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संस्थिति-सकुचना
अनि
।
संस्थिति-स्त्री० [सं०] साथ होना; ठहरना; खड़ा, टिका शक्ति, भरसक । रहना; सामीप्य; निवास स्थान; अवस्था, स्थिति । सकता-स्त्री० शक्ति, बल, ताकत, सामर्थ्य । पु० [अ०] संस्फेट, संस्फोट-पु० [सं०] भिड़त, लड़ाई ।
मूर्छा रोग; किसी शब्दके घट-बढ़ जानेसे शेरका वजन संस्मरण-पु० [सं०] स्मरण, याद करनेकी क्रिया; नाम | बिगड़ जाना। लेना, जपना; स्मृतिके आधारपर किसी विषय या व्यक्ति- सकती*-स्त्री० शक्ति, बल, सामर्थ्य एक अस्त्र, शक्ति । के संबंधमें लिखित लेख या ग्रंथ ।
सकना-अ० क्रि० समर्थ होना, योग्य होना संभव होना, संस्मरणीय-वि० [सं०] याद करने योग्य; महत्त्वपूर्ण । । मुमकिन होना। संस्मारक-पु० [सं०] स्मरण करानेवाला; किसी व्यक्तिकी। सकपक-स्त्री. हिचक, घबड़ाहट । स्मृतिमें निर्मित भवन, स्तंभ, संस्था आदि।
सकपकाना-अ० कि. हिचकना, आगा-पीछा करना; संहत-वि० [सं०] जुड़ा हुआ, संयुक्त मिलाकर एक किया चकित होना; लज्जा आदिके कारण घबड़ाहट में पड़ जाना; हुआ ठोस, कड़ा; घना; दृढ़ा एकत्र ।।
हिलना। संहति-स्त्री० [सं०] दृढ़ संबंध, एका, मेल; संधि, संयोगः | सकर-वि० [सं०] हस्तयुक्त सूंडवाला (हाथी); किरणों
घनत्व, ठोसपन; सामंजस्य; समूह, राशि, ढेर।। वाला। + स्त्री० शकर । -पाला-पु० एक तरहकी संहरण-पु० [सं०] बटोरना; एक साथ बाँधना, गूंथना चौकोर मिठाई या नमकीन; इस शकलकी सिलाई एक (केश); पकड़ना; लौटा लेना (मंत्रसे बाण आदि); नाश, काबुली नीबू । ध्वंस करना।
सकरना-अ० क्रि० स्वीकार किया जाना, कबूला जाना । संहरना*-अ०क्रि नष्ट, विनष्ट होना। स०कि नष्ट करना। सकरा-वि० तंग, संकीर्ण; जूठा । पु० जूठन । संहार-पु० [सं०] बटोरना, एकत्र करना; (हाथीका) सूंड़ सकरुण-वि० [सं०] कोमलचित्त, करुणाशील, दयायुक्त । अंदरकी ओर ले जाना; बाँधना (बाल); (मंत्रबलसे) छोड़ा सकर्ण-वि० [सं०] कानोंवाला; सुननेवाला। हुआ बाण लौटाना; नाश; प्रलय; (नाटक या नाटकके सकर्मक-वि० [सं०] प्रभावकारी; कोई काम करनेवाला किसी अंकका) अंत ।-कारी(रिन)-वि० प्रलय करने जो कर्मके साथ हो, (वह क्रिया) जिसका प्रभाव कर्तापर वाला; नाश करनेवाला । -काल-पु० प्रलयकाल । न पड़कर दूसरेपर पड़े (व्या०)। संहारक-वि०, पु० [सं०] नाश करनेवाला । | सकल-वि० [सं०] सब, समस्त, सब अंगोंसे युक्त सारी संहारना*-स० क्रि० नाश करना; वध करना।
कलाओंसे पूर्ण (चंद्रमा)। -परिसंपत्-स्त्री० (ग्रॉस असेसंहारी(रिन्)-वि० [सं०] नाश करनेवाला।
