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गोश्त - ग्रसित
- नशीनी - स्त्री० एकांतवास ।
गोश्त - पु० [फा०] मांस, सालन, लहम; गूदा । गोष्टागार - पु० [सं०] सभागृह ।
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- शाली (लिन्) - वि० गौरवयुक्तः सम्मानित । गौरवान्वित - वि० [सं०] गौरवयुक्त | गौरांग - पु० [सं०] चैतन्यदेव; कृष्ण; विष्णु । वि० गोरा; यूरोपीय । - महाप्रभु-पु० चैतन्यदेव ।
गोष्ठी - स्त्री० [सं०] दे० 'गो' के साथ |
गोह - स्त्री० छिपकली की जातिका एक जहरीला जंतु जो गौरा- स्त्री० [सं०] गोरी स्त्री; पार्वती; हल्दी; एक रागिनी । आकार में नेवलेके बराबर होता है । गौरी - स्त्री० [सं०] गोरी स्त्री; पार्वती; आठ वर्षकी अविवाहिता कन्या; धरती; वाणी; सफेद दूब; हल्दी; गोरोचन । - कांत, - नाथ- पु० शिव । -गुरु-पु० हिमालय । - शंकर - पु० हिमालयकी एक ऊँची चोटी । -शिखरपु० हिमालयकी वह चोटी जिसपर पार्वतीने तपस्या की थी। गौरीश- पु० [सं०] शिव । गौरैया - स्त्री० एक छोटी चिड़िया ।
गौल्मिक - पु० [सं०] ३० सिपाहियोंका नायक, गुल्मनायक । वि० गुल्म, अर्बुद रोग-संबंधी ।
गौहर - पु० [फा०] मोती; जौहर | ग्यान* - पु० दे० 'ज्ञान' | ग्यारस - स्त्री० एकादशी ।
ग्यारह - वि० दस और एक । पु० दस और एककी संख्या । ग्रंथ - पु० [सं०] पुस्तक, किताब; धन। -कर्ता (तृ), - कार - पु० ग्रंथ लिखने, रचनेवाला । -चुंबक- वि०, पु० पुस्तक के कुछ पन्ने पढ़कर ही, विषयका स्वल्प ज्ञान प्राप्त करके ही रह जानेवाला, पलवग्राही । - माला- स्त्री० कार्यालयविशेषसे क्रमपूर्वक प्रकाशित पुस्तकें। रचना - स्त्री० पुस्तक- रचना, किताब लिखना । - साहब-पु० [हिं०] सिखों का धर्मग्रंथ, सिख गुरुओं के उपदेशोंका संग्रह । ग्रंथन - पु० [सं०] गाँठ देकर बाँधना, गठियाना; गूंथना, गुफन; रचना |
ग्रंथना* - स० क्रि० गूंथना ।
ग्रंथागार - पु० [सं०] पुस्तकालय ।
गोहन - पु० [सं०] ढकना; छिपाना; + संग, साथ; संग लगा रहनेवाला, साथी । गोहरा - पु० उपला ।
गोहराना * - स० क्रि० अ० क्रि० आवाज देना; पुकारना । गोहार - स्त्री० पुकार; सहायता के लिए चिल्लाना; शोर-गुल । गोही* - स्त्री० छिपाव, गोपन; गुप्त बात । गोहुअ (व) न - पु० एक अति विषधर साँप । गोहेरा - पु० गोह; बिसखोपड़ा । गौँ-पु० काम निकलनेका मौका, अवसर, घात; मतलब, युक्ति; * गति, पहुँच; ढंग, चाल । मु० -का- मतलबका, कामका । -का यार - मतलबका दोस्त । -गाँठनाकाम निकालना, अपनी गरज देखना । -निकलनाकाम निकलना। -पड़ना - काम पड़ना । -से-चुपकेसे । गौ- स्त्री० [सं०] गाय | - चरी - स्त्री० [हिं०] गाय चरानेका
कर । - दुमा* - वि० गावदुम, गायकी पूँछ जैसा । - मुखी - स्त्री० दे० 'गोमुखी' । - शाला - स्त्री० दे० 'गोशाला' ।
