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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रस्त-घंघोलना अस्त-वि० [सं०] असा हुआ, पकड़ा, निगला हुआ पीड़ित। काव्यका एक दोष, जहाँ ग्राम्य शब्दोंका प्राधान्य हो; ग्रस्तास्त-पु० [सं०] सूर्य या चंद्रमाका ग्रहण लगे हुए अशिष्ट, अश्लील शब्द । -दोष-पु. काव्य या रचनामें ही अस्त हो जाना। गँवारू शब्द अधिक आना । -धर्म-पु० मैथुन । प्रस्तोदय-पु० [सं०] सूर्य या चंद्रमाका ग्रहण लगे हुए ही | ग्राव*-पु० दे० 'ग्रावा', ओला । उदय होना। ग्रावा(वन्)-पु० [सं०] पत्थर, पहाड़ बादल । ग्रह-पु० [सं०] सूर्यकी परिक्रमा करनेवाला तारा; सौर-| ग्रास-पु०[सं०] कौर, निवाला आहार निगलना: ग्रसना; मंडलके ९ प्रधान तारों-सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, आहार चंद्र या सूर्यका ग्रस्तांश; ग्रहण । शनि, राहु और केतु-मेंसे कोई एक नौकी संख्या: ग्रहण; ग्रासना*-स० कि० दे० 'ग्रसना'। प्राप्ति ; पकड़; चोरी । -दशा-स्त्री० जन्मराशिकी दृष्टि से ग्राह-पु० [सं०] ग्रहण; पकड़ा आग्रह; मगर, घड़ियाल । ग्रहोंकी स्थिति; उनका शुभ या अशुभ फलदायक होना; / ग्राहक-वि० [सं०] ग्रहण करनेवाला; लेनेवाला; मलबुरे दिन, विपत्काल ।-दोष-पु० ग्रह-विशेषकी अशुभ, रोधक । पु० गाहक, खरीदार । -यंत्र-पु० (रिसीव्हर) अरिष्टकारक दृष्टि । -नायक-पु० सूर्य; शनि । -पति- टेलीफोन, रेडियो या तारकी वाणी अथवा ध्वनि ग्रहण पु० सूर्य; चंद्रआक । -पीडन-पु०,-पीडा-स्त्री० करनेवाला यंत्र-वह यंत्र या यंत्रका भाग जिसकी सहाग्रहजनित पीडा, ग्रहबाधा । -मैत्री-स्त्री० वर-कन्याके यतासे दूरकी वाणी अथवा ध्वनि सुनाई दे सके । ग्रहस्वामियोंका परस्पर मित्र या अनुकूल होना ।-योग- ग्राहकांग-पु० [सं०] (रिसीव्हर) दे० 'ग्राहक-यंत्र'। पु० राशि-विशेषके एक ही अंशपर दो ग्रहोंका आ जाना। ग्राही(हिन्)-वि० [सं०] ग्रहण करनेवाला; पकड़ने -वेध-पु० ग्रहोंकी स्थितिका ज्ञान प्राप्त करना। वाला; कब्ज करनेवाला। -शांति-स्त्री. जप, पूजन आदिके द्वारा ग्रहदोषकी | ग्राह्य-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य पकड़ने, लेने, समनिवृत्तिका उपाय किया जाना । झने योग्य; मान्य । ग्रहण-पु० [सं०] पकड़नेकी क्रिया, पकड़ा लेना, स्वीकार; ग्रीखम*-पु० दे० 'ग्रीष्म'। प्राप्ति; धारण; समझना, अर्थबोध; ग्रह-विशेषका दूसरे ग्रीवा-स्त्री० [सं०] गरदन, गला । ग्रहकी छायासे कुछ कालके लिए छिप जाना; सूर्य और ग्रीषम*-पु० दे० 'ग्रीष्म' । पृथ्वीके बीच में चंद्रमाका या सूर्य और चंद्रमाके बीचमें ग्रीष्म-पु०[सं०] गरमीका मौसम,गरमी, निदाघ ।