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ज्योतिशास्त्र-झंडा
२९२ -त्यों-भ० जैसे-तैसे, किसी तरह; कठिनाईसे। ज्यौ*-अ० यदि, अगर । ज्योतिःशास्त्र-पु० [सं०] ज्योतिर्विद्या ।
ज्योतिष-वि० [सं०] उयोतिष-संबंधी। ज्योति (स)-स्त्री० [सं०] प्रकाश, रोशनी; ली; सूर्य ज्योतिषिक-पु० [सं०] ज्योतिषी ।
नक्षत्र; अग्नि; आँखकी पुतलीका मध्यविदुष्टि; आत्मा ।। ज्वर-पु० [सं०] एक साधारण रोग जिसका मुख्य लक्षण ज्योतिक*-पु० ज्योतिषी।
शरीरकी गरमीका स्वाभाविकसे अधिक हो जाना है, ताप, ज्योतित-वि० [सं०] द्यतिमान्, प्रकाशित ।
बुखार, मानसिक कष्ट; उत्तेजना (कामज्वर) । ज्योतिमान-वि० दे० 'ज्योतिष्मान्'।
ज्वरा-स्त्री० [सं०] ज्वर; * मृत्यु । 'ज्योतिर'-स्त्री० [सं०] 'ज्योतिस'का समासगत रूप । ज्वरातिसार-पु० [सं०] ज्वरयुक्त अतिसार रोग।
"इंग,-इंगण-पु० जुगनू ।-मंडल-पु० नक्षत्रमंडल । ज्वरी*-पु० दे० 'जुरी'। -मय-वि० ज्योतिसे भरा हुआ, धुतिमय 1-लिंग-पु० ज्वलंत-वि० जलता हुआ, प्रकाशमान; स्पष्ट । शिवः शिवके मुख्य-सोमनाथ,महाकाल,विश्वेश्वर आदि- ज्वलन-पु०[सं०] जलन,जलना; अग्नि; लपट |-शील१२ लिंगों में से कोई। -लोक-पु० धवलोकः परमेश्वर । वि०(कंबस्टिबिल, इनफ्लेमेबिल) जो बड़ी आसानीसे, थोड़े में -विद-पु० ज्योतिषशास्त्र जाननेवाला । -विद्या-स्त्री० ही, जल उठे, भड़क उठे; ज्वलनीय, ज्वल्य । ज्योतिषशास्त्र ।
ज्वलित-वि० [सं०] जलता-बलता हुआ, दीप्त ।। ज्योतिश्चक्र-पु० [सं०] नक्षत्रोंसे युक्त राशिचक्र । ज्वल्य-वि० [सं०] (कंबस्टिबिल) जल उठने या भभक उठने ज्योतिष-पु० [सं०] ग्रह-नक्षत्रों की गति, स्थिति आदिका / योग्य । विचार करनेवाला शास्त्र (ग० ज्यो०); ग्रह-नक्षत्रोंआदिके ज्वान-वि०, पु० दे० 'जवान' ।
शुभाशुभ फल बतानेवाला शास्त्र (फ० ज्यो०)। ज्वानी -स्त्री० दे० 'ज्वानी'। ज्योतिषी(पिन)-पु० [सं०] ज्योतिषशास्त्र जाननेवाला, ज्वार-स्त्री० खरीफकी फसल में होनेवाला एक मोटा अनाज दैवज्ञ ।
चंद्रमाके आकर्षणके कारण समुद्रके जलका ऊपर उठना, ज्योतिष्ना*-स्त्री० ज्योत्स्ना ।
भाटाका उलटा । -भाटा-पु. समुद्र के जलका ऊपर ज्योतिष्पथ-पु० [सं०] आकाश, अंतरिक्ष ।
उठना और फिर नीचे आना, चढ़ाव-उतार । ज्योतिष्मती-स्त्री० [सं०] रात्रि ।
