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लौटाना-वंश स्वीकृत बातको अस्वीकार करना । स० क्रि० उलटना- | ताँबेका बना हुआ; लाल ।-आवरण,-पट-पु० (आयर्न पलटना, इधरसे उधर करना। लौट-पीट-स्त्री० दोरुखी करटेन) ऐसा आवरण या प्रतिबंध-व्यवस्था जिसकी आड़में छपाई; उलटने-पलटनेका काम दे० 'लोटपोट' । लौट- होनेवाली बातें दूसरों पर प्रकट न होने पायें (विशेषकर फेर-पु० भारी परिवर्तन, उलट-फेर ।
आधुनिक रूसकी स्थितिके लिए प्रयुक्त)। -कार-पु० लौटाना-स० क्रि० वापस करना; फेरना, बदलना; उलटे लोहार । -ज-पु० मोरचा। -दीवार-स्त्री० [हिं०] पैर वापस करना; उलट-पुलट करना ।
(आयर्न करटेन) दे० 'लौहपट' । -बंध-पु. लोहेकी लौटानी-अ० लौटती बार ।
जंजीर; हथकड़ी । -भांड-पु. लोहेका पात्रा लौन*-पु० लवण, नमक ।
(हार्डवेयर) लोहे ताँबेके बने पात्र तथा अन्य वस्तुएँ । लोना -पु० जानवरोंका अगला और पिछला पैर साथ। -मल-पु. लोहेका मैल । -युग-पु० लोहेके प्राथमिक बाँधनेकी रस्सी; फसलकी कटाई; ईधन । * वि० सुंदर । प्रयोगका ऐतिहासिक काल ।-विहीन-वि० (नॉन-फेरस) लौनी-स्त्री० फसलकी कटाई; अँकवारमें अमानेवाला कटा दे० 'लौहेतर'। -सार-पु० लौहनिर्मित एक नमक । हुआ डंठल । * पु० नवनीत, मक्खन।
लौहित्य-पु० [सं०] लाल सागर लाल रंग। लौरी*-स्त्री० बछिया-'सो सुनि राधिका काँपि गई डरि लौहतर-वि० [सं०] (नॉन-फेरस) (वह धातु) जिसमें दौरिकै लौरिहि सी लपटानी'-सुधानिधि ।
लोहेका मेल न हो, लोहेको छोड़कर अन्य (धातु)। लौल्य-पु० [सं०] चंचलता, अस्थिरता; लोभ ।
ल्याना, ल्यावना*-स० कि० दे० 'लाना' । लौस-पु० [फा०] लिप्त होना; मिलावट; धब्बा (बेलौस) । ल्यौ*-स्त्री० लौ, धुन । लौह-पु० [सं०] लोहा; शस्त्रास्त्र, हथियार । वि० लोहे या ल्वारि*-स्त्री० लू ।
जा करने योग्य।
व-देवनागरी वर्णमालाका उनतीसवाँ व्यंजन, अंतस्थ वर्ण । वंदित-वि० [सं०] पूजितः पूज्य । वंक-वि० [सं०] टेढ़ा, झुका हुआ। -नाली-स्त्री० वंदितव्य-वि० सं०] पूज्य, पूजा करने योग्य सुपुम्ना नाडी।
वंदी (दिन)-पु० [सं०] बंदी, चारण; कैदी। -जनवंकट-वि० टेढ़ा; विकट ।
पु० चारग, भाट ।-पाल-पु० कैदियोंका रक्षक, जेलर । वंकिम-वि० कुछ-कुछ टेढ़ा ।
वंद्य-वि० [सं०] आदरणीय, पूजनीय। वंक्षण-पु० [सं०] पेडू और जाँधके बीचका भाग; ऊरु- वंध्य-वि० [सं०] अनुत्पादक निष्फल; सदोष । संधि ।
वंध्या-स्त्री० [सं०] वह स्त्री या गाय जिसे बच्चा न होता वंग-पु० [सं०] बंगाल; राँगा; राँगेका भस्म ।
