________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वृत्र-वेत्री
७५४ जाने योग्य रखा जाने योग्य ।
वृहस्पति-पु० [सं०] दे० 'बृहस्पति' । वृत्र-पु०[सं०] अंधकारका मूर्त रूप एक दानव जिसे इंद्रने वेंकटेश, वेंकटेश्वर-पु० [सं०] विष्णु (वेंकटगिरिस्थ मूर्ति)। मारा था; बादल; अंधकार; शत्रु । -घ्न,-हंता(तृ),- वे-सर्व० 'वह'का बहुवचन । हा(हन )-पु० इंद्र।
वेकट-पु०[सं०] एक मछली, भाकुर विदूपका युवा जौहरी। वृत्रारि-पु० [सं०] इंद्र।
वेक्षण-पु० [सं०] अच्छी तरह देखना; देखभाल । वृथा-अ० [सं०] बेकार, बेमतलब, निष्प्रयोजन । वि० वेग-पु० [सं०] तीव्र प्रवृत्ति प्रचंडता; प्रवाह; मलअनुचित; झूठ निरर्थक, निरुपयोगी ।-वादी(दिन)- मूत्रके निकलनेकी प्रवृत्ति, शक्तिसंचार (विषादिका); वि० झूठ बोलनेवाला।
जल्दी, शीघ्रता; बाणकी गति; प्रगाढ़ प्रणय; आंतरिक वृद्ध-वि० [सं०] बढ़ा हुआ; बूढ़ा, अधिक अवस्थाका; बड़ा; भावकी बाह्य अभिव्यक्ति, अनुभाव तेज, वायु आदिमें
चतुरः विद्वान् ; योग्य या सम्मानित । पु० बूढ़ा आदमी; पाया जानेवाला एक गुण (न्या०)। -गा-स्त्री० नदी। सम्मानित व्यक्ति।
-वृद्धि-स्त्री० (एक्सिलरेशन) वेग या रफ्तार बढ़नेकी वृद्धता-अधिदेय-पु० [सं०] (सूपर एनुएशन अलाउंस)| क्रिया।। वृद्धताके कारण किसी कर्मचारीके काम करने में असमर्थ हो वेगवान् (वत्)-वि० [सं०] वेगयुक्त; तेज चलनेवाला; जानेपर दी जानेवाली वृत्ति या भत्ता।
तीव्र, उग्र। वृद्धा-वि० स्त्री० [सं०] बुढ़िया, बुड्ढी । स्त्री० बूढ़ी स्त्री। वेगानिल-पु० [सं०] प्रचंड वायु, प्रभंजन । वृद्धावस्था-स्त्री० [सं०] बुढ़ापा ।
| वेणि-स्त्री० [सं०] चोटी गूंथना; बालोंकी लटकती हुई वृद्धाश्रम-पु० [सं०] संन्यास ।
चोटी; जल-प्रवाह दो या अधिक नदियोंका संगम; गंगा, वृद्धि-स्त्री० [सं०] बढ़ती, बाढ़ प्रगति; चंद्रकलाका बढ़ना; यमुना और सरस्वतीका संगम । धन-संपत्तिका बढ़ना; अभ्युदय; सफलता; संपत्ति; ब्याज, वेणी-स्त्री० [सं०] बालोंकी चोटी; धारा। -दान-पु० सूद सूदखोरी; लाभ; शोथ; अ, इ, उ आदिका आ,ऐ, औ प्रयागमें बाल कटवानेका एक संस्कार । -संवरण,आदि रूप ग्रहण करना (व्या०)। -कर-वि० वृद्धि संहरण,-संहार-पु० चोटी गूंथना, जूड़ा बाँधना । करनेवाला । -कर्म (न्)-पु. नांदीमुख श्राद्ध। वेणु-पु० [सं०] वाँस; नरसल, बाँसुरी। -कार-पु० वृश्चिक-पु० [सं०] बिच्छू; एक राशि; मार्गशीर्ष मास। बाँसुरी बनानेवाला । -वादक-पु० बाँसुरी बजानेवाला। वृष-पु० [सं०] बैल, साँड़, एक राशि वह जो अपने वर्गमें -वादन,-वाद्य-पु० बाँसुरी बजाना । सर्वश्रेष्ठ हो (प्रायः समासांतमें);मजबूत, हट्टा-कट्टा आदमी