________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२३९
चरमवती* - स्त्री० दे० 'चर्मण्वती' |
चरमोत्पादन - पु० [सं०] ( पीक प्रॉडक्शन ) अधिकतम चरुखला * - पु० चरखा ।
मात्रा में किया गया उत्पादन ।
चरसिया, चरसी - पु० चरस पीनेवाला, चरसका व्यसनी; चरसके जरिये पानी निकालने या खेत सींचनेवाला । चराई - स्त्री० चरने या चरानेका काम या उजरत । चरागाह - पु०, स्त्री० [फा०] पशुओंके चरने चराने की जगह, घासका मैदान ।
चराचर - वि० [सं०] चलनेवाला और न चलनेवाला, स्थावर और जंगम । पु० संपूर्ण जगत् ; आकाश । चराना - स० क्रि० गाय, बैल आदिको जंगल आदि में ले जाकर घास, चारा खिलाना; बेवकूफ बनाना, धोखा देना । चरावर* - स्त्री० बकवास । चरिंदा - पु० [फा०] चरनेवाला प्राणी, जानवर, चौपाया । चरित - पु० [सं०] आचरण; कर्म; शील, स्वभाव; जीवन चरित | वि० आचरित किया हुआ; प्राप्त; गत; ज्ञात । - कार - लेखक - पु० जीवनचरितका लेखक ।-नायक - पु० किसी कथा कहानीका प्रधान पात्र । चरितव्य - वि० [सं०] आचरण करने योग्य; जाने योग्य । चरितार्थ - वि० [सं०] जिसका अर्थ, प्रयोजन सिद्ध हो
गया हो, कृतार्थ; संतुष्ट; जो ठीक उतरे, यथार्थं सिद्ध हो । चरितार्थता - स्त्री० [सं०] कृतार्थता; यथार्थ सिद्ध होना; घटित होना ।
चरितावली - स्त्री० [सं०] वह पुस्तक जिसमें बहुतों के
जीवनचरित दिये गये हों; चरितमाला | चरित्तर - पु० चरित्र; छल, फरेब; ढोंग । चरित्र- पु० [सं०] आचरण, व्यवहारा चाल-चलन; कर्तव्य, कर्म-कलाप; शील, स्वभाव; सदाचार; जीवनी, वृत्त; पैर; गमन । - गठन - पु० शील, सदाचार-वृत्तिका निर्माण । -दोष - पु० चाल-चलनकी खराबी, आचरणकी खुटाई । - नायक - दे० ' चरितनायक' । - पंजी-स्त्री० (कैरेक्टर बुक) दे० 'आचरण पंजी' । -हीन- वि० दुश्चरित्र, खराब चाल-चलनवाला ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चरमवती - चर्वण
जच्चाके लिए पानी गरम किया जाय ।
चरवाई- - स्त्री० चरानेका काम; चरानेकी उजरत । चरवाना - स० क्रि० चरानेका काम कराना । चरवाहा - पु० गाय-भैंस चरानेका काम करनेवाला | चरवाही - स्त्री० चरवाहेका काम; पशु चरानेकी उजरत । चरवैया - पु० चरनेवाला; चरानेवाला ।
चरस - पु० गाँजेके पेड़से निकला हुआ गोंद जो गाँजेकी ही तरह पिया जाता है; दे० 'चरसा' ।
