -दान-पु० थूकनेका उखटना-स० क्रि० खोटनाः कुतरना। अ० कि० लड़खड़ाना। बरतन, पीकदान । उखड़ना-अ० कि० जमी, गड़ी या जड़ी हुई चीजका उगाहना-स० कि० बहुतसे लोगोंसे लेकर इकट्ठा करना; ऊपर आ जाना, अपनी जगहसे हटना; टूटना (दम, चंदा करना; वसूल करना। साँस); निशान पड़ना, उपटना; हड्डीका जोड़से हट | उगाही*-स्त्री० वमूली; चंदा लगान । जाना; बेताल या बेसुरा हो जाना; तितर-बितर होना; उगिलना*-स० क्रि० दे० 'उगलना' । (गाने आदिका) न जमना। मु० उखड़ी-उखड़ी उगिलवाना, उगिलाना-स० क्रि० दे० 'उगलवाना' । बातें करना-बेलौस होकर बात करना । उखड़ी-पुखड़ी उग्र-वि० [सं०] उत्कट, तीन; भयानका कर तीखा, तज; सुनाना-अंडबंड सुनाना । क्रुद्धः कोपनशील । पु० शिव रुद्र रौद्र रस; केरल देश। उखम -पु० गरमी । -ज-पु० दे० 'ऊष्मज' । उग्रसेन-पु० [सं०] कंसके पिता, मथुराके राजा। उखर*-पु० उख बोनेके बाद होनेवाली हलकी पूजा । उग्रह-पु० ग्रहणसे छूटना, मोक्ष । उखरना*-अ० कि० दे० 'उखड़ना। उग्रा-स्त्री० [सं०] दुर्गा, महाकाली; उग्र स्वभाववाली, उखली-स्त्री० दे० 'ओखली'। कर्कशा स्त्री; अजवायन, बच, इ० । उखा*-स्त्री० दे० 'ऊषा'। उघटना-स० क्रि० किमीपर अपने उपकारों या उसके अपउखाड़-पु० उखाड़नेकी क्रिया; पेंच या दलीलकी काट; कारोंकी उद्धरणी करना, उकटना; कोसना ताल देना। For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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