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अघोर - पु० [सं०] शिवका एक रूप; एक शिवोपासक पंथ । वि० जो घोर या भयानक न हो, सौभ्य । -माथ - पु० शिव । - पंथ- पु० [हिं०] अघोरियोंका पंथ वा संप्रदाय । - पंथी - पु० [हिं०] अघोर मतका अनुयायी । अघोरी (डी) - पु० अघोरपंथी, औघड़; घिनौनी चीजें खाने-पीनेवाला । वि० घृणित; गंदा । अघोष - वि० [सं०] बिना शब्दका; अल्प ध्वनिवाला; ग्वालोंसे रहित । पु० एक वर्ण समूह ( प्रत्येक वर्गके प्रथम दो अक्षर तथा श, ष, स ) 1
अघौघ - पु० [सं०] पापसमूह ।
अघान * - पु० दे० 'अघ्राण' |
अघानना * - स० क्रि० गंध लेना, सूंघना |
अचंचल - वि० [सं०] जो चंचल न हो, स्थिर; धीर । अचंभव, अचंभो, भौ* - पु० अचंभा, आश्रर्य | अचंभा - पु० आश्चर्य, विस्मय; आश्चर्यजनक बात । अचंभित* - वि० चकित, विस्मित | अचक - वि० भरपूर, न चुकनेवाला *स्त्री० भौचक्कापन | अचकचाना - अ० क्रि० भौंचक्का होना, विस्मित होना, चौंक उठना ।
अचकन - पु० लंबा कलीदार अंगरखा जिसमें पहले गरेबाँसे कमरपट्टीतक अर्धचंद्राकार बंद लगते थे और अब सीधे बटन टँकते हैं ।
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अचाहा* - वि० जिसकी चाह न हो; जो प्रेमपात्र न हो; पु० वह व्यक्ति जिसपर प्रेम न हो या जो प्रेम न करे । अचाही* *- वि० इच्छारहित, निष्काम । अचिंत * - वि० चिंता-रहित, बेफिक्र । अचिंतनीय - वि० [सं०] जिसका चिंतन न हो सके; अज्ञ य; आकस्मिक, अप्रत्याशित ।
अचिंतित - वि० [सं०] जो सोचा न गया हो; अतर्कित, आकस्मिक, अप्रत्याशित; उपेक्षित ।
अचित्य - वि० [सं०] दे० 'अचिंतनीय' |
अचकाँ* - अ० अचानक ।
अचिकित्स्य - वि० [सं०] जो चिकित्सा के योग्य न हो, असाध्य, लाइलाज ( रोग ) ( इनक्योरबिल ) ।
अचक्का' – पु० अनजान । - (के) में अचानक, धोखे में । अचिकीर्षु - वि० [सं०] जिसे (कोई काम ) करनेकी इच्छा अचगरा* - वि० उत्पाती, नटखट, शरारती । अचगरी* - स्त्री० नटखटी, शरारत ।
अचना * - मु० क्रि० दे० 'अचवना' |
न हो, जो कुछ करना न चाहता हो, आलसी । अचित्- वि० [सं०] अचेतन, जड । पु० जड जगत् । अचिर- अ० [सं०] शीघ्र; हालमें; कुछ ही पहले । वि० क्षणस्थायी; हालका । -द्युति, - प्रभा - स्त्री० बिजली । अचिरम् - रात्, अ० [सं०] शीघ्र, अविलंब; कुछ ही पहले | अचीता - वि० अनसोचा, आकस्मिक; बहुत अधिक; निश्चित । अचूक - वि० खाली न जानेवाला, अव्यर्थ; निश्चित, भ्रमरहित । * अ० कौशलपूर्वक सफाईसे; निश्चय पूर्वक ।
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अचरज - पु० आश्चर्य, अचंभा ।
अचरित - वि० [सं०] जिसपर कोई चला न हो; अव्यवहृत; अछूता । पु० गतिरोध ।
अचल - वि० [सं०] गतिहीन, स्थिर; चिरस्थायी, अटल । पुरै पहाड़; कील; ७की संख्या ( ७ कुल पर्वतोंपर से ); - कन्यका, - दुहिता, - सुता - स्त्री० पार्वती । - पतिराज - पु० हिमालय । -संपत्ति स्त्री० न हटायी जा सकनेवाली सम्पत्ति ( घर, खेत इ० ) । अचला - स्त्री० [सं०] पृथ्वी। -सप्तमी-स्त्री० माघ शुक्ला अचैन* - वि० बेचैन । पु० बेचैनी । सप्तमी ।
अचर-वि० [सं०] अचल, स्थावर | पु० स्थावर प्राणी अचेत ( स ) - वि० [सं०] संज्ञा-रहित, बेहोश; व्याकुल; या पदार्थ । नासमझ; जड | पु० जड पदार्थ; जडता, माया । अचेतन - वि० [सं०] चेतना-रहित; अज्ञान; निर्जीव; संज्ञा-रहित, बेसुध । पु० जड पदार्थ । अचेतनक- पु० ( अनीस्थेटिक ) चेतनाहीन, बेहोश, बना देनेवाला पदार्थ ( जैसे क्लोरोफार्म ) । अचेतनीकरण - पु० ( एनीस्थेसिस ) अचेतन या बेहोश कर दिया जाना, चेतना हीन हो जाना । अचैतन्य - वि० [सं०] चेतना-रहित, जड | पु० चेतनाका अभाव, अज्ञान; बेहोशी; जड पदार्थ ।
अचोना* - पु० आचमनका पात्र ।
अचपल - वि० [सं०] अचंचल, धीर, स्थिर; * वि० चंचल, शोख ।
अचपली* - स्त्री० छेड़छाड़, क्रीडा ।
अचभौन* - पु० अचरजकी बात; दे० 'अचंभा' |
अचमन * - पु० दे० 'आचमन' |
अचवन - पु० दे० 'आचमन' । अचवनrt - स० क्रि० आचमन करना, पीना; छोड़ देना । अ० क्रि० भोजनोपरांत कुल्लो आदि करना । अचवाई* - वि० प्रक्षालित, स्वच्छ । अचवाना - सु० क्रि० आचमन कराना | अचाक, अचाका* - अ० अचानक ।
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अघोर - अच्छा
अचान* - अ० अचानक, सहसा ।
अचानक - अ० यकायक, जिसकी पहले से सूचना, प्रतीक्षा न हो; औचट ।
अचार - पु० चिरौंजीका फल * दे० 'आचार'; + फल या तरकारी में मिर्च-मसाले लगाकर कुछ दिनोंतक तेल या सिरके में रखने से बना चटपटा खाद्य । अचारज* - पु० दे० 'आचार्य' ।
अचारी । - वि०, पु० दे० 'आचारी' । स्त्री० आमोकी फाँकोको धूप में सिझाकर बनाया हुआ अचार |
अचारु - वि० [सं०] असुंदर ।
अचाह* - स्त्री० चाहका अभाव, अनिच्छा । वि० इच्छारहित, निष्काम |
अच्छ - वि० [सं०] स्वच्छ, निर्मल, पारदर्शक; * अच्छा । पु० * आँख; रुद्राक्षः रावणका पुत्र अक्षकुमार । अच्छत - पु० दे० 'अक्षत' । वि० अखंडित; लगातार । अच्छर - पु० दे० 'अक्षर' |
अच्छरा (री)* - स्त्री० दे० 'अप्सरा' ।
अच्छा - वि० भला, बढ़िया; ठीक, सुंदर; खरा; सकुशल;
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