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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मॅजाई-मंत्र मंजाई-स्त्री० माँजनेकी क्रिया; माँजनेकी उजरत । मंडल-पु० [सं०] गोल घेरा, हलका, कुंडली; सूर्य-चंद्रका मंजारी*-स्त्री० बिल्ली। बिंब; सूर्य-चंद्र के इर्द-गिर्द देख पड़नेवाला घेरा, परिवेश मंजिका-स्त्री० [सं०] वेश्या । गोल; समूह, मंडली; समिति; एक प्रकारका सैन्य-व्यूह मंजिमा (मन्)-स्त्री० [सं०] सुंदरता, मनोहरला। चाक; ऋग्वेदका प्रत्येक खंड; ग्रहोंका गतिपथ, कक्षा मंज़िल-स्त्री० [अ०] उतरने या ठहरनेकी जगह, पड़ाव, क्षितिज जिला, प्रदेश, ग्राम-समूह एक तरहका साँप । मुकाम; एक दिनका सफर; मकान; पांथशाला; मकानका | -नृत्य-पु० मंडलाकार घूमते हुए नाचना । दरजा या छत; वह स्थान जहाँ डाकके घोड़े बदले जायँ । | मंडलाकार, मंडलाकृत-वि० [सं०] मंडलके आकारका, -गाह-पु०स्त्री० उतरनेकी जगह । (मंजिले)मकसूद- गोला । स्त्री० असल मुराद । -हस्ती-स्त्री० जिदगी। मु०- मंडलान-पु० [सं०] वह तलवार जिसकी नोक कुछ उठाना-मकान बनाना। -भारी होना-यात्रा पूरी झुकी हो, खंजर । करना कठिन होना। -मारना-यात्रा पूरी करना; मंडलाधिप-पु० [सं०] दे० 'मंडलेश्वर'। मुश्किल हल करना। मंडलाधीश-पु० [सं०] दे० मंडलेश्वर'। मंजिष्ठा-स्त्री० [सं०] मजीठ । -मेह-पु० एक प्रकारका मंडली-स्त्री० छोटा मंडल, जमात, समुदाय, दूब गुड़च । प्रमेह (सुश्रुत)। -राग-पु० मजीठका रंग; मजीठके रंग मंडली(लिन्)-वि० [सं०] मंडल, हलका बनानेवाला । जैसा पक्का, स्थायी अनुराग । पु० साँप; साँपका एक भेद; बिल्ली; सेंधुआर नामका जंतु; मंजीर-पु० [सं०] धुंधरू, नूपुर ताल । सूर्य मंडलाधिपति; बरगद । मॅजीरा-पु० दे० 'मजीरा' । मंडलीक-पु० [सं०] मंडलका राजा करद राजा। मंजु-वि० [सं०] सुंदर, मनोहर । -केशी (शिन्)-पु० | मंडलीकरण-पु० [सं०] मंडल या कुंडली बनाना, कुंडली कृष्ण । वि० सुंदर बालोंवाला। -गति,-गमना-वि० मारना। स्त्री० मनोहर गतिवाली। स्त्री० हंसिनी। -घोषा-स्त्री० मंडलेश-पु० [सं०] देशका शासक, नरेश । एक अप्सरा, कोयल । -भाषिणी-वि० स्त्री० मधुर- मंडलेश्वर-पु० [सं०] एक मंडलका शासक, राजा, चार भाषिणी। -भापी(षिन)-वि० मधुरभाषी। सौ योजन रकबेवाले प्रदेशका राजा । मंजुल-बि० [सं०] सुंदर, मनोहर । मड़वा-पु० मंडप, शामियाना। मंजूर-वि० [अ०] पसंद किया हुआ, स्वीकृत । मंडार, मॅडारा-पु० झावा, टोकरा; गढा (पमा०)। मजूरी-स्त्री० [अ०] स्वीकृति, मंजूर होना । मंडित-वि० [सं०] सजाया हुआ, भूषित ।। मंजूषा-स्त्री० [सं०] पिटारी; वह तश्तरी आदि जिसमें मंडी-स्त्री० (किसी खास चीजकी) थोक बिक्रीका बाजार, रखकर अभिनंदनपत्र भेंट किया जाता है । बड़ा बाजार, बाजार । मु०-लगना-बाजार लगना। मंजूसा-स्त्री० दे० 'मंजूषा' । मंडील-पु० कामदार कपड़ेका मुरेठा, मंदील । मॅझला-वि० दे० 'मझला'। म.