________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वसीअत-वाक्रिया
७२२
या जिसके नाम वसीयतनामा लिखा गया हो।
शब्द; दूरस्थ, परोक्ष पदार्थों का संकेत (विशेषणके रूप में वसीअत, वसीयत-स्त्री० [अ०] मृत्यु या लंबी यात्राके भी प्रयुक्त होता है-जैसे वह लड़का)। वि० [सं०] ले अवसरपर मृत्यु के बाद अपनी संपत्तिके प्रबंध, उपभोग | जानेवाला, वहन करनेवाला (जैसे 'भारवह')। आदिके विषय में किया हुआ आदेश। -नामा-पु. वहन-पु० [सं०] बेड़ा, नाक खीचकर, लादकर कहीं ले मृत्युके बादके कर्तव्योंका आदेश-पत्र, मृत्युपत्र ।
जाना; सिर, कंधेपर लेना, धारण करना, उठाना; (कॉनवसीका-पु० [सं०] कौल-करार; इकरारनामा; दस्तावेज; वेक्शन) ताप या विद्युत्के एक स्थानसे दूसरे स्थानको ऋणपत्र । -दार-वि०, पु० जिसके हकमें वसीका लिखा जानेकी वह रीति जिसमें पदार्थ के कण घनत्वमें अंतर गया हो; महाजन ।
होनेके कारण एक स्थानसे हटकर दूसरे स्थानपर पहुँचते वसीला-पु० [अ०] जरिया सहारा; सहायता ।
हैं और ताप या बिजली देते हैं । वसुंधरा-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; देश; राज्य ।
वहनीय-वि० [सं०] उठा या खींचकर ले जाने योग्य; वस-पु० [सं०] धन; रत्न; सोना; जल; पदार्थ; आठ | धारणीय, ऊपर लेने योग्य । देवताओंका एक वर्ग; आठकी संख्या कुबेरशिव; अग्नि; वहम-पु० [अ०] शक; शंका; कल्पना; भ्रममूलक, गलत सूर्य । स्त्री. प्रकाश, दीप्ति प्रकाश-रश्मि; अमरावती; खयाल । -का पुतला-वहमी। अलका । -देव-पु० कृष्णके पिता । -धा-स्त्री० पृथ्वी, | वहमी-वि० [अ०] भ्रमजनित; वहम करनेवाला । क्षिति; राज्य लक्ष्मी । -धा-धर-पु० पहाड़; विष्णु । वहशत-स्त्री० [अ०] वहशीपन, आदमियोंसे भड़कनेका -श्रेष्ठ-वि० वसुओंमें श्रेष्ठ (कृष्ण)।
भाव; घबराहट, चित्तकी अति चंचलता, भय, सनक । वसुमती-स्त्री० [सं०] पृथ्वी; देश; राज्य ।
वहशियाना-वि० [अ०] वहशीकी तरह, जंगली जानवर वसूल-वि० [अ०] मिला हुआ, प्राप्त ।
या आदभीके अनुरूप । वसूली-स्त्री० [अ०] वसूल करनेकी क्रिया; उगाही। वहशी-वि० [अ०] जंगली, आदमियोंकी सुहवतसे घबराने, वस्तव्य-वि० [सं०] रहने, ठहरने योग्य ।
भागनेवाला; उजड्डु, असभ्य । वस्ति-स्त्री० [सं०] पेड़ , नाभिके नीचेका भाग; मूत्राशय वहाँ-अ० उस जगह (दूरके लिए)। पिचकारी निवास कपड़ेका छोर ।।
वहिल-पु० [सं०] पोत; एक तरहका रथ । -कर्म(न)-पु० लिंग, गुदा आदिमें पिचकारी देना। वहिरंग-वि०, पु० [सं०] दे० 'बहिरंग'। -कोश-पु० मूत्राशय ।
वहिर्गत-वि० [सं०] दे० 'बहिर्गत'। वस्ती-वि० [अ०] दरमियानी, बीचका।
