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अतीचार-अदभ्र अतीचार-पु० दे० 'अतिचार'।
| अत्र-अ० [सं०] यहाँ, इस जगह; इस संबंधमें; वहाँ। अतीत-वि० [सं०] बीता हुआ, गत; मृत; परे, पार गया -स्थ-यहाँ रहनेवाला; इस जगहका । हुआ; निलेप; न्यारा। पु० भूतकाल; साधु, संन्यासी अत्वरा-स्त्री० [सं०] शीघ्रताका अभाव । गोसाइयोंकी एक जाति; *अतिथि, साधु । अ० परे । अथ-अ० [सं०] आरंभ तथा मंगल-सूचक शब्द; अब तब, अतीतना*-अ० क्रि० बीतना, गुजरना।
अनंतर; अगर । पु० आरंभ, आदि। -किम्-अ० और अतीथ*-पु० दे० 'अतिथि'; गोसाइँयोंकी एक जाति । क्या; हाँ; अवश्य । -च-अ० और; और भी। -से अतीव-अ० [सं०] बहुत अधिक, अत्यंत ।
इतितक-आदिसे अंततक । अतीस-पु० [सं०] एक वनौषधि, अतिविषा ।
अथक-वि० न थकनेवाला। अतुंग-वि० [सं०] जो ऊँचा न हो, नाटा ठिंगना । अथना, अथयना*-अ० कि० अस्त होना। अतुराई*-स्त्री० आतुरता, चंचलता।
अथरा-पु० नाद, मिट्टीका एक बरतन जो कपड़ा रँगने अतुराना*-अ० क्रि० आतुर होना, जल्दी मचाना । आदिके काममें आता है। अतुल-वि० [सं०] जिसकी तौल-माप न हो सके; अमित, अथरी-स्त्री० छोटा अथरा, मिट्टीका छिछला बरतन जिसमें तुलनारहित । पु० तिलक वृक्ष; अनुकूल नायक (केशव)। दही जमाते हैं और कुम्हार हंडी रखकर थापीसे पीटते हैं। अतुलनीय-वि० [सं०] जिसकी तुलना न हो सके। अथर्व-पु० [सं०] एक वेद जो चौथा वेद माना जाता है। अपरिमित ।
अथर्वणि-पु० [सं०] अथर्ववेदोक्त कर्मोको जाननेवाला अतुलित-वि० [सं०] बिना तौला हुआ बेहिसाब बेजोड़। ब्राह्मण पुरोहित ।। अतुल्य-वि० [सं०] बेजोड़ ।
अवनी*-पु० यज्ञादि करानेवाला पुरोहित । अतुप-वि० [सं०] बिना भूसीका।
अथवना*-अ० क्रि० अस्त होना। अतुष्टि-स्त्री० [सं०] अप्रसन्नता, असंतोष ।
अथवा-अ० [सं०] वा, या। अतुहिन-वि० [सं०] जो ठंढा न हो। -कर-रश्मि,- अथाई-स्त्री० बैठक, चौपाल; गाँववालोंके एकत्र होनेका रुचि-पु० सूर्य ।
स्थान, गोष्ठी, मंडली। अतूथ*-वि० अपूर्व, अतुल्य ।
अथान, अथाना-पु० अचार । अतूल*-वि० दे० 'अतुल'।
अथाना-अ० क्रि० दे० 'अथवना' । सक्रि० थाह लेना। अतृप्त-वि० [सं०] असंतुष्ट; भूखा ।
हूँढ़ना। अतृप्ति-स्त्री० [सं०] संतुष्ट न होनेको अवस्था असंतुष्टि । अथावत-वि० अस्त, डूबा हुआ । अतोर*-वि० अटूट।
अथाह-वि० बहुत गहरा, अगाध; अपार, बेहिसाब अतोल, अतील-वि०विना तौला हुआ; बेजोड़ बेहिसाब । अगम्य । पु० समुद्र; गहराई ।। अत्ता-स्त्री. अति, ज्यादती ।
अथिर*-वि० अस्थिर; क्षणस्थायी । अत्तार-पु० [अ०] इत्र बेचनेवाला; यूनानी दवाएँ बनाने, अथोर -वि० जो कम न हो, अधिक, बहुत । बेचनेवाला।
अदंक*-पु० डर, भय । अत्ति-स्त्री० अति, ज्यादती, ऊधम ।
अदंड-वि० [सं०] अदंडनीय; * निर्भय, बिना महसूलका। अत्यंत-वि० [सं०] हदसे ज्यादा; अतिशय पूर्ण, नितांत अदंडनीया-ड्य-वि०स०] दडका अनाधकारात दडमुक्त। अ० अत्यधिक, पूरे तौरसे ।।
अदंडमान-वि० अदंड्य । अत्यंताभाव-पु० [सं०] किसी वस्तु का पूर्ण अभाव | अदंत-वि० [सं०] बे-दाँतका; जिसे दाँत न निकले हों। तीनों कालों में संभव न होना (जैसे आकाश कसुम) अदभ-वि० [सं०] दभराहतः सच्चा; सरल, * अकृत्रिम, अत्यंतिक-वि० [सं०] बहुत चलने या घूमनेवाला; अति | स्वाभाविक । समीपी।
अदक्ष-वि० [सं०] अकुशल, भद्दा, बदशकल । अत्यम्ल-पु० सं०] इमलीका पेड़ । वि० बहुत खट्टा। । अदग*-वि० बेदाग, निदोष, अछूता । अत्यय-पु० [सं०] बीतना; अभाव; विनाश; मृत्यः अंतः। अदत्त-वि० [सं०] नहीं दिया हुआ; अनुचित तरीकेसे दंड; अपराध; आक्रमण; मर्यादाका अतिक्रमण कष्ट ।
दिया हुआ; जो दिया न गया होविवाहमें जिसे न अत्याचार-पु० [सं०] अनुचित आचरण, दुराचार; ढोंग; दिया गया हो । जुल्म, उत्पीडन, अन्याय ।
अदत्ता-स्त्री० [सं०] अविवाहिता कन्या । वि० स्त्री० न अत्याचारी(रिन)-वि० [सं०] अत्याचार करनेवाला । | दी हुई। अत्याज्य-वि० [सं०] जो छोड़ा न जा सके।
अदद-पु० [अ०] संख्या , अंक । अत्याहारी (रिन्)-वि० [सं०] अधिक आहार करनेवाला। अदन-पु० [सं०] भक्षण, खानेकी क्रिया। पु० [अ०] अत्युक्ति-स्त्री० [सं०] किसी बातको बढ़ा-चढ़ाकर कहना,
स्वर्गका उद्यान जहाँ ईश्वरने आदमको रखा था। मुबालिगा; एक अलंकार जिसमें उदारता, वीरता अदना-वि० [अ०] छोटा तुच्छ ।
आदिका बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाता है। अदब-पु० [अ०] विनय, शिष्टाचार बड़ोंका सम्मान । अत्युत्पादन-पु० [सं०] मालका अत्यधिक मात्रामें / अदबदाकर-अ० हठ करके अवश्य । उत्पादन।
अदभ्र-वि० [सं०] अनल्पः प्रचुर * अपार । २-क
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