दुआ-पु. एक मोटा अनाज । मंझा-पु० दे० 'माँझा'; अटेरनके बीचको लकड़ी; चरखेका मंडूक-पु० [सं०] मेढक; एक ताल; एक नृत्य । मुँडला (चक्र); खटिया । * वि० मझला, बीचका। | मंडूर-पु० [सं०] लोहेका मैल, कीट जो दवाके काम मझियाना-स० क्रि० धंसकर पार करना; नाव खेना। | आता है। मॅझोला-वि० दे० 'मझोला'। मंढा-पु० कमख्वाब बुननेवालोंका एक औजार । मंड-पु० [सं०] माँड़, सारमलाई सुरा; एरंड। -प- मंतव्य-वि० [सं०] मानने योग्य, माननीय । पु० मत । वि० माँड़ पीनेवाला। -हारक-पु० मद्य बनानेवाला, मंत्र-पु० [सं०] गुप्त वार्ता, कानमें कही जानेवाली बात, कलाल। सलाह, मंत्रणा; वह शब्द या शब्द-समूह जिससे किसी मंडन-पु० [सं०] सजाना, शृंगार करना; आभूषण युक्ति- | देवताकी सिद्धि या अलौकिक शक्तिकी प्राप्ति हो; वेदका प्रमाणसे पक्ष-विशेषकी पुष्टि करना। -प्रिय-वि० अलं- संहिताभाग, कार्यसिद्धिका गुर (मूल मंत्र)। -कार-पु० कार-प्रेमी। -मिश्र-पु. सुप्रसिद्ध मीमांसक जो कहा मंत्र रचनेवाला, मंत्रद्रष्टा । -कुशल-वि० मंत्रणामें पटु । जाता है कि शंकराचार्यसे शास्त्रार्थमें पराजित हुए थे। -गृह-पु० मंत्रणागृह । -जल-पु० अभिमंत्रित जल । मंडना*--स० क्रि० सजाना, सँवारना; दे० 'मॉड़ना'। .. -ज्ञ-वि० मंत्रणाकुशल । पु० मंत्री गुप्तचर तंत्र-मंत्र मंडप-पु० [सं०] छाया हुआ, पर चारों ओरसे खुला जाननेवाला। -द-दाता(त)-पु० गुरु । -दीहुआ बैठनेका स्थान, मॅडवा; कुंज (जैसे लतामंडप) । वि० (शिन्)-पु. वेदमंत्रोंका साक्षात्कार करनेवाला, दे० 'मंड' में। मंत्रद्रष्टा ।-देवता-पु० मंत्र-विशेष द्वारा आवाहित मंडपिका-स्त्री० [सं०] छोटा मंडप । देवता ।-इष्टा-पु. मंत्रदशी। -पाठ-पु. वेदमंत्रोंका मंडपी-स्त्री० छोटा मंडप मढ़ी। पाठ । -पूत-वि० मंत्रों द्वारा पवित्र किया हुआ। मंडर*-पु० दे० 'मंडल'। -प्रयोग-पु०,-प्रयुक्ति-स्त्री० मंत्रसे काम लेना। मॅडरना*-अ०क्रि० मंडल बाँधना सब ओरसे घेर लेना। -बल-पु० मंत्रकी शक्ति । -बीज,-वीज-पु० मॅडराना-अ० क्रि० मंडलाकारमें चक्कर देते हुए उड़ना; मंत्रका पहला पद । -भेद-पु. गुप्त वार्ताका प्रकट किसीके आस-पास चक्कर काटना, घूमते रहना। कर दिया जाना। -मुग्ध-वि. मंत्रसे मोहित, वश For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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