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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra छाली - स्त्री० सुपारी; कटी हुई सुपारी । छra- - स्त्री० छाया, परछाई; शरण, आश्रय । www.kobatirth.org २६३ छाला - छिलवाना छाला - पु० फफोला; छाल, चर्म (मृगछाला); * पत्र । निकालना । छालित* - वि० धुला हुआ, प्रक्षालित । छिद्रान्वेषी (पिन्) - वि० [सं०] छिद्रान्वेषण करनेवाला । छालिया - पु० छायादान करनेकी कटोरी। स्त्री० दे० 'छाली । छिद्रित - वि० [सं०] जिसमें छेद हों, सुराखदार । छिन* - पु० दे० 'छन' । - छबि - स्त्री० बिजली । -दास्त्री० क्षणदा, रात । - भंग - वि० क्षणभंगुर । छिनक * - पु० एक क्षण । अ० क्षणभर । छावना* - स० क्रि० दे० 'छाना' । छावनी - स्त्री० छप्पर; छप्परपोश मकान; वह स्थान जहाँ छिनकना-स० क्रि० साँसके साथ नाकका मल बाहर निकालना, नाक साफ करना । छिनना - अ० क्रि० छीना जाना; सिल आदिका कुटना । छिनरा - वि०, पु० परस्त्रीगामी, लंपट | छिनवाना - स० क्रि० छीननेका काम दूसरेसे कराना । छिनाना-स० क्रि० दे० 'छिनवाना'; * छीनना । छिनार, छिनाल - वि० स्त्री० पुंश्चली, बदकार, कुलटा ( स्त्री) 1 छिनाला - पु० छिनालपन, व्यभिचार, बदकारी । छिनौछबि-स्त्री० दे० 'छिनछबि ' । छिन्न- वि० [सं०] कटा हुआ; काटकर अलग किया हुआ, खंडित; नष्ट किया हुआ । -नासिक - वि० नकटा । - भिन्न - वि० नष्ट-भ्रष्ट; जो तितर-बितर हो गया हो । - मस्त, - मस्तक - वि० जिसका सिर कट गया हो । - मस्तका, - मस्ता - स्त्री० दस महाविद्याओंके अंतर्गत एक देवी जो अपना सिर हथेलीपर घरे गलेसे निकलती रक्तधाराको पीती हुई मानी जाती है । छिपकली - स्त्री० एक रेंगनेवाला जंतु जो अक्सर घरकी दीवारों पर दिखाई देता और कीड़े-मकोड़े खाता है, बिस्तुइया, गृहगोधिका । सेना रखी जाय, पड़ाव, शिविर | छावरा* - पु० छौना, शावक । छावा - पु० बच्चा बेटा; हाथीका पट्टा । छासठ - वि० साठ और छ । पु० छासठकी संख्या, ६६ । छाह - स्त्री० दे० 'छाछ' । हिंगुनिया, हिंगुनी - स्त्री० कानी उँगली । छिंगुलिया, छिंगुली - स्त्री० दे० 'छिँगुनी' । छिंछ, छिछि - स्त्री० छींटा; - 'सोनित छिछ उछरि आका सहि, गज बाजिन सिर लागी' - सू० ; फुहारा; धार । छिंड़ाना - सु० क्रि० छीन लेना । छिः, छि- अ० घृणा, तिरस्कार या धिक्कारसूचक शब्द, छी । छिउँकी - स्त्री० एक तरहकी चींटी; एक उड़नेवाला कीड़ा । छिकनी - स्त्री० एक बूटी जिसे सूँघनेसे बहुत छींकें आती हैं। छिगुनी - स्त्री० कानी उँगली, कनिष्ठिका । छिच्छ* - स्त्री० बूँद; छींटा । छिछड़ा - पु० मांसका बेकार टुकड़ा जो कुत्तों-बिल्लियोंके खाने के लिए फेंक दिया जाता है; जानवरोंका मलाशय । छिछला - वि० उथला । छिछोरपन - पु० छिछोरेका काम, ओछापन, क्षुद्रता । छिछोरा - वि० ओछा, क्षुद्रः कमीना | छिटकना - अ० क्रि० विखरना, फैलना; किसी चीजको ज्योति, खासकर चाँदनीका फैलाना । छिटकाना - स० क्रि० बिखेरना, फैलना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छिपना-अ० क्रि० आड़ या परदे में होना, ऐसी जगह होना जहाँ कोई देख न सके; दृश्य न होना; डूबना, अस्त होना । छिपा रुस्तम - वि०, पु० असाधारण, किंतु अप्रसिद्ध गुणी । छिपाना - स० क्रि० आड़ में करना, ऐसी जगह या स्थिति में रखना जहाँ कोई देख न सके; ढँकना; प्रकट न करना । छिपाव-पु० छिपानेको क्रिया या भाव, गोपन । छिटकी। स्त्री० छींटा । छिटवा - पु० टोकरा, पावा । छिड़कना - स० क्रि० जल या दूसरे द्रव द्रव्यके छींटे फेंकना छिपी - पु० दे० 'छीपी'; दजी (बुंदेल०) । भुरकना ! छिप्र* - वि०, अ० दे० 'क्षिप्र' | छिड़काई - स्त्री० छिड़काव; छिड़कनेकी उजरत । छिड़काव - पु० छिड़कनेकी क्रिया; छींटोंसे तर करना । छिड़ना - अ० क्रि० छेड़ा जाना, आरंभ होना, चल पड़ना; झगड़ा, लड़ाई शुरू होना । छितनी - स्त्री० बाँसकों फट्टियों आदिसे बनी छोटी टोकरी । छितराना - अ० क्रि० विखरना । स० क्रि० बिखराना, फैलाना; अलग-अलग करना । छिमा * - स्त्री० दे० 'क्षमा' | छिया- *वि० मैला, गंदा; घृणित; तुच्छ । + पु० मैला, गू (बच्चोंकी बोली ) । स्त्री० गंदी, घिनौनी चीज; लड़की । मु० - छरद करमा-छी-छी करना । छियानबे - वि०, पु० दे० 'छानवे' । छियालीस - वि० चालीस और छ । पु० ४६ की संख्या । छियासी - वि० अस्सी और छ । पु० ८६ की संख्या । छिति* - स्त्री० दे० 'क्षिति' । -कंत, - नाथ, पाल-पु० छिरकना* - स० क्रि० दे० 'छिड़कना' | राजा । - रुह पु० वृक्ष । छितीस * - पु० राजा । छिरना* - अ० क्रि० दे० 'छिलना' । छिलकना * - स० क्रि० दे० 'छिड़कना' । छिलका - पु० फल, मूल, अंडे आदिका ऊपरी आवरण । छिलछिला * - वि० छिछला । छिदना - अ० क्रि० छेदा जाना, छेद होना; घायल होना; घावोंसे भर जाना; छलनी होना (कलेजा छिद गया) । छिदवाना - स० क्रि० दे० 'छिदाना' । छिदाना - स० क्रि० छेदने का काम दूसरे से कराना । छिद्र - पु० [सं०] छेद, सूराख; अवकाश; गडढा; दोष, ऐब । छिद्रान्वेषण - पु० [सं०] दूसरेके दोष ढूँढ़ना, खुचड़ | छिलवाना-स० क्रि० छीलनेका काम दूसरेसे कराना । छिलना- अ० क्रि० चमड़े या छिलकेका कटकर अलग हो जाना या रगड़से उधड़ जाना । छिलवाई - स्त्री० छिलवानेकी क्रिया या मजदूरी । १७- क For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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