ट्स) वह समस्त परिसंपत् जिसमेंसे ऋणादिकी रकम बाद संहित-वि० [सं०] साथ रखा हुआ, मिलाया हुआ, संयुक्त न की गयी हो। -प्रिय-वि० जो सबको अच्छा लगे । किया हुआ; एकत्र किया हुआ, संकलित ।
पु० चना। संहिता-स्त्री० [सं०] संयोग, मेल; संधि (व्या०); संग्रह, । सकलात-पु० रजाई, दुलाई भेंट, उपहार, मखमल । संकलन; मनु आदि द्वारा रचित धर्म-शास्त्र, वेदोंका पंत्र- सकलाती-वि० अति उत्तम, बढिया; मखमलका । भाग; अधिनियमों, विधियों आदिका क्रमबद्ध संग्रह सकसकाना-अ० कि० बहुत डरना। (कोड)।
सकसना*-अ० कि० भयभीत होना; अँड्स जाना। संहृति-स्त्री० [सं०] संकोच, संक्षेप, सार; नाश; प्रलयः | सकसाना*-अ० कि. भयभीत होना, डर मानना ।
अंत; रोक पकड़ना, ग्रहण, संचय, संग्रह हरण । स० क्रि० अँड़साना। संहृष्ट-वि० [सं०] रोमांचयुक्त (भय, आनंद आदिसे);! सकाए-पु० दे० 'सका। प्रसन्न; खड़ा (रोम); ज्वलित । -मना(नस)-वि० सकाना*-अ० क्रि० शंका करना, डरना; हिचकना। प्रसन्नचित्त ।
सकाम-वि० [सं०] कामनायुक्त इच्छुक; लब्धकाम, तृप्तस-पु० [सं०] विष्णुः सर्प, शिव पक्षी; वायु; चंद्रमा काम कामी; फलाकांक्षासे कार्य करनेवाला प्रेमी। इ० षट्ज स्वरका सूचक अक्षर (संगीत)। उप० यह सकारना-स० क्रि० स्वीकार करना, मंजूर करना, मान शब्दोंके आरंभमें आकर सह (सरोष), समान (सजाति, लेना हुंडीपर हस्ताक्षर कर उसे स्वीकार कर लेना । सगोत्र), वही (सपिंड) आदि अर्थोंका द्योतन करता है। सकारा-पु. हुंडी सकारने और समय बढ़ाने के लिए लिया सह-अ० साथ, से । प्र० करण और अपादानकी विभक्ति। जानेवाला धन * सबेरा। सइना*-स्त्री० सेना, फौज ।
सकारात्मक-वि० सहमति-सूचक, स्वीकारात्मक । सइयो*-स्त्री० सहेली, सखी।
सकारे, सकार*-अ० तड़के, सबेरे; कुछ जल्दी । सई-स्त्री० बढ़ती, वृद्धि, बरकत; * सरस्वती नदी; सखी। सकाल-वि० [सं०] समयोचित । अ० ठीक समयपर सबेरे सईस-पु० साईस।
-'कनक छायामें, जब कि सकाल खोलती कलिका उरके सउँ*-अ० (विभक्ति) सों, से।।
द्वार'-पल्लव । सक-स्त्री० शक्ति, बल, सामर्थ्य । + पु० शक, संदेहः सकाश-पु० [सं०] सामीप्य, निकटता पड़ोस । अ० पास । * साका, धाक; मर्यादा स्थापित करना।
सकिलना*-अ० संकुचित होना; इकट्ठा होना, बटुरना । सकट-पु० शकट, सग्गड़, छकड़ा।
सकुच*-स्त्री० संकोच, लज्जा । सकत*-खी० शक्ति, सामर्थ्य धन, वैभव । अ० यथा- सकुचना*-अ० क्रि० लज्जा करना, लज्जित होना संकु
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