वेणुमय-वि० [सं०] बाँसका बना हुआ । ( कामशास्त्रके अनुसार चार प्रकारके पुरुषोंमेंसे एक)। वेतन-पु० [सं०] नियत समयपर, प्रायः महीने-महीने, -कर्मा (मन)-वि० बैलकी तरह काम करनेवाला दिया जानेवाला पारिश्रमिक, तनख्वाहा वृत्ति । -क्रम-केतन-पु. शिव। -पति-पु. शिव; छोड़ा हुआ पु० (ग्रेड ऑफ पे) वेतनका क्रम या दरजा । -जीवीसाँड़। -भान-पु० राधाका पिता। -भानु-पु० (विन)-वि० वेतनसे अपना निर्वाह करनेवाला; वेतन वृषका सूर्य; राधाका पिता। -भानुजा-भानुनंदिनी, लेकर काम करनेवाला। -दाता(त)-पु० (पे मास्टर)
-भानुसुता-स्त्री० राधा । -वाहन-पु० शिव । सैनिकों, श्रमिकों आदिको वेतन वितरित करनेवाला । वृषण-पु० [सं०] अंडकोश; अंड; शिव ।
-फलक-पु० (पे-शीट) कर्मचारियों, कर्मियोंको मिलनेवृषभ-पु० [सं०] बैल, साँड़ ।-केतु,-ध्वज-पु० शिव ।। वाले किसी मासके वेतनका पूरा-पूरा ब्यौरा देनेवाला -धुज*-पु० दे० 'वृषभध्वज'।
कागज या फलक । -भोगी(गिन् )-पु. वेतन लेकर वृषल-पु० [सं०] शूदा अधार्मिक व्यक्ति चंद्रगुप्त मौर्य । काम करनेवाला, वैतनिक कर्मचारी। वृषली-स्त्री० [सं०] शूद्रा; अविवाहित रजस्वला कन्या; वेताल-पु० [सं०] प्रेत (विशेषकर जिसका शवपर अधिवह स्त्री जिसे रजःस्राव हो रहा हो; बंध्या स्त्री।
कार हो); शिवका एक गणाधिप; द्वारपाल । -साधनवृषादित*, वृषादिय-पु०[सं०] ज्येष्ठकी संक्रांतिके सूर्य । पु० साधना द्वारा वेतालको वशमें करना। वृषोत्सर्ग-पु० [सं०] एक धार्मिक कृत्य, मृत जनोंके नाम- वेत्ता(त्त)-वि० [सं०] जानकार, शाता; अनुभव करने. पर चक्रसे दागकर साँड़ छोड़ना।
वाला । पु० ऋषि जिसे आत्मा-परमात्माका शान हो। वृष्ट-बि० [सं०] बरसा हुआ; वर्षाके रूपमें गिरा हुआ। वेत्र-पु० [सं०] बेत; डंडा; द्वारपालका दंड। -कारवृष्टि-स्त्री० [सं०] वर्षा, मेघसे जलविंदुओंका गिरना; पु० बेतका काम करनेवाला । -धर-धारक-पु. वर्षाकी तरह किसी चीजका बहुत बड़ी संख्या या परि. द्वारपाल, छड़ीबरदार। -धारी(रिन्)-पु. रईसका माणमें गिरना, झड़ी। -कर-वि० वृष्टि करनेवाला । नौकर । -पाणि,-हस्त-पु० छड़ीबरदार । -भृत्-काल-पु० बरसात, प्रावृट् । -पात,-संपात-पु० दे० 'वत्र-धर'। वर्षाका होना।
वेत्रक-पु० [सं०] सरपत । वृष्य-वि० सं०] पुंस्त्व बढ़ानेवाला; कामोद्दीपक । वेत्राघात-पु० [सं०] वैत लगाना, बेतकी छड़ीसे मारना। वृहत्-वि० [सं०] बड़ा, महान् ; भारी।
वेत्रासन-पु० [सं०] बेंतकी कुरसी या बेतकी कुरसीनुमा वृहन्नला-स्त्री० [सं०] विराटराजके यहाँ अज्ञातवास करते | डोली । समयका अर्जुनका नाम ।
| वेत्री(बिन्)-पु० [सं०] द्वारपाल; आसाबरदार ।
For Private and Personal Use Only