ज्वाल-पु० [सं०] ज्वाला; मशाल । ज्योतिष्मान(मत्)-वि० [सं०] ज्योतिर्मय, आलोकयुक्त । ज्वाला-स्त्री० [सं०] आगकी लपट, अग्निशिखा; ताप,दाह । पु० सूर्यः प्लक्षद्वीपका एक पर्वत ।
-मुखी-स्त्री० एक पीठस्थान; अग्नि, लावा आदि; * ज्योत्स्ना-स्त्री [सं०] चाँदनी; चाँदनी रात; दुर्गा; सौंफ । सुरांगना । पु० [हिं०] वह पहाड़ जिसकी चोटीके पास ज्योनार-स्त्री० रसोई; भोज ।
स्थित गर्तसे कोयला, राख, जलता हुआ तरल पदार्थ, ज्योहत*-पु० आत्महत्या।
जलती हुई गैस आदि बाहर निकले ।
झ-देवनागरी वर्णमालाका नवाँ व्यंजन वर्ण ।
झंझर-पु० दे० 'झज्झर'। झंकना-अ० क्रि० दे० 'झी खना'।
झंझरा-वि० खखरा, झीना। झंकार-स्त्री० [सं०] झनझनाहट; झाँझ, पायल आदिके झंझरी-स्त्री० जाली; जालीदार खिड़की; जालीदार चादर बजनेसे होनेवाली ध्वनि वीणा, सितार आदिकी ध्वनि । । चलनी। -दार-वि० जालीदार, सूराखदार । झंकारना-स० कि. 'झन झन' आवाज करना । अक्रि. झंझा-* वि० तेज, प्रबल । स्त्री० [सं०] तेज हवा, अंधड़ा 'शन-झन' आवाज होना।
आँधी-पानी; बड़ी-बड़ी बूंदोंकी वर्षा; अंधड़ या अंधड़के साथ झंकारी (रिन्)-वि० [सं०] गुंजन करनेवाला; झंकारयुक्त होनेवाली वर्षाकी आवाज । -वात-पु० अंधड़; वर्षाके झंकृत-वि० [सं०] झंकारयुक्त, झंकार करता हुआ। साथ बहनेवाली तेज हवा । झंकृति-स्त्री० [सं०] झंकार ।।
झंझानिल-पु० [सं०] दे॰ 'झंझावात' । झंखना-अ० क्रि० दे० 'झी खना।
झंझार*-पु० आगकी लपट, ज्वाला। झंखाड़-पु० काँटेदार झाड़ी या पौधा; ऐसी झाड़ियों या झंझोड़ना-म०क्रि० झकझोरना; बिल्ली आदिका शिकारको पौधोंका समूह; रही चीजोंका ढेर ।
दाँतों में पकड़कर झटके देना, नोचना। सँगा-पु० दे० 'झगा'।
झंड-पु० (बच्चेके) मुंडनसे पहलेके, पैदाइशी बाल । अँगुला, डेंगूला*-पु० ढीला कुरता (बच्चोंका)। झंडा-पु० बाँस या लकड़ी के डंडेके सिरेपर पहनाया हुआ अँगुलिया, अँगुली, झंगूली*-स्त्री० दे० 'झगा'। तिकोना या चौकोना कपड़ा जो राष्ट्र आदिके प्रतीकके रूपझंझ*-पु० दे० 'झाँझ'।
में या संकेत आदिके लिए काममें लाया जाता है, पताका, झंझट-पु०,स्त्री० झमेला झगड़ा-बखेड़ा कठिनाई परेशानी।। निशान । -जहान-पु० बेड़े के नायकका जहाज । झंझटी-वि० झंझटवाला (काम); झगड़ालू , बखेडिया। -बरदार-पु० झंडा ले चलनेवाला । मु० (किसी झंझनाना-स० कि०, अ० कि० दे० 'झंकारना' ।
चीजका)-खड़ा करना-किसी चीजके नामपर, किसी
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