हो; एक गंधद्रव्य । -तनय,-पुत्र-सुत,-सूनु-पु० वंगीय-वि० [सं०] बंगालका; बंगाल-संबंधी ।
कोई अनहोनी वस्तु, खयाली चीज । वंचक-वि० [सं०] ठग; धूर्त, खल ।
वंध्यीकरण-पु० (स्टेरिलाइज़ेशन) विशेष प्रक्रिया द्वारा वंचकता-स्त्री० [सं०] ठगी; धूर्तता।
(भूमिको) अनुत्पादक या (स्त्रीको) वंध्य बना देना, वंचन-पु० [सं०] ठगी; धूर्तता, प्रतारणा ।
उत्पादनक्षमता या पुंस्त्वसे रहित कर देना। वंचना-स्त्री० [सं०] छल; ठगी; नष्ट काल या श्रम । * स० वंश-पु० [सं०] वाँस, बाँसकी गाँठ; ईख शहतीर; बँड़े क्रि० ठगना, धोखा देना; + पढ़ना, बाँचना।
बाँसुरी; मेरुदंड; नाककी ऊपरकी हड्डी; कोई लंबी पोली वंचित-वि० [सं०] ठगा, धोखा खाया हुआ, प्रतारित हड्डी; कुल, परिवार जाति; संतान; एक ही जैसी वस्तुरहित, विमुख ।
ओंका समूह । -कपूर-पु० [हिं०] दे० 'वंशकर्पूर'। वंजुल-पु० [सं०] तिनिश; अशोक वेतस; स्थल पभ । -कर्पूर-पु. बंसलोचन । -कर्म (न्)-पु० बाँसकी वंटन-पु० [सं०] हिस्सा लगाना, बाँटना; (एलॉटमेंट) टोकरी आदि बनानेका काम । -ज-वि० बाँसका बना दे० 'आवंटन'।
हुआ;"के वंशमें उत्पन्न । -जा-स्त्री०वंसलोचन कन्या। वंटनीय-वि० [सं०] जो बाँटा जाय, बाँटने योग्य । -तंडुल-पु० बाँसका चावल । -तालिका-स्त्री० वंशवंटित-वि० [सं०] बँटा हुआ, विभाजित ।
वृक्ष ।-तिलक-पु० एक छंद ।-धर,-धारी (रिन्)वंटितांश-पु० [सं०] (कोटा) वह अंश या हिस्सा जो पु० बाँस धारण करनेवाला; कुलका रक्षक; संतान । किसीको वंटित या किसीके लिए निर्धारित किया गया -नाडिका,-नाडी,-नालिका-स्त्री० बाँसकी नली; हो, नियतांश ।
बाँसुरी। -नाथ-पु. कुलका मुखिया । -राज-पु० वंदन-पु० [सं०] स्तुतिः पूजन; नमस्कार; सिंदूर । बहुत लंबा बाँस ।-रोचना-स्त्री० बंसलोचन।-लोचन
-माला,-मालिका-स्त्री० बंदनवार । -वार-पु० पु० बाँसके पोले भागमें बननेवाला सफेद पदार्थ । [हिं०] दे० 'बंदनवार'।
-वर्धन-वि० कुलकी उन्नति करनेवाला। पु० वंशकी वंदना-स्त्री० [सं०] स्तुति प्रणामः पूजन । सक्रि० बंदना'। उन्नति करना। -वृक्ष-पु. बाँसका पेड़; किसी कुलके वंदनीय-वि० [सं०] वंदना, सम्मानके योग्य ।
पूर्वपुरुषों तथा वर्तमान सदस्योंकी वृक्षके ढंगपर बनायी वंदारु-पु०[सं०] स्तोत्र; चारण । वि० विनम्र, वंदनशील । | हुई तालिका, कुरसीनामा। -वृद्धि-स्त्री० कुलोन्नति ।
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