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सकुचाई-सगरा
८०४ चित होना, सिकुड़ना; मैंदना, संपुटित होना।
सखरा-वि० खारा निखराका उलया । पु० कच्ची रसोई। सकुचाई-स्त्री० संकोच, शरमिंदगी, या ।
सखरी-स्त्री० कच्ची रसोई (दाल-भात आदि)। सकुचाना*-अ० क्रि० संकोच करना । स० कि० सिको- सखसावन-पु० आरामकुसी; पलंग पालकी। ड़ना; संकुचित, लज्जित करना ।
सखा(खि)-पु० [सं०] साथी, संगी; मित्र; सहचर, सहसकुचीला -वि० संकोची, शीला ।
योगी; नायकका सहचर (ना.)।-भाव-पु० घनिष्ठता। सकुचौहाँ*-वि० संकोचशील ।
सखा, सखावत-स्त्री० [अ०] उदारता, दानशीलता । सकुड़ना -अ० कि० दे० 'सिकुड़ना'।
सखी-स्त्री० [सं०] सहचरी, सहेली; नायिकाकी सहेली सकुन*-पु० दे० 'शकुंत'; शकुन ।
(ना०); एक छंद । -भाव-पु० अपनेको उपास्य देवकी सकुनी*-पु० दुर्योधनका मामा, शकुनि । स्त्री० पक्षी; पत्नी माननेका भाव । -संप्रदाय-पु. वैष्णबोंका एक चील।
संप्रदाय जिसमें भक्त अपनेको उपास्य देवकी स्त्री सकुपना-अ० क्रि० क्रोध करना ।
मानता है। सकुल्य-वि० [सं०] सगोत्र (तीसरीसे आठवीं पीढ़ीतकका); | सखी-वि० [अ०] दाता, दानशील, उदार। पु० एक ही कुलका, पर दूरका संबंधी ।
सखुआ-पु० दे० 'साखू' । सकूनत-स्त्री० दे० 'सुकूनत' ।
सख्खन-पु० दे० 'सुखन'। सकूनती-वि० दे० 'सुकूनती' ।
सख्त-वि० [अ०] कड़ा, कठोर; दृढ़ा कठिन; तीखा, तेज सकृत्-अ० [सं०] एक बार; किसी समय; फौरन; सर्वदा।। (सख्त धूप); भारी (सख्त मुश्किल); सख्ती करनेवाला, सकेत-*.पु. संकेत, इशारा प्रेमी प्रेमिकाका मिलनस्थल कठोरहृदय । -गीर-वि० सामान्य दोपपर भी कड़ी कष्ट, संकट । वि० संकीर्ण, तंग ।।
सजा देनेवाला; जालिम ।-घड़ी-स्त्री० कष्ट, कठिनाईका सकेतना*-अ.क्रि. संपुटित होना, संकुचित होना। काल । -ज़बान-वि० कटुभाषी, बदजबान । -दिलसकेरना*-स० क्रि० इकट्ठा करना, समेटना बंद करना। वि० कठोर हृदय, निर्दय ।-पंजा-वि० लोभी।-मिजाज सकेलना*-सक्रि० इकट्ठा, जमा करना ।
-वि० क्रोधी।-लगाम-वि० मुहँजोर, सरकश (घोड़ा)। सकेला-पु. एक तरहका लोहा । स्त्री० इस लोहेकी बनी | सस्ती-स्त्री० [अ०] कड़ापन; कठोरता; दृढ़ता; कष्ट, तलवार ।
कठिनाई; अर्थकष्ट, तंगी; जुल्म, कठोर व्यवहार । मु. सकैतव-वि० [सं०] छली, कपटी।
सख्तियाँ उठाना, सख्ती उठाना-जुल्म बरदाश्त सकोच* -पु० दे० 'संकोच'।
करना मुसीबत झेलना ।-से-कष्ट, कठिनाईसे (सख्तीसे सकोड़ना-स० क्रि० दे० 'सिकोड़ना।
