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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ जीतना-जीवन में मिलनेवालो सफलता, जय, फतह लाभ । वृद्ध व्यक्ति; वृक्ष; जीरा; शिलाजतु; बुढ़ापा; क्षीणता । जीतना-सं०क्रि० युद्ध, मुकदमा, खेल, प्रतियोगिता आदि- -ज्वर-पु० पुराना बुखार, अधिक दिनसे रहनेवाला में विपक्षीको हराना, जयलाभ करना; दमन करना, वशमें मंदज्वर; बारह दिनसे अधिकका ज्वर (आ०)।-वाटिकालाना (मन, इंद्रिय आदिको)। स्त्री० खंडहर । जीता-वि० जीता हुआ; जिंदा; तौल या नापसे थोड़ा जीर्णक-वि० [सं०] करीब-करीब सूखा या मुरझाया हुआ। अधिक (तौलना)। -जागता-वि० भला-चंगा, सशक्त, जीर्णोद्धार-पु० [सं०] पुरानी, टूटी-फूटी चीजकी मरम्मत; सतेज । -नाखुन-पु० मांससे लगा हुआ नाखुन । पुराने मंदिर, कुएँ, तालाब आदिकी मरम्मत । -लहू-पु० ताजा लहू । -लोहा-पु० चेयक । मु० जीर्णोद्यान-पु० [सं०] वह बगीचा जो पुराना हो जाने या जीती मक्खी निगलना-जान-बूझकर कोई दोष करना, सिंचाई आदि न होनेके कारण उजड़ रहा हो। न करने लायक बात करना । जीते जी-जिंदा रहते हुए, जीला*-वि० झीना, बारीक । मौजूदगीमें जिंदगीभर । जीते जी मर जाना-जीवन्मृत जीवंत-वि० [सं०] जीवित, जीता हुआ; दीर्घायु । हो जाना, किसी भारी शोक, आघातसे मनका मर जाना, जीव-पु० [सं०[ देहस्थित या देहावच्छिन्न चैतन्य, जीवात्मा; निरानंद, निरुत्साह हो जाना । जीते-मरते-किसी | प्राण, जान; जीवन, प्राणी, लिंगदेह; जीविका; विष्णु; तरह, बड़ी कठिनाईसे। कर्ण; एक मरुत् बुहस्पति । -जंतु-पु० प्राणी; छोटे प्राणी, जोति-स्त्री० [सं०] विजयः क्षति, क्षय । कीड़ा-मकोड़ा ।-जगत्-पु० प्राणि-समष्टि । -जीव-पु० जीन-वि० [सं०] जीर्ण, क्षीण वृद्ध । पु० चमड़ेका थैला। चकोर । -दान-पु. प्राणदान । -धन-पु० पशुधन, ज़ीन-पु० [फा०] चार जामा, काठी; पलाना एक मोटा, गाय-बैल, घोड़ा-हाथी आदि; प्रिय व्यक्ति ।-धारी(रिन) कड़ा सूती कपड़ा। -पोश-पु० जीनके ऊपर डालनेका पु० प्राणी, जंतु । -पुत्रा,-वत्सा-स्त्री० वह स्त्री जिसका झालरदार कपड़ा, झूल । -सवारी-स्त्री० घोड़ेको सवारी | बेटा जीता हो । -प्रिया-स्त्री० हड़। -बंद-पु० के काम लाना । -साज़-पु. जीन बनानेवाला। दे० 'जीवबंधु'। -बंधु-पु० गुलदुपहरिया। -बलिजीनत-स्त्री० [अ०] सजावट, शृंगार; शोभा। -महल- स्त्री०पशु आदिकी बलि ।-मंदिर-पु०शरीर ।