गौat - स्त्री० दे० 'गौखा'; चौपाल ।
गौart - पु० झरोखा, गवाक्ष; गायका चमड़ा । गौग़ा - पु० [अ०] शोर-गुल, हल्ला; अफवाह | गौड़ - पु० [सं०] बंगालका पुराना नाम; गौड़ देशवासी; ब्राह्मणका एक वर्ग, पंच गौड़ ब्राह्मणोंकी एक उपजाति; कायस्थोंकी एक उपजाति; एक राग ।
गौड़ी - स्त्री० [सं०] गुड़ से बनायी हुई शराब; एक रागिनी; काव्य-नाटककी तीन रचना-रीतियों में से एक । गौण - वि० [सं०] अप्रधान; महत्त्व में दूसरे दरजेका । गौणी - वि०स्त्री० [सं०] गुण-संबंधिनी; अप्रधान ।-लक्षणास्त्री० लक्षणाका एक भेद (सा० ) ।
गौतम - पु० [सं०] गोतमका वंशज; न्यायशास्त्र के प्रवर्तक अक्षपाद ऋषिः एक ऋषि (अहल्या के पति); बुद्धदेव । गौतमी - स्त्री० [सं०] अहल्या; द्रोणाचार्यकी पत्नी; गोदा
वरी नदी; दुर्गा |
गौन * - पु० गमन; गौना । वि० चंचल |
गौनहारिन - स्त्री० दे० 'गौनहारी' । गौनहारी - स्त्री० गानेका पेशा करनेवाली स्त्री । गौना- पु० विवाहके कुछ काल बाद दुलहिनका मैकेसे बिदा होकर ससुराल जाना, द्विरागमन, मुकलावा । गौर - वि० [सं०] गोरा, श्वेत; पीला; उज्ज्वल । पु० सफेद रंग पीला रंग; लाल रंग; चंद्रमा; सोना; धवका पेड़ । - वर्ण - वि० गोरे रंगवाला, गोरा । पु० गोरा रंग । गौर - पु० [अ०] सोच-विचार, चिंतन । - से ध्यान देकर,
पूर्व गौरव - पु० [सं०] गुरुता, भारीपन महत्त्व, बड़प्पन; आदर, सम्मान प्रतिष्ठा, मर्यादा; गहराई, गांभीर्य ।
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ग्रंथागारिक- पु० [सं०] ( लाइब्रेरियन) ग्रंथागार ( पुस्तकालय) में संगृहीत ग्रंथोंकी अभिरक्षा तथा उनके आदान-प्रदान, संग्रहादिकी व्यवस्था करनेवाला व्यक्ति । ग्रंथावलि, ग्रंथावली - स्त्री० [सं०] ग्रंथमाला । ग्रंथावलोकन - पु० [सं०] पुस्तकाध्ययन ।
ग्रंथि - स्त्री० [सं०] गांठ, गिरह, गुठली; गुत्थी; अंगांका जोड़; शरीर के अंदरकी गाँठें जिनसे रस निकलता है; (ला०) माया-पाश | -च्छेदक- पु० गिरहकट । दूर्वास्त्री० गाडर दूव । - पर्णो- स्त्री० ग्रंथिदूर्वा । -भेद, - मोचक - पु० गिरहकट ।
ग्रंथिल - वि० [सं०] गाँठदार | पु० पिपरामूल; अदरक; विकंकत वृक्ष; करीर; चोरक नामक गंधद्रव्य; चौराईका साग; विकंटक वृक्ष; पिंडालू ।
ग्रंथी (थिन्) - वि० [सं०] जिसके पास बहुतसे ग्रंथ हों; जिसने बहुत से ग्रंथ पढ़े हों, विद्वान् । पु० ग्रंथकर्ता; ग्रंथका पाठ करनेवाला |
ग्रंस* - पु० कुटिलता, छलछिद्र ।
ग्रथित - वि० [सं०] गूंथा हुआ; इकट्ठा बाँधा हुआ; रचित । ग्रसन - पु० [सं०] भक्षण, निगलना; पकड़ना; जकड़ना । ग्रसना - स० क्रि० पकड़ना; ग्रास करना; सताना । ग्रसित - वि० दे० 'ग्रस्त' |
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