दिन गुजारना)।-से पेश आना-कड़ाई करना, कठोर, सकोपना*-अ० क्रि० क्रोध करना।
निर्दयताका व्यवहार करना । सकोपित*-वि० क्रुद्ध, नाराज।
सख्य-पु० [सं०] सखापन; मैत्री, दोस्ती, सौहार्द; ईश्वरको सकोरना*-स० क्रि० सिकोड़ना।
सखा मानकर उपासना करनेका भाव (वैष्णव); समानता; सकोरा-पु० कटोरी जैसा मिट्टीका एक बरतन, कसोरा। मित्र । -विसर्जन-पु० मैत्री-भंग। सक्का -पु० [फा०] पनभरा; भिश्ती । -(के)की बाद. सख्यता-स्त्री० मैत्री, दोस्ती (असाधु)। शाही-दो चार दिनकी हुकूमत (निजाम नामके भिश्ती- सगंध-वि० [सं०] गंधयुक्त; खुशबूदार; उसी गंधका; ने हुमायूँ को डूबनेसे बचाकर इनाममें २।। दिनकी बाद- अभिमानी । पु० ज्ञाति, संबंधी। शाही पायी और राज्य में चमड़ेका सिक्का चलाया)। सग*-वि० सगा, अपना । -पन-पु० दे० 'सगापन'। सक्तु-पु० [सं०] भूने हुए अन्नका पिसान, सत्तू (विशेष- सगड़ी-स्त्री० छोटा सग्गड़ । कर जीका)।-कार,-कारक-पु० सत्त बनाने, बेचने- सगण-वि० [सं०] दल या सेनासे युक्त । पु० शिव वाला। -धानी-स्त्री० सत्तु रखनेका पात्र ।
छंदःशास्त्रका एक गण जिसमें दो लघुके बाद एक गुरु सक्थि-स्त्री० [सं०] जंघा; हड्डी; गाड़ीका लट्ठा । मात्रा होती है। सक्र*-पु० दे० 'शक'। -धनु-पु० इंद्रधनुष । सगन*-पु० सगण (पिंगल); शकुन । सक्रारि*-पु० इंद्रका शत्रु, मेघनाद ।
सगनौती-स्त्री० शकुन विचारना । सक्रिय-वि० [सं०] क्रियायुक्त; फुतीला; भ्रमणशील । | सगपहतीसगपती-स्त्री०साग मिलाकर पकायी हुई दाल। -सेवा-स्त्री० (ऐक्टिव सरविस) किसी सैनिक द्वारा सगबग-वि० आई, तर, सराबोरा द्रवित भीत । युद्धक्षेत्रादिमें किया गया काम या सेवा ।
सगबगना*-अ० क्रि० जाग्रत होना, उबुद्ध होना । सक्षण-वि० [सं०] सावकाश, बाफुरसत ।
सगबगाना-अ० क्रि० सकपकाना, घबड़ा जाना; हिलना. सक्षम-वि० [सं०] क्षमता-युक्त, शक्तिशाली, समर्थ । । डुलना; तर होना, सराबोर होना। सखर-पु० [सं०] एक राक्षस; * चोखा; तेज; उग्र खर सगभत्ता -पु. साग मिलाकर पकाया हुआ भात । राक्षससे युक्त-'सखर सुकोमल मंज'-रामा०।
सगर-वि० [सं०] विषयुक्त । पु. एक सूर्यवंशी राजा सखरच, सखरज*-वि० खुलकर अमीरोंकी तरह खर्च जिनके साठ हजार पुत्र थे; सागर; तालाब-'काहेक करनेवाला, शाहखर्च ।
दादुल सगर खोदायेउ...'-गीत । सखरस-पु० मक्खन ।
सगरा-वि० सब, समस्त । पु० तालाब झील ।
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