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अच्छाई-अजसी चंगा, निरोग; सुधरता हुआ; स्वास्थ्यकर ( जलवायु); अविभाज्य; अविनश्वर । संपन्न, प्रतिष्ठित; दाममें मुनासिब, सस्ता (?); जो बुरा न | अछेय-वि० छिद्र-रहित, निदोष । हो; कामचलाऊ । पु० श्रेष्ठ पुरुष, गुरुजन; बड़ा-बूढ़ा। अछेह*-वि० लगातार, निरंतर अत्यधिक । अ० अच्छी तरह; स्वीकार सूचक उत्तर, हाँ; खैर ( यह अछोप-वि० अंगा, तुच्छ, नीच; दीन । आश्चर्य भी प्रकट करता है-अच्छा, आप हैं !)।- अछोभ-वि० क्षोभरहित; गंभीर, शांत; निभीक; मोहखासा-वि० काफी अच्छा। -बुरा-वि० भला-बुरा। रहित; निडर; नीच । मु०-आना-ठीक वक्तपर आना (व्यंगमें इसका उलटा); अछोर*-वि० ओर-छोर-रहित । सुदर बनना ।-करना-तंदुरुस्त करना; आफतसे बचानाः | अछोह-पु० स्नेह, ममता या क्षोभका अभाव; शांति; अच्छा काम करना ।-कहना-तारीफ करना । लगना- निर्दयता । वि० निर्दय, निष्ठुर; स्नेहरहित, क्षोभरहित । सुदर लगना, पसंद आना, भला मालूम होना । अछोही-वि० दे० 'अछोह' । -(च्छी) कटना,-गुजरना,-बीतना-आरामसे दिन अज-वि० [सं०] अजन्मा, अनादि कालसे विद्यमान । पु० बीतना ।-(च्छे)अच्छे-बड़े आदमी ।-वक्त-जरूरतके ईश्वर; ब्रह्मा, विष्णु; शिव; जीवात्मा; दशरथके पिता; एक वक्त ।-से पाला पड़ना-बड़े बेढब आदमीसे वास्ता पड़ना। ऋषि; बकरा; भेड़ा; कामदेव; चंद्रमा मेष राशि -गरअच्छाई-स्त्री० भलाई, अच्छापन, खूबी।
पु० अजदहा, एक विशाल सर्प जो बकरी, हिरन आदिको अच्छापन-पु० उत्तमता, सुंदरता ।
निगल जाता है; एक असुर ।-वृत्ति-स्त्री० निरुद्यम या अच्छिन्न-वि० [सं०] जो कटा न हो, अखंडित ।
भगवानके भरोसे रहनेकी वृत्ति ।-गरी-वि० अजगरकी, अच्छोहिन, अच्छोहिनी-स्त्री० दे० 'अक्षौहिणी। बिना परिश्रमकी । स्त्री० अजगरी वृत्ति; एक पौधा ।। अच्युत-वि० [सं०] जो अपने स्वरूप, सामर्थ्य, स्थानसे अज़-अ० [फा०] से, साथ। -खुद-अ० खुद-बखुद, च्युत न हुआ हो; अचल, अस्खलित, निर्विकार; स्थिर; अपने आप ।-गैब-अ० रोबसे, परोक्षसे, अलक्षित न चूनेवाला । पु० परमेश्वर, विष्णुः कृष्ण ।
स्थानसे | *पु० अदृष्ट स्थान । -गैबी-वि० रोब, अलक्षित अच्युताग्रज-पु० [सं०] बलराम ।
स्थानसे आनेवाला, आकस्मिक, आस्मानी (अज़रीबी अच्युतात्मज-पु० [सं०] कामदेव; कृष्णका पुत्र ।
गोला,-तमाचा,-मार = अचानक आनेवाली विपदा, अछक-वि० जो छका न हो, अतृप्त ।
दैवी कोप)। -हद-अ० बेहद, अत्यधिक । अछकना ---अ० क्रि० न छकना, तृप्त न होना।
