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सगर्भ-सजग सगर्भ-वि० [सं०] सगा, सहोदर (भाई)।
सचारु-वि० [सं०] बहुत सुंदर । सगर्भा-स्त्री० [सं०] गर्भवती स्त्री सगी बहन ।
सचावटो-स्त्री०सचाई । सगल*-वि० सकल, सब ।।
सचित-वि० [सं०] चिंतायुक्त, चिंतित । सगा-वि० एक माँ-वापसे उत्पन्न, सहोदर, निकट संबंधी। सचिक्कण-वि० [सं०] बहुत चिकना ।
-पन-पु० आत्मीयतापूर्ण संबंध, सगा होनेका भाव। सचिकन-वि० दे० 'सचिक्कण'। सगाई-स्त्री० मँगनी, विवाहका ठहराव; नाता, रिश्ता: सचित्त-वि० [सं०] बुद्धिमान्, प्रज्ञा-विशिष्ट; सावधान विधवा या परित्यक्ताका एक तरहका विवाह या विवाह | जिसका ध्यान किसी एक विषयपर हो। जैसा संबंध ।
सचित्र-वि० [सं०] चित्रोंसे युक्ता चित्रित । सगारत-स्त्री० सगापन ।
सचिव-पु० [सं०] साथी, मित्र, काला धतूरा, (सेक्रेटरी) सगुण-वि० [सं०] ज्यायुक्त; गुणवान्। सदगुणसंपन्न मंत्री किसी संस्था या संघटनके संचालनके लिए उत्तरदायी भौतिक, साहित्यिक गुणोंसे युक्त (रचना)। पु० सत्त्व, व्यक्ति किसीके निजी कार्य, पत्रव्यवहार, व्यवस्था आदिमें रज, तमसे युक्त ब्रह्मा, ईश्वरके सगुण रूपकी उपासना | सहायता करनेवाला व्यक्ति; शासनव्यवस्थाके किसी करनेवाला संप्रदाय-विशेष ।
विभागका उच्चाधिकारी। सगुणोपासना-स्त्री० [सं०] साकार ब्रह्मकी उपासना । सचिवता-स्त्री०, सचिवत्व-पु०[सं०] मंत्रित्व, बजारत । सगुन-पु. शकुन । वि०, पु० दे० 'सगुण' ।
सचिवालय-पु० [सं०] (सेक्रेटैरियट) किसी राज्यकी सगुनाना-अ० कि० शकुन विचारना, शकुन बतलाना । सरकारके सचिवों, मंत्रियों तथा विभिन्न विभागोंके प्रधान सगुनिया-पु० शकुनका विचार करनेवाला ।
अधिकारियों आदिके कार्यालयोंका समूह, वह इमारत या सगुनौती-स्त्री० शकुन विचारने, निकालनेकी क्रिया।। स्थान जहाँ ये स्थित हों। सगुरा-वि०जिसने गुरुसे दीक्षा ली हो।
सची-स्त्री० [सं०] दे० 'शची'; अगर । -नंदन,-सुतसगृह-वि० [सं०] सपरिवार, घर-गृहस्थीवाला । पु० जयंत; चैतन्यदेव । सगोत-वि० दे० 'सगोत्र'।
सचु*-पु० सुख, आनंद, प्रसन्नता । सगोती-वि० एक ही गोत्रका । पु० एक ही गोत्रके लोग, सचेत-वि० चेतनाविशिष्ट, समझदार; सावधान, सतर्क । भाईबंद।
सचेतक-पु० [सं०] (हिप) दे० 'चेतक' । सगोत्र-वि० [सं०] एक ही गोत्रका । पु० एक ही गोत्रका सचेतन-वि० [सं०] चेतनायुक्त, समझदार, सशान; सावव्यक्ति तर्पण, पिंडदान आदि साथ करनेवाला व्यक्ति, धान । पु० सज्ञान प्राणी। एक ही कुलका व्यक्ति दूरका संबंधी; वंश, खानदान। सचेती-स्त्री० सतर्कता, सावधानी । सगौती-स्त्री० खानेका गोश्त, कलिया।
सचेल,सचैल-वि० [सं०] वस्त्राच्छादित । अ०वस्त्रों सहित । सगढ़-पु० सामान ढोनेकी गाड़ी या ठेला, जिसे आदमी सचेष्ट-वि० [सं०] चेष्टाशील; चेष्टा करनेवाला । खींचते हैं।
सच्चरित, सच्चरित्र-वि० [सं०] अच्छे चरित्रका, सदासघन-वि० [सं०] धना, गझिन; ठोस मेघाच्छन्न ।
चारी । पु० अच्छा आचरण; सदाचारियोंका वृत्त । सघनता-स्त्री० [सं०] निविड़ता।
सच्चा-वि० सच बोलनेवाला; ईमानदार; यथार्थ; विशुद्ध । सच-पु० सच्ची बात । वि० सत्य, ज्योंकी त्यों कही हुई।
सच्चाई-स्त्री० सञ्चापन, सत्यता; ईमानदारी। (देखी, सुनी बात)। -मुच-अ० वस्तुतः, यथार्थमें,
सच्चापन-पु० सचाई, सत्यता। निस्संदेह।
सञ्चिकन*-वि० दे० 'सचिक्कण' । सचकित-वि० [सं०] आश्चर्य में पड़ा हुआ, विस्मित सच्चिदानंद-पु० [सं०] सत्, चित् और आनंद-स्वरूप, भयसे काँपता हुआ।
परमेश्वर । सचना*-स० क्रि० पूरा करना--..."पितु तर्पणादि क्रिया
सच्छंद-वि० दे० 'स्वच्छंद' । सची'-राम०; सजाना; जमा करना, बटोरना। अ०
सच्छत*-वि० घायल । वि. प्रसन्न होना।
सच्छाय-वि० [सं०] छायादार; सुंदर रंगोंवाला, चमक सचर*-वि० सचल, चलायमान, जंगम ।
दार; एक ही रंगका। सचरना-अ० कि० फैलना; प्रचलित होना, प्रसिद्ध
| सच्छास्त्र-पु० [सं०] उत्तम शास्त्र, अच्छा सिद्धांत-ग्रंथ । होना प्रवेश करना।
सच्छिद्र-वि० [सं०] छेददार सदोष । सचराचर-वि० [सं०] जिसमें स्थावर-जंगम सभी हों। ।
सच्छी-पु०, स्त्री० दे० 'साक्षी' । सच्चल-वि० [सं०] चलनेकी शक्तिसे युक्त, जंगम । पु० सच्छील-पु०[सं०] सदाचार । वि०शीलवान् उदाराशय । जंगम पदार्थ ।
सछिद्रता-स्त्री० (पोरासिटी) ऐसे छिद्रोंसे युक्त होना सचलता-स्त्री० [सं०] गतिशीलता ।
जिनसे होकर पानी एक ओरसे दूसरी ओर चला जाय । सचल लवण-पु० साँचर नमक ।
सज-स्त्री० सजना, सजावट; रूप, आकृति; शोभा एक सचाई-स्त्री० सत्यता; ईमानदारी; वास्तविकता।
वृक्ष । -दार-वि० सुडौल, अच्छी आकृतिका, सुंदर । - सचान-पु० बाज, श्येन ।
धज,-बज-स्त्री० सजावट, बनाव-शृगार; ठाटबाट । सचारना*-स० क्रि० फैलाना, संचारित करना।
सजग-वि० सतर्क, सावधान, होशियार ।
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