वहिर्देश-पु० [सं०] गाँव या नगरके बाहरका स्थान; वस्तु-स्त्री० [सं०] वह पदार्थ जिसकी स्थिति, सत्ता हो; | परदेश, बहिर्देश। सत्य चीज, पदार्थ; व्यावहारिक पदार्थ, वृत्तांत, इतिवृत्त वहिार-पु० [सं०] दे० 'वहिर'। नाटककी कहानी, घटना, कथा-वस्तु । -जगत्-पु० | वहिर्मख-वि०, पु० [सं०] दे० 'बहिर्मुख' । दृश्यमान जगत् । -ज्ञान-पु० वस्तुकी पहचान; तत्त्व- | वहिापिका-स्त्री० [सं०] दे० 'बहिर्लापिका'। शान, मूल तत्त्वका बोध । -निर्देश-पु० वह मंगला- वहिर्विकार-पु० [सं०] दे० 'बहिर्विकार' । चरण जिसमें कथाका कुछ संकेत, आभास रहता है। | वहिष्कार-पु० [सं०] दे० 'बहिष्कार'। सूची। -प्रेपणादेश-पु. (इनडेंट) माल भेजनेके लिए वहिष्कृत-वि० [सं०] दे० 'बहिष्कृत' । (देशके बाहरसे) दिया गया लिखित आदेश । -वाद- | वहीं-अ० उसी जगह (दूर, परोक्षके लिए)। पु० एक दार्शनिक सिद्धांत जिसमें दृश्य जगतको यथारूप | वही-सर्व० पूर्ववणित व्यक्ति, निर्दिष्ट व्यक्ति, दूसरा नहीं। सत् मानते हैं, भूतवाद । -विनिमय-पु. वस्तुओंका | वहै*-सर्व० वह ही, वही । अदल-बदल । -स्थिति-स्त्री. वास्तविक स्थिति । वति-पु० [सं०] अग्नि; जठराग्नि; पाचन क्षुधा। -कुंद वस्तुतः(तस्)-अ० [सं०] यथार्थतः, असल में ।
-पु० आग रखनेके लिए बना हुआ गडढा । -जायावस्तूत्प्रेक्षा-स्त्री० [सं०] उत्प्रेक्षा अलंकारका एक भेद । स्त्री० स्वाहा । -मित्र-पु० वायु । -मुख-पु० देवता। वस्तूपमा-स्त्री० [सं०] उपमा अलंकारका एक भेद । -शिखा-स्त्री० आगकी लपट; कलिकारी; धातकी । वस्त्र-पु० [सं०] कपड़ा; पोशाक। -गृह-पु० खेमा । | वांछनीय-वि० [सं०] चाहने योग्य, अभिलषणीय । -ग्रंथि-स्त्री० इजारबंद, नीबी। -दशा-स्त्री० कपड़े. वांछा-स्त्री० [सं०] इच्छा, चाह । की किनारी । -धारणी-स्त्री० अलगनी। -पुत्रिका- | वांछित-वि० [सं०] इच्छित, चाहा हुआ । पु० इच्छा। स्त्री० गुड़िया। -पूत-वि० कपड़ेसे छाना हुआ।-बंध-वांछितव्य, वांछच-वि० [सं०] अभिलषणीय । पु० नीबी, नारा। -भवन-पु० खेमा । -भेदक- | वा-अ० [सं०] या, अथवा । * सर्व०'वह'का विकृत रूप । भेदी(दिन)-पु. दीं। -विलास-पु० वेष-भूषा- वाइ* -सर्व० उसको । स्त्री० वापी । प्रियता। -वेश्म(न)-पु० खेमा ।
वाइदा-पु० [अ०] दे० 'वादा। वस्त्रांचल, वस्त्रांत-पु० [सं०] कपड़ेका छोर ।
वाक-पु० [सं०] वाक्य; बगलोंका झुंड । * स्त्री० वाणी, वस्त्रागार-पु० [सं०] कपड़ेकी दुकान ।
सरस्वती। वस्ल-पु०[अ०] मिलन, प्रेमी-प्रेमिकाका मिलन; संभोग । | वाक़ई-अ० [अ०] वस्तुतः, सचमुच । वह-सर्व बातचीतमें दूरस्थित, परोक्ष व्यक्ति के संकेतका | वाकि(क)आ-पु० [अ०] घटना वृत्तदुर्घटना, हादिसा।
For Private and Personal Use Only