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रौनी-लंतरानी
आदिसे निर्मित पक्का रंग ।
रौग़नी - वि० [अ०] तेलका; रौगन फेरा हुआ । रौनिक - वि० गोरोचनसे रँगा हुआ ।
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[सं०] रोली, गोरोचन संबंधी; रोली, रौर* - पु० रोर, कुहराम ।
लिए एक आदरसूचक संबोधन; + कहारिन । रौताई - स्त्री० राव, रावत होना; ठकुराई, सरदारी । रौद्र-वि० [सं०] रुद्र-संबंधी; रुद्रका; भयंकर; क्रोधपूर्ण । पु० काव्यके नौ रसों में से एक जिसका स्थायी भाव क्रोध है; क्रोध; धूप, घाम; यमराज; एक केतु; साठ में से चौवनवाँ संवत्सर । रौद्रता - स्त्री० [सं०] भयंकरता; प्रचंडता, उग्रता । रौद्री - स्त्री० [सं०] रुद्रकी पत्नी, गौरी । रौन* - पु० रमण करनेवाला, पति । रौनक - स्त्री० [अ०] चमक, ताब; खूबी; ताजगी; चहलपहल; बहार । - दार- वि० बहारदार; सजा हुआ । रौनी* - स्त्री० दे० 'रमणी' ।
रौरव - वि० [सं०] डरावना, भयंकर; कपटी, धूर्त । पु० एक भीषण नरक ।
रौजा - पु० [अ०] बाग; मकबरा, समाधि । रौताइन - स्त्री० राव, रावतकी पत्नी, ठकुराइन; स्त्रियों के रौरा - पु० दे० 'रौला' । सर्व० रावरा, आपका रौराना। - स० क्रि० बकना, हल्ला, प्रलाप करना ! रौरे। - सर्व० आदरसूचक संबोधन, आप । रौल* - स्त्री० दे० 'रौलि' । रौला - पु० इल्ला, हुल्लड़; ऊधम, हलचल | रौलि। स्त्री० धौल, तमाचा, झापड़ | रौशन - वि० दे० 'रोशन' । रौशनी - स्त्री० दे० 'रोशनी' ।
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ल- देवनागरी वर्णमालाका अठाईसवाँ व्यंजन, अंतस्थ वर्ण लंक* - स्त्री० कमर; लंका नामक द्वीप, रावणकी वासभूमि । - नाथ, - नायक, - पति-पु० रावणः विभीषण । लंकलाट - पु० [अं० 'लांगक्लाथ' ] एक मजबूत मोटा सूती
कपड़ा ।
लंका - स्त्री० [सं०] भारतके दक्षिणका एक द्वीप, सिंहल; एक झील | - नाथ, पति - पु० रावण; विभीषण | लंकाधिपति, लंकाधिराज - पु० [सं०] रावणः विभीषण। लंकूर* - पु० दे० 'लंगूर' ।
लंकेश, लंकेश्वर - पु० [सं०] रावण; विभीषण ।
वि०
लंग - स्त्री० लाँग, काछ । लँगड़ापन |
[फा०] लँगड़ा | पु०
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रौप्य - वि० [सं०] चाँदीका; चाँदीका बना हुआ । पु० चाँदी, रूपा ।
लंगड़ - वि० लँगड़ा | पु० लंगर | लँगड़ा - वि० जिसका एक पैर टूटा, बेकार हो । ५० एक प्रसिद्ध कलमी आम ।
लँगड़ाना - अ० क्रि० लँगड़ाकर चलना ।
लंगर - पु० [फा०] लोहेका बहुत भारी काँटा जिसे नाव या जहाजको खड़ा करनेके लिए रस्सी या जंजीर से बाँध कर नदी या समुद्र में गिरा देते हैं; मोटा रस्सा या जंजीर; वह स्थान जहाँ गरीबोंको पका खाना बाँटा जाय, पके खानेका सत्र; पहलवानोंका लँगोट; वखिया करनेके पहले कपड़े में भरे जानेवाले टाँके; हरहाई गायके गले में बाँधा जानेवाला खूँटा; घड़ियों आदि में तार आदिके सहारे लटकायी जानेवाली भारी चीज; कमरके नीचेका हिस्सा; पैर में पहननेका चाँदीका तोड़ा; * बागडोर । वि० वजन दार; शरारती, ढीठ; लँगड़ा । - खाना-पु० पके खानेका सत्र । - गाह - पु०, स्त्री० लंगर करने, जहाजोंके ठहरनेका स्थान । मु० - उठाना - रुके हुए जहाजका रवाना होना । - करना - जहाजका ठहरना, पड़ाव करना; शरारत करना । -डालना - जहाजके लंगरको
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रौस - स्त्री० गति, हरकत, चाल; रंग-ढंग; बागकी क्यारियोंके बीच का रास्ता; मकानकी ऊपरवाली मंजिल में (आँगनके ऊपरका) चारों तरफका पतला रास्ता । रौहिणेय - पु० [सं०] रोहिणीपुत्र, बलराम; बुध ग्रह ।
नदी या समुद्र में फेंकना, जहाजको खड़ा करना । - बाँधना - पहलवानी करना; लड़नेको प्रस्तुत होना; ब्रह्मचर्य धारण करना ।
लँगरई, लँगराई * - स्त्री० शरारत, ढिठाई । लँगरानाt - अ० क्रि० दे० 'लँगड़ाना' | लॅगरी* - स्त्री० शरारत ।
लँगरैया * - स्त्री० शरारत, धृष्टता । लंगूर-पु० लांगूली, काले मुँहका बंदर; दुम ( बंदरकी) । लँगोट, लँगोटा-पु० कमरपर बाँधनेका वस्त्रविशेष (इससे उपस्थ और नितंब आवृत रहते हैं) । - ( 2 ) बंद - वि० ब्रह्मचारी; लँगोट बाँधनेवाला । लँगोटिया यार - पु० बालमित्र । लँगोटी - स्त्री० छोटा लँगोट, कोपीन । मु०- पर फाग खेलना-थोड़ा साधन होनेपर विलासकी ओर दौड़ना । - बँधवाना - दरिद्र बना देना । - बाँध लेना-दरिद्र होना; सांसारिक सुखोंका त्याग करना । मे मस्तगरीबीकी हालत में खुश रहनेवाला । लंघक - वि० [सं०] लाँघनेवाला; नियम तोड़नेवाला । लंघन - पु० [सं०] अनाहार, उपवास; डाँकना, लाँघना | लंघनक - पु० [सं०] लाँघने, पार जानेका साधन; पुल | लंघना - *वि० जिसने लंघन किया हो, भूखा । स० क्रि० लाँघना, डाँकना । स्त्री० [सं०] उपेक्षा, अवमानना । लंघनीय- वि० [सं०] लाँघने के योग्य; उल्लंघन करने योग्य ।
लँघाना-स० क्रि० पार उतारना या करना । लंघित- वि० [सं०] लाँधा हुआ; उल्लंघित; उपेक्षित । लंजिका स्त्री० [सं०] वेश्या । लंठ - वि० मूर्ख; असभ्य, उजड्ड । लँडूरा - वि० दुम कटा (पक्षी) । लंतरानी - स्त्री० [अ०] डींग, आत्मप्रशंसा ।
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