-मातृकावि० महलकी शोभा, शृंगार-स्वरूप । स्त्री० सात देवियाँ जो माताके समान प्राणियोंका पालनजीना-अ० कि० जीवनकी अवस्थामें होना, देहमें प्राण या पोषण करनेवाली मानी जाती हैं (कुमारी, धनदा, नंदा, जीवका बना रहना, जिंदा होना; जीवनयात्रा करना, विमला, मंगला, बला और पद्मा) । -योनि-स्त्री० जीव(किसी चीजपर जीना-किसी चीजके सहारे जीना); धारियोंकी योनि, जंगम योनि (मनुष्य, पशु-पक्षी आदि)। प्रसन्न होना । मु० जी उठना-मरे हुएका जो जाना; -लोक-पु० संसार, मर्त्यलोक, प्राणिजगत् । -विज्ञान सूखे हुएका हरा हो जाना । जीना दूभर, भारी हो -पु० जीव-जंतुओंकी शरीररचना, वगीकरण, जीनेके ढंग जाना-जीवनका भाररूप या कठिन हो जाना । जीनेका | आदिका विज्ञान (.जूलॉजी)। -शेष-वि० जिसकी जानमज़ा-जीवनका सुख । भर बची हो; जो सब कुछ छोड़कर केवल जान लेकर भाग जीना-पु० [फा०] सीढ़ी, सोपान । आया हो। -संक्रमण-पु० जीवका एक देह त्यागकर जीभ-स्त्री० मुंहके भीतर स्थित चपटा मांसल अंग जो रस- दूसरीमें जाना। -हत्या-स्त्री० जीववध, जीवहिंसा । ज्ञान और मनुष्यों में बोलनेकी क्रियाका साधन है, जिह्वा, । रसना, जबान; कलमकी नोक जिससे लिखा जाता है। | जीवट-पु० हिम्मत, साहस; बहादुरी। मु०-हिलाना-बोलना, मुँह खोलना। जीवति*-स्त्री० जीविका । जीभी-स्त्री० ताँबे, पीतल आदिके पत्तरकी बनी चीज जिस-जीवत्पुत्रिका-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जिसका पुत्र जीता हो; से जीभका मैल साफ करते हैं; छोटी जीभः चौपायोंका। आश्विन कृष्णाष्टमीका व्रत। एक रोग; निब; लगामका एक भाग । जीवद्वत्सा-वि० स्त्री० [सं०] जीवित पुत्रवाली । जीमना-स० क्रि० भोजन करना। जीवन-पु० [सं०] जीता रहना, प्राणधारण; जीवित दशा, जीमूत-पु० [सं०] बादल; पर्वत; इंद्र; सूर्य । -वाहन- जिंदगी; जीवनका आधाररूप वस्तु; प्राणी; जीविका; पु० इंद्र (मेघ है वाहन जिसका)। जल; वायुः पुत्रः परमात्मा ताजा दूध, मक्खन, मज्जा । जीय-पु० दे० 'जी', 'जीव' । -दान-पु० प्राणदान । वि० जीवनदाता, प्राणप्रद । -क्रम-पु० जीवनयात्रा, जीयति*-स्त्री० जीवन । रहन-सहनका ढंग। -चरित,-चरित्र-पु० जीवनजीर*-वि० जीर्ण, जर्जर | पु० जिरह, कवच । वृत्तांत; वह पुस्तक जिसमें किसीका जीवनवृत्त लिखा जीरक, जीरण-पु० [सं०] जीरा । हो। -चर्या-स्त्री० रहन-सहनका तरीका। -तत्त्वजीरण, जीरन*-वि० दे० 'जीर्ण'। पु० (विटामिन) दे० 'खाद्योज'। -द-वि० जीवनदाता। जीरना-अ० कि जीर्ण होना; कुँभलाना; फटना। -दान-पु० शत्रु या अपराधी आदिको प्राण न लेनेका जीरा-पु० एक सुगंधित बीज जो मसाले और दवाके काम | वचन देना; देश या समाजकी सेवाके लिए जीवन अर्पित आता है; जीरेकी शक्ल का बीज फूलका केसर । करना, लगाना । -धन-वि० जीवनका आधार, जीर्ण-वि० [सं०] बूढा, जरायुक्त; पुराना, दिनी; फटा. सर्वस्व, (पति)। -धर-वि० जीवन-रक्षक, जीवनदाता । पुराना ढहता हुआ, जर्जर, क्षयप्राप्त; पचा हुआ। पु० -निर्वाह-पु०,-यात्रा-स्त्री०,-यापन-पु० जीवनकी For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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