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मकबरा-मगन रखा हुआ, जमानतमें दिया हुआ।
मक्का-पु० मकई, बड़े दानेकी ज्वार; [अ०] अरबका एक मकबरा-पु० [अ०] वह इमारत जिसमें किसीकी कब्र हो, प्रधान नगर जो मुहम्मदका जन्मस्थान और मुसलमानोंका समाधि, मजार।
सर्वप्रधान तीर्थ है। मक्रबजा-वि० [अ०] जिसपर कब्जा किया गया हो, मक्कार-वि० [अ०] मन करनेवाला, छली । अधिकृत (वस्तु, संपत्ति)।
मकारी-स्त्री० [अ०] मक्र, कपट, धोखेबाजी। मकबूल-वि० [अ०] कबूल किया गया, माना हुआ, मक्खन-पु० दूध या दहीकी चिकनाई जो मथनेसे निकप्रिय । (मकबूले).खुदा-वि० खुदाका प्यारा। लती है, कच्चा घी, नवनीत । मकबूलियत-स्त्री० [अ०] (किसीका) प्रिय या प्यारा | मक्खी-स्त्री० सर्वत्र पाया जानेवाला एक परदार कौड़ा, होना; लोकप्रियता।
मक्षिका; मधुमक्खी; बंदूक, तमंचेका वह निशान जिससे मकरंद-पु० [सं०] फूलोंका रस, मधु; फूलोंका केसर । लक्ष्यका निशाना ठीक किया जाता है। -चूस-वि० मकर-पु० [सं०] मगर, घड़ियाल, मछली, बारह राशियों- भारी कंजूस ( दाल आदिमें पड़ी मक्खीतकको चस जानेमेंसे दसवीं; कुबेरकी नौ निधियों में से एक । -कुंडल- वाला)। -मार-वि० मक्खियाँ मारनेवाला, घिनौना । पु० मकराकृत कुंडल । -केतन,-केतु-पु. कामदेव । पु० एक छोटा जंतु । मु०-छोड़ना, हाथी निगलना-क्रांति-स्त्री० निरक्ष रेखासे २३ अंश दक्षिणमें स्थित छोटे दोषसे बचना और बड़ा करना । -पर मक्खी अक्षरेखा । -ध्वज-पु० कामदेव; अहिरावणका द्वारपाल मारना-बेसमझे, पूरी नकल करना । मक्खियाँ जिसकी उत्पत्ति हनूमान्का पसीना एक मछलीके पी मारना-बेकार बैठा रहना, कुछ न करना। लेनेसे बतायी गयी है। आयुर्वेदका एक प्रसिद्ध रस, रममक्र-पु० [अ०] बनावट, धोखा, छल, कपट, फरेब । सिंदूर । -लांछन-पु० कामदेव । -वाहन-पु० वरुण। -चाँदनी-स्त्री० पिछली रातकी चाँदनी जिससे सबेरा -व्यह-पु० मकरके आकारमें की हुई सैन्यरचना। होनेका धोखा होता है धोखा देनेवाली चीज। -संक्रांति-स्त्री० माघ मासकी संक्रांति जिस दिन सूर्य | मक्षिका-स्त्री० [सं०] मक्खी ।-मल-पु. मोम । मु०उत्तरायण होते हैं।
स्थाने मक्षिका-पूरी और बेसोचे-समझे नकल । मकर-पु० दे० 'मक' ।-चाँदनी-स्त्री० दे० 'मक्रचाँदनी'। मक्षिकासन-पु० [सं०] मधुमक्खियोंका छत्ता। मकरतार-पु० बादलेका तार ।
मख-पु० [सं०] यज्ञ । -त्राता (त)-पु० (विश्वामित्रके मकराकृत-वि० [सं०] मकर या मछलीके आकारका । यशकी रक्षा करनेवाले) राम-द्विट (प)-वि० यशद्वेषी। -कुंडल-पु० मछलीके आकारका कुंडल ।
पु० राक्षस । -शाला-स्त्री० यशशाला । -हा (हन्)मकरालय-पु० [सं०] समुद्र।।
पु० इंद्र: शिव । मकराश्व-पु० [सं०] वरुण ।
मनजन-पु० [अ०] खजाना, भंडार, जमा करनेकी जगह । मकरी-स्त्री० [सं०] मादा मगर, मछली, मकड़ी; + जोतकी मखतूल-पु० काला रेशम ।
कीलके ऊपर लगायी जानेवाली एक लकड़ी (ग्रामगी०)। मखतूली-वि० मखतूलका बना हुआ, काले रेशमका। मकसद-पु० [अ०] इरादा, मतलब, उद्देश्य अभीष्ट । मखन*-पु० मक्खन । मकसूद-वि० [अ०] अभीष्ट, उद्दिष्ट । पु० उद्देश्य, मतलब। | मखनिया-पु० मक्खन बनाने, बेचनेवाला । वि० मक्खन मकाई-स्त्री० दे० 'मकई'।
निकाला हुआ (मखनिया दूध)। मकान-पु० [अ०] रहनेका स्थान, घर । -दार-वि० मखमल-स्त्री० [अ०] एक मोटा रेशमी कपड़ा जो ऊपरकी मकानवाला। पु० मकानका मालिक। मु०-हिला| ओर बहुत नरम और रोयेंदार होता है। देना-बहुत शोरगुल मचाना ।
मखमली-वि० [अ०] मखमलका बना; मखमलप्सा । मकाम-पु० [अ०] दे० 'मुकाम' ।
मखाग्नि-स्त्री०, मखानल-पु०[सं०] यशमें संस्कृत अग्नि । मकु*-अ० चाहे; बरिक, शायद ।
मखान-पु० [सं०] यशान्न तालमखाना। मकुट-पु० [सं०] मुकुट ।
मखी*-स्त्री० दे० 'मक्खी'। मकुना-पु० बिना दाँतका या बहुत छोटे दाँतोंवाला (नर) मखौल-पु० मजाक, ठट्ठा। हाथी; मुच्छविहीन पुरुष ।
मखौलिया-वि० मखौल करनेवाला । मकुनी-स्त्री० आटेमें बेसन मिलाकर या भरकर बनायी मग*-पु० रास्ता, मागे; मगध ।-दा*-वि० मार्गदर्शक । हुई बाटी।
मगज-पु० दे० 'मग्ज'। -चट-वि० मगज चाटनेवाला, मकूनी*-स्त्री० दे० 'मकुनी' ।
बकवादी । -चट्टी-स्त्री० मगज चाट जाना, बकवास । मकूला-पु० [अ०] उक्ति, वचन, कौल; कहावत ।
-पञ्ची-स्त्री० माथापच्ची। मकोई*-स्त्री० दे० 'मकोय' ।
मग़ज़ी-स्त्री० [फा०] मिर्जई, रजाई आदिपर लगायी जाने. मकोड़ा-पु० छोटा कीड़ा (कीड़ाके साथ प्रयुक्त) ।
वाली गोट । मकोय-स्त्री० एक क्षुप जिसके फल, पत्ते आदि दवाके काम मगद, मगदल-पु० मूंग या उरदके बेसनका लडडू ।
आते हैं। इसका फल; रसभरीका पौधा या फल । मगदूर*-पु० दे० 'मकदूर'। मकोरना*-स० कि० दे० 'मरोड़ना'।
मगध-पु० [सं०] दक्षिणी बिहार,कीकट देश भाट, मागध । मकर-पु० दे० 'मक'।
मगन-वि० मग्न, डूबा हुआ; अति प्रसन्न, आनंदित ।
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