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काश्मीरा - पु० एक ऊनी कपड़ा ।
काश्मीरी - वि० कश्मीरका । पु० कश्मीर निवासी ।
काष - पु० [सं०] कसौटी; सान ।
काशी - किध
लिखी एक वृत्ति । काशी - स्त्री० [सं०] उत्तर भारतकी एक प्रसिद्ध नगरी जो सप्तमोक्षदा पुरियों में से एक है, वाराणसी । -करवट - पु० [हिं०] काशी के अंतर्गत एक तीर्थस्थान जहाँ पुराने समय में लोग सद्गतिकी आशासे आरेके नीचे कटकर जान देते थे । - फल - पु० कुम्हड़ा । काश्त - स्त्री० [फा०] खेती; जीत । - कार - पु० खेतिहर । - कारी - स्त्री० खेती किसानी; वह जमीन जिसपर किसीको खेती करनेका अधिकार हो । किकियाना - अ० क्रि० रोना, चिल्लाना । काश्मीर - वि० [सं०] कश्मीरका; कश्मीर में उत्पन्न । पु० किचकिच- स्त्री० झगड़ा, विवाद; अशांति । कश्मीर देश; केशर । -ज-पु० केसर ।
क्या ।
काषाय - वि० [सं०] हड़, बहेड़े आदि से रँगा हुआ; गेरुआ । काष्ठ - पु० [सं०] काठ, लकड़ी; ईंधन । कीट- पु०धुन । - तक्ष, - तक्षक - पु० बढ़ई । - भारिक- पु० लकड़ी ढोनेवाला; लकड़हारा ।
काष्ठा - स्त्री० [सं०] दिशा; सीमा; चरम सीमा काष्टिक - पु० [सं०] लकड़हारा ।
कास - पु० [सं०] ख. सी; छींक, सहिजनका पेड़; एक घास । कासनी - स्त्री० एक पौधा; उसके बीज जो दबाके काम आते हैं; कासनी के फूलकासा हलका नीला रंग । कासा - पु० [फा०] प्याला; कटोरा; फकीरोंका भिक्षापात्र । कासार - पु० [सं०] तालाब; ताल; झोल । काह * - सर्व० क्या, क्या बात ।
काहल * - वि० गंदा, पंकिल - 'तोहि मथ करिहैं काहल' - दीनद० । काहि *
- स० किसे; किससे ।
काहिल - वि० [अ०] सुस्त, आलसी, कीमचोर | काहिली - स्त्री० [अ०] सुस्ती, आलस्य, ढिलाई । काहीँ - *अ० को; पास; द्वारा ।
काही - वि० स्याही लिये हुए हरे रंगका, घासके रंगका ।
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किंपुरुष - पु० [सं०] किन्नर ; जंबूद्वीपका एक खंड;नीच व्यक्ति । किंवदंती - स्त्री० [सं०] जनरव, अफवाह | किंवा - अ० [सं०] या, या तो, अथवा । किंशुक - पु० [सं०] पलाश, टेसू ।
कि- अ० एक योजक शब्द, जो देखना, कहना आदि क्रियाओंके विभिन्न रूपोंके बाद, संज्ञा वाक्यांश आरंभ होने के पहले आता है; अथवा; इतनेमें; *क्यों, क्योंकर;
काहे * - अ० क्यों, किसलिए |
किंकर - पु० [सं०] सेवक; टहलू; राक्षसोंकी एक जाति । किंकर्तव्यविमूढ - वि० [सं०] जिसकी समझ में न आये कि अब क्या करना चाहिये, भौचक्का ।
किचकिचाना-अ० क्रि० दाँतपर दाँत रखकर दबाना, दाँत पीसना ।
किचकिचाहट - स्त्री० किचकिचानेका भाव । किचड़ा ( रा ) ना- अ० क्रि० (आँख में) कीचड़ भरना । किचपिच - स्त्री० भीड़भाड़; फिसलन; गिचपिच । वि० अस्पष्टः क्रमरहित ।
किचरपिचर - स्त्री०, वि० दे० 'किचपिच' । किटकिट - स्त्री० झगड़ा, किचकिच |
किटकिटाना - अ० क्रि० गुरसेसे दाँत पीसना; खाते समय दाँतके नीचे कंकड़ी पड़ना ।.
किटकना - पु० ठेकेदारसे लिया हुआ, ठेकेदारकी ओरसे दूसरोंको दिया जानेवाला ठेका; किफायतसारी; थोड़े पैसों से काम चलानेका ढंग; चालाकी; सोनारोंका ठप्पा - (a) दार - पु० ठेकेदार से ठेका लेनेवाला । - बाज़- वि० किफायत, चतुराई से काम करनेवाला ।
किट्ट, किट्टक - पु० [सं०] तलछटकी तरह बैठा हुआ, जमा हुआ मैल; कीट; धातु का मैल ।
कित * - अ० किधर, किस ओर; कहाँ; तरफ । वि० कितना । कितक* - वि० कितना; कहीं, कितनी दूर ..कहै कितक तव धाम' - चाचा हित० ।
कितना - वि० किस मात्रा या गिनतीका; वि.स दरजेका; बहुत अधिक; बहुत बड़ा । अ० किस मात्रामें; वहाँतक; बहुत ज्यादा ।
कितने - वि० बहुतेरे, बहुतसे ।
पु० गहरा रंग, घासका रंग ।
काहु *
- सर्व० किसी ।
कितव - पु० [सं०] जुआरी; धूर्त; ठग; दुष्ट; सनकी; धतूरा ।
काहू- *सर्व० किसी | पु० [फा०] एक पौधा जो दवाके क्रिता- पु० - [अ०] टुकड़ा, खंट; एक उर्दू पद्य; दे० 'कता' । काम आता है ।
किताब - स्त्री० [अ०] लिखी हुई चीज; पोथी; बही । - खाना - पु० पुस्तकालय । फ़रोश- पु० पुस्तक-विक्रेता । किताबी - वि० किताब से संबद्ध, पुस्तकीय । -इल्म
पु० पुस्तकीय विद्या । -कीड़ा पु० किताबमें लगनेवाला कीड़ा; वह आदमी जो बराबर पुस्तक पढ़ता रहता है । कितिक* - वि० कितना; बहुत ।
किंकिणी - स्त्री० [सं०] करधनी; क्षुद्रघंटिका । किंकिनी* - स्त्री० करधनी ।
किंगरी, किंगिरी - स्त्री० छोटा चिकारा ।
किंचन - पु० [सं०] पलाश; असाकल्य, थोड़ी वस्तु ।
कितेक * - वि० कितना; बहुत । कितेब* - स्त्री० किताब | कितै* :- अ० कहाँ, किस जगह । कितो* - वि०, अ० कितना ।
किंचित्- वि०, अ० [सं०] कुछ, थोड़ा।
किंजल, किंजल्क - पु० [सं०] कमलका केसर, पद्मकेसरः कित्ति - स्त्री० दे० 'कीर्ति' ।
नागकेशर ।
किंतु - अ० [सं०] लेकिन, परंतु; बल्कि । किंपुरुख* - पु० दे० 'किंपुरुष' ।
किधर - अ० किस ओर, कहाँ । मु०-से चाँद निकलाकिधर भूल पड़े ?
किध - अ० या, अथवा; या तो ।
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