________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
मंत्रणा - मकफ़ल
किया हुआ; जडवत् । -वादी ( दिन ) - पु० मंत्रका उच्चारण करनेवाला, मंत्रश; जादूगर । - विद् - वि० मंत्र । - विद्या - स्त्री० तंत्र-मंत्रकी विद्या । -शक्तिस्त्री० मंत्रका प्रभाव । -संहिता - स्त्री० वेदोंका मंत्रभाग । - साधन - पु० मंत्रको सिद्ध करनेका यत्न करना । - सिद्धि - स्त्री० मंत्रका सिद्ध होना, मंत्रका प्रभावकर होना । - हीन - वि० बिना मंत्रका; अदीक्षित । मंत्रणा - स्त्री० [सं०] मश्विरा करना; सलाह । -कारपु० ( ऐडवाइज़र) सलाह या मंत्रणा देनेवाला, वह जिससे बहुधा सलाह ली जाती हो । परिषद् - स्त्री० (ऐडवाइजरी कौंसिल) किसी विषय के संबंध में सलाह देनेवाली परिषद् ।
|
मंत्रालय - पु० (मिनिस्ट्री) राज्यके किसी मंत्री विभागका कार्यालय; मंत्री, उसके सचिव तथा चारियों का समूह (मंत्री और उसका विभाग) मंदी - स्त्री० मंद होनेका भाव, तेजीका उलटा, सस्ती । मंत्रित - वि० [सं०] जिसका मंत्र द्वारा संस्कार किया गया मंदोदरी स्त्री० [सं०] रावणकी पत्नी जो मय दानवकी हो, अभिमंत्रित । कन्या और पंचकन्याओं में से एक मानी जाती है । वि० स्त्री० छोटे, तंग पेटवाली ।
तथा उसके अन्य कर्म
मंत्रित्व - पु० [सं०] मंत्रीका पद या कार्य ।
मंत्री (त्रिन्) - पु० [सं०] जिसके साथ एकांत में मश्विरा किया जाय, सचिव; सलाह देनेवाला; राज्यके किसी विभागका वह प्रधान अधिकारी जिसकी सलाहसे उस विभागका कार्य संचालन हो । - परिषद् - स्त्री० ( कैबिनेट कौंसिल ) राज्यके मंत्रियों की सभा जिसमें प्रशासन संबंधी विविध प्रश्नोंपर बातचीत, विचार-विमर्श आदि किया जाता है । - मंडल - पु० ( कैबिनेट ) किसी (लोकतंत्र) राज्य के मंत्रियों का समूह जो शासन के विभिन्न विभागों की देख-भाल करता है ( अमात्यमंडल) । मंत्रेला * - पु० मंत्र जाननेवाला (कबीर) | मंथ - पु० [सं०] मंथन; क्षोभ; मथानी; सूर्य ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
६१२
मंदाकिनी - स्त्री० [सं०] गंगाकी स्वर्ग में बहनेवाली धारा, आकाशगंगा; संक्रांतिका एक भेद; एक वर्णवृत्त । मंदाक्रांता - स्त्री० [सं०] एक वर्णवृत्त । मंदाग्नि-स्त्री० [सं०] पाचनशक्तिका दुर्बल हो जाना, हाजमेका बिगड़ जाना ।
मंदात्मा (त्मन्) - वि० [सं०] मूर्ख, नीच मंदाना * - अ० क्रि० मंद पड़ना । मंदानिल- पु० [सं०] हलकी, सुखद, वायु । मंदार पु० [सं०] नंदनकाननके पाँच वृक्षों में से एक, पारिभद्रः मदार; धतूरा; हाथी; मंदारपुष्प । -माला - स्त्री० मंदारके फूलोंकी माला ।
मंदारक - पु० [सं०] दे० 'मंदार' |