अजगर-दे० 'अज' के साथ। अछत*-अ० (क०) विद्यमानतामें, रहते हुए । वि०अविद्य- अजगव-पु० [सं०] शिवका धनुध् । मान, ('छतहूँ अछत समान' ); सिवा; अलावा । | अजगुत-पु० अचंभेकी बात, विचित्र व्यापार; अयुक्त अछताना-पछताना-अ० क्रि० बार-बार पछताना या| बात । वि० आश्चर्योत्पादक; अनुपमेय । खेद करना।
अजड-वि० [सं०] जो जड न हो, चेतन, समझदार । अछन -पु० बहुत दिन । अ० धीरे-धीरे ।
पु० चेतन पदार्थ । अछना-अ० क्रि० विद्यमान रहना।
अज़दहा-पु० [फा०] अजगर । अछप-वि० न छिपने लायक, प्रकट ।
अजन-पु० [सं०] ब्रह्मा, तुच्छ व्यक्ति गमन.। वि०निर्जन, अछय-वि० दे० 'अक्षय' ।
जनहीन; जन्मरहित; अजन्मा । अछरा(री)-स्त्री० दे० 'अप्सरा' ।
अजनबी-वि० [फा०] अपरिचित; परदेशी; अनजान । अछरौटी-स्त्री० वर्णमाला।
अजन्मा (न्मन्)-वि० [सं०] जन्म-रहित; अनादि । अछल-वि० [सं०] निश्छल, सीधा-सादा ।
अजपा-पु० [सं०] एक मंत्र जिसका उच्चारण साँसके भीतरअछवाई-स्त्री० सफाई ।
बाहर आने-जाने मात्रसे किया जाता है; हंस-मंत्र; अछवाना*-स० क्रि० साफ करना, सँवारना .
'सोऽहम्'। -जप-पु० अजपा मंत्रका जप । अछवानी-स्त्री० एक तरहका अवलेह जो प्रसूता स्त्रियोंको | अजब-वि० [अ०] विचित्र, अनोखा । पु० अचरज । दिया जाता है।
अज़मत-स्त्री० [अ०] बड़ाई, बुजुगी; गौरव; चमत्कार। अछाम-वि० जो दुबला न हो, मोटा-ताजा, हृष्ट-पुष्ट । अजमी-वि० [अ०] अजमका । पु० ईरानी, तूरानी । अछिद्र-वि० [सं०] छिद्ररहित; निर्दोष ।
अजय-स्त्री० [सं०] पराजय । वि० अजेय ।। अछूत-वि० दे० 'अछूता'; अस्पृश्य । पु० अछूत जातिका अजया-स्त्री० [सं०] भाँग, माया; दुर्गाकी एक सहचरी; मनुष्य, अंत्यज, हरिजन ।।
*बकरी । अछता-वि० जो छुआ न गया हो, अस्पृष्ट; जो काममें न | अजय्य-वि० [सं०] जो जीता न जा सके, अजेय । लाया गया हो, कोरा, नया।
अजर-वि० [सं०] जरारहित, जो सदा जवान रहे; क्षयअछूतोद्धार-पु० अछूतोंका उद्धार या सुधार; इसका यत्न रहित; *जो पचे नहीं । पु० परब्रह्म; देवता । या आंदोलन ।
अजरायल-वि० जीर्ण न होनेवाला,चिरस्थायी, टिकाऊ! अछेद-वि० अभेद्य । पु० छल-छिद्रका अभाव; निष्क- | अजवायन-स्त्री० एक प्रसिद्ध पौधा और उसके दाने । पटता; अभेद ।
अजस*-पु० दे० 'अयश'। अछेद्य-वि० [सं०] जिसका छेदन या खंडन न हो सके, अजसी-वि० बदनाम, जिसके हाथमें यश न हो।
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