चर्चक - पु० [सं०] चर्चा करनेवाला; आवृत्ति करनेवाला । चरसा - पु० बैल, भैंस आदिका चमड़ा; चमड़ेका बना बड़ा चर्चन - पु० [सं०] चर्चा; अध्ययन; चंदनादिका लेपन | थैला; मोट । चर्चरिका - स्त्री० [सं०] नाटक में एक परदा गिरनेके बाद और दूसरा उठने के पहले गाया जानेवाला गाना; तालीसे ताल देना; आमोद-प्रमोदकी धूम; उत्सव; चापलूसी । चर्चरी - स्त्री० [सं०] चर्चरिका; चाँचर, फाग; रंगरलियाँ मनाना, हर्षक्रीड़ा; करतलध्वनिः तालका एक भेद; एक वर्णवृत्त; एक तरहका ढोल; आमोद-प्रमोद; गाना-बजाना । चर्चा - स्त्री० [सं०] पाठ, आवृत्ति; वाद-विवाद; जिक्र, बयान; वार्तालाप; अफवाह; विचारणा; चंदनादिका लेपन । चर्चित - वि० [सं०] लेपित; विचारित; इच्छित; जिसकी चर्चा की गयी हो ।
चरू* - पु० दे० 'चरु' । चरेश* - वि० खुरदरा; रूखा । चरेरू* - पु० पक्षी |
चरैया - पु० चरनेवाला; चरानेवाला । चरोखर - पु० चरी, गोचर भूमि | घरोतर - पु० निर्वाहार्थ जिंदगीभर के लिए दी गयी जमीन । चर्खा -पु० दे० 'चरखा' |
चर्नार* - पु० चुनार ( चरणाद्रि ) नामक स्थान | चर्बण-पु० [सं०] दे० 'चर्वण' । चर्बी - स्त्री० दे० 'चरबी' ।
चर्म - पु० [सं०] ढाल; दे० 'चर्म (न्)' ।
चर्म (न्) - पु० [सं०] चमड़ा, खाल; स्पर्शेद्रिय; ढाल । - कार - कारक - पु० चमार, चमड़ेका काम करनेवाला, मोची । - कील- पु० बवासीर; एक रोग जिसमें देहमें नुकीला मस्सा निकल आता है । - चक्षु ( स ) - पु० स्थूल दृष्टि | - दंड - पु० चमड़ेका बना चाबुक |- पादुका - स्त्री० जूता । - प्रसाधक - वि० (टेक्सिडर मिस्ट) पशु-पक्षियोंके चमड़े या खालको पृथक् कर उसमें भूसा आदि भरकर सजाने या जीवित-सा रूप देनेका काम करनेवाला । - वाद्य - पु०ढोल, नगाड़ा । - शोधन - पु० ( टैनिंग) विशेष प्रकारके घोलोंमें डालकर या अन्य प्रक्रिया द्वारा चमड़ेको सिझाना, मुलायम बनाना। -शोधनालय - पु० ( टैनरी) वह स्थान या कारखाना जहाँ विशेष प्रक्रिया द्वारा चमड़ेको सिझाने, मुलायम बनानेका काम किया जाता है । चर्मण्वती - स्त्री० [सं०] चंबल नदी । चर्ममय - वि० [सं०] चमड़ेका बना हुआ ।
चर्मोदक - पु० [सं०] ( लिम्फ ) शरीर के चमड़े या जखम इत्यादि से निकलनेवाला एक तरहका लसीला पदार्थ; लसीका ।
For Private and Personal Use Only
चरित्रवान् (वत्) - वि० [सं०] सदाचारी |
चरी - स्त्री० पशुओंके चरनेके लिए जमींदारकी ओरसे बिला लगान मिली हुई जमीन, गोचारणभूमि; हरी ज्वार जो गाय-बैलोंको खिलानेके लिए बोयी गयी हो । चरु - पु० गोचर भूमि; गोचर भूमिका कर; [सं० यज्ञमें आहुति देनेके लिए पकाया हुआ अन्न, हव्यान्न; वह बरतन जिसमें चरु पकाया जाय; यज्ञ ।
चर्या - स्त्री० [सं०] आचरण; पालन; जीविका; नियमपूर्वक अनुसरण; गति, गमन; भ्रमण; भोजन; चाल, प्रथा; दुर्गा । चराना - अ० क्रि० खालमें खुश्कीसे तनाव या हलका दर्द होना; 'चर-चर' करके टूटना; (ला० ) प्रबल इच्छा होना (शौक चर्राना) ।
चरी - स्त्री० लगनेवाली बात ।
aert - पु० चौड़े मुँहका मिट्टीका पात्र; वह पात्र जिसमें । चर्वण - पु० [सं०] चबाना; रसास्वादन; चबाकर खाया