मंदिर - पु० [सं०] घर; देवालय; नगर; शिविर । मंदिल * - पु० मंदिर; घर ।
मँदो वै* - स्त्री० मंदोदरी । मंदोष्ण- वि० [सं०] थोड़ा गरम, कुनकुना ।
मंद्र - पु० [सं०] गंभीर ध्वनि; संगीतके तीन स्वरसप्तकों(मंद्र, मध्य, तार) मेंसे पहला; एक बाजा, मृदंग; एक तरहका हाथी । वि० गंभीर; प्रसन्न; आह्लादकारी, मंदा । मंद्राज - पु० मद्रास ।
मंशा, मंसा - स्त्री० मनशा, इच्छा, इरादा, आशय । मंसूख - वि० दे० 'मनसूख' । मँहगा - वि० दे० 'महँगा' | मँहगी - स्त्री० दे० 'महँगी' ।
म पु० [सं०] शिव; ब्रह्मा विष्णुः चंद्रमा; यम । -गणपु० पिंगलका एक गण जिसमें तीनों वर्ण गुरु होते हैं । महका* - पु० दे० 'मैंका' | ममंत* - वि० दे० 'मैमंत' ।
मई - स्त्री० [अ० 'मे'] ईसवी सन्का पाँचवाँ महीना जो प्रायः वैशाख में पड़ता है ।
मंथन - पु० [सं०] मथना, बिलोना; तत्त्वबोधके लिए किसी विषयको बार-बार पढ़ना, सोचना; मथानी; रगड़से आग पैदा करना । - घट-पु० दही मथनेका मटका । मंथर - वि० [सं०] सुस्त, मंद; जड़मति; स्थूल; नीच; टेढ़ा; बड़ा, चौड़ा; गंभीर । -गति - स्त्री० मंद गति, धीमी चाल । वि० धीमी चालवाला ।
मंथरा - स्त्री० [सं०] कैकेयोकी कुबड़ी दासी ।
मंद - वि० [सं०] सुस्त, धीमा; गंभीर; मृदु; मूर्ख; हलका; थोड़ा, छोटा (मंदोदरी); दुर्बल ( मंदाग्नि ); नीच । - कांति - पु० चंद्रमा । -ग- वि० मंदगामी । पु० शनि। - गति - वि० धीमी चालवाला । - चेता ( तस ) - वि० मंदबुद्धि । - धी, बुद्धि - वि० मोटी अक्लवाला, अल्पबुद्धि । - भागी (गिन् ), - भाग्य - वि० अभागा, वदनसीब । -मति - वि० मोटी या खोटी अक्कुवाला । - समीर - पु० हलकी, सुखद वायु - स्मित- हास्यपु० हलकी हँसी ।
मंदर - पु० [सं०] वह पर्वत जो पौराणिक कथाके अनुसार समुद्र मथने में मथानी बनाया गया था; मंदार; स्वर्ग । मंदला - पु० एक तरहका बाजा । मंदा - वि० मंद, धीमा; ढीला; जिसकी माँग कम हो, नीचे मकना - पु० दे० 'मकुना' । भावपर बिकनेवाला (सौदा); खराब ।
मउनी - स्त्री० दे० 'मौनी' । मउर - पु० दे० 'मौर' । छोराई।- - स्त्री० विवाहसमाप्तिके बाद मौर अलग करनेकी रस्म । मउलसिरी* - स्त्री० दे० 'मौलसिरी' | मउसी - स्त्री० माँकी बहिन । मकई - स्त्री० ज्वार ।
मकड़ा - पु० बड़ी मकड़ी; एक घास ।
मकड़ाना - अ० क्रि० मकड़ीकी तरह चलना, अकड़कर चलना, इतराना ।
मकड़ी - स्त्री० एक कीड़ा जो अपने पेटसे एक तरहका लुआब निकालकर जाला बुनता है और उसमें फँस जानेवाली मक्खियों आदिको खा जाता है।
मकतब - पु० [अ०] लिखने-पढ़नेका स्थान; पाठशाला । मकदूर - पु० [अ०] शक्ति, सामर्थ्य, बस; धन ।
मकफ़ल - वि० [अ०] बीमा किया हुआ (आ०), बंधक
For Private and Personal Use Only