-कालपृथ्वीका आ जाना। पु० गरमीके दिन । -कालीन-वि० ग्रीष्म ऋतु-संबंधी। ग्रहणीय-वि० [सं०] ग्रहण करने योग्य । ग्रेह-पु० गेह। ग्रहीता(त)-वि०, पु० [सं०] ग्रहण करनेवाला ग्राहका ग्रेही*-वि० संसारी। कर्ज लेनेवाला; निरीक्षण करनेवाला । प्रैव, अवेय, अवेयक-वि० [सं०] गला-संबंधी । पु० हार, मांडील-वि० बड़े डील-डौलका । हाथीके गले में पहनायी जानेवाली शृंखला। ग्राम-पु० [सं०] बस्ती; गाँव; जाति; समूह; एक षडजसे | ग्रंष्म, प्मिक-वि० [सं०] ग्रीष्म-संबंधी । दूसरे षट्जतकका स्वर-समूह, स्वर-सप्तक । -कंटक-पु० ! ग्लपित-वि० [सं०] क्लांत; शिथिल । वह जो ग्राममें झगड़े-बखेड़े उठाता है, ग्रामद्रोही। ग्लानि-स्त्री० [सं०] थकावट, शिथिलता; अपने किसी कार्य-णी-पु० गाँवका मुखिया; हज्जाम ।-देव-देवता- पर उत्पन्न खेद, पश्चात्ताप; अनुत्साह; एक संचारी भाव । पु० गाँवका अधिष्ठाता, गाँवकी रक्षा करनेवाला, देवता ।। ग्वार-स्त्री० कुलथी। * पु० ग्वाल । -द्रोही(हिन्)-पु० ग्रामके नियमका भंग, ग्राम | ग्वारनट-पु० एक बढ़िया रेशमी कपड़ा। पंचायतके निर्णयका उल्लंघन करनेवाल।। -पंचायत- ग्वारपाठा-पु० घीकुआर । स्त्री० [हिं०] गाँवके झगड़े सुनने और स्वास्थ्य, सफाई | ग्वारिन-स्त्री० दे० 'ग्वार'; दे० 'ग्वालिन'। आदिका प्रबंध करनेवाला मंडल । -मृग-पु० कुत्ता। ग्वाल-बाल-पु० अहीरोंके लड़के, कृष्णके बालसखा । -वासी(सिन)-पु० गाँवमें बसनेवाला, देहाती। | ग्वाला-पु० गोप, अहीर; एक छंद । -सिंह-पु० कुत्ता। -सुधार-पु० [हिं०] ग्रामके ग्वालिन-स्त्री० अहीरिन; एक बरसाती कीड़ा; एक तरकारी । संपूर्ण जीवनको सुधारनेका काम । ग्वैठना-स० क्रि० ऐंठना, मरोड़ना, टेढ़ा करना । ग्रामांत-पु० [सं०] गाँवकी सीमा, सिवाना । ग्वै ठा-पु० उपला । * वि० ऐंठा हुआ, टेढ़ा। . ग्रामीण-वि० [सं०] ग्राम-संबंधी; गँवार, देहाती। पु० | ग्वैड*--स्त्री०सीमा-'सुंदरताकी बैंड ऐंड्सों पैड़ चलैया'ग्रामवासी। (रत्नाकर )। ग्राम्य-वि० [सं०] ग्राम-संबंधी; ग्रामीण; मूर्ख, अनाड़ी; | ग्वैडा-पु० दे० 'गोड़ा' । असभ्य, अशिष्ट; अश्लील (शब्द); पालतू (पशु)। पु० ग्वै ।-अ० निकट, पास । घ-कवर्गका चौथा वर्ण। उच्चारण स्थान जिह्वा-मूल या कंठ। घंघरी-स्त्री० दे० 'घधरी' । धुंधरा-पु० दे० 'धधरा'। घंघो(र)लना-स० क्रि० पानीको हिलाकर उसमें मिट्टी For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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