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दाता
अँचरा-अंतः -प-पु० वृक्ष (जड़से पान करनेवाला)।
खेलनेकी कौड़ी। अचरा -पु० दे० 'आँचल' ।
अटिया-स्त्री० धाम, पतली लकड़ियों, दातुनों आदिका अंचल-पु० [सं०] वस्त्रका छोर; साड़ी, ओढ़नी आदिका | मुट्टा, गठिया; पूला। वह छोर जो छाती और पेटपर रहता है, आँचल; छोर; अँटियाना-स० कि. उँगलियों के बीच में छिपा लेना; गायब देशका प्रांत-भाग; कोना; तट, किनारा।।
करना; अँटिया बनाना; तागेकी पिंडी बनाना । अँचवना-सक्रि० दे० 'अचवना' ।
अंटी-स्त्री० दो उँगलियोंके बीचकी जगह, घाई; धोतीकी भंछर-पु० एक मुखरोग। + अक्षर मंत्र, टोना । मु०- कमरके ऊपरकी लपेट; गाँठ; टेंट पहलवानीका मारना-जादू-टोना करना।
एक दाव; अटेरन; अट्टी; सूत या रेशमकी लच्छी; बिगाड़; अंज-पु० कंज, कमल।
छोटी बाली। -बाज-वि० दगाबाज, फरेबी। मु०अंजन-पु० [सं०] काजल; सिद्धांजन; सुरमाः स्याही; करना-माल उड़ा लेना; मूत लपेटकर अंटी बनाना । माया (निरंजन); रात्रि। -केश-पु० दीपक । वि० -देना-गरदनी देना। -पर चढ़ना-धोखा खा जाना। जिसके बाल बहुत काले हों। -गिरि-पु. नीलगिरि । -मारना-दूसरेकी चीज धीरेसे उड़ा लेना; कम तौलना । -नामिका-स्त्री० आँखका एक रोग, बिलनी। डाँडी मारना। -शलाका-स्त्री० आँजन या सुरमा लगानेकी सलाई। अॅटौतल-पु० कोल्हू में जुते हुए बैलकी आँखोंपर लगाये -सार-वि० अंजनयुक्त। -हारी-स्त्री० [हिं०] बिलनी | जानेवाले ढक्कन । भुंगी कोड़ा।
अंठी-स्त्री० गुठली; गिलटी; गाँठ; गिरह अँठली। अंजना-स्त्री० [सं०] हनूमान्की माता; बिलनी; व्यंजना अंड-पु० [सं०] अंडा; अंडकोश, फोता; ब्रह्मांडः वीर्य; वृत्ति ।
मृगनाभिः नाफा; शिव 1-कटाह-पु० ब्रह्मांड ।-कोश अंजना*-स० क्रि० दे० 'आँजना'।
-पु० फोता, खुसिया; ब्रह्माण्ड । -ज-वि० अंडेसे अंजनी-स्त्री० [सं०] हनूमानकी माता; चंदन, कुंकुम । उत्पन्न; पु० अंडेसे उत्पन्न होनेवाले प्राणो ( पक्षी,
आदिसे अनुलिप्त स्त्री; बिलनी; माया। -नंदन-पु० साँप, मछली इ०)। -जा-स्त्री० कस्तूरी। -धर-पु० हनूमान् ।
शिव । -वर्धन-पु०, -वृद्धि-ली० फोता बढ़नेकी अंजर-पंजर-पु० शरीरका जोड, ठठरी हडी-पसली। बीमारी। -स-वि० अंडेसे उत्पन्न होनेवाला। अ० अगल-बगल । म०-ढीले हो जाना-जोड-जोड | अंडजेश्वर-पु० [सं०] गरुड़। हिल जाना, सब अंगीका शिथिल हो जाना।
अंडबंड-पु० बे-सिर-पैर की बात । वि० बे-सिर-पैरका: अंजरि*-स्त्री० दे० 'अंजलि'।
ऊंटपटाँग, श्रृंखलाहीन। अंजलि-स्त्री० [सं०] करसंपुट, अंजलिभर वस्तु; अभि- अंडसा-स्त्री० अड़चन, कठिनाई । वादनका संकेत । -कर्म (न)-पु० आदरपूर्वक नम- अंडा-पु० वह गोल पिंड या खोल जिसमेंसे साँप, मछली, स्कार करना । -पुट-पु० दोनों हथेलियोंको मिलानेसे | चिड़िया आदिका बच्चा निकलता है; *देह, पिंड । बननेवाला गढ़ा। -बद्ध-वि० करबद्ध ।
अंडाकार,-कृति-वि० [सं०] अंडेकी आकृतिवाला। अजवाना,-अंजाना-म० क्रि० (प्रे०) अंजन लगवाना। अंडी-स्त्री० रेंड या परंडका पेड़ या बीज; एक रेशमी अंजाम-पु० [फा०] अंत, समाप्ति पूति; फल, नतीजा। कपड़ा। अंजित-वि० [सं०] अंजन-युक्त।
अंडुआ-वि० जो बधिया न किया गया हो। पु० ऐसा अंजीर-पु० [फा०] गूलरकी जातिका एक फल या पशु । -बैल-पु० आँड बैल, साँड़, बड़े अंडकोशवाला उसका पेड़।
या सुस्त आदमी। अंजमन-पु० [फा०] सभा, समिति, मजलिस, महफिल। अंडुआना-स० क्रि० बधिया करना । अँजुरी, अंजुलि,-ली-स्त्री० दे० 'अंजलि'।
अंडैल-वि० (स्त्री०) जिसके पेट में अंडे हों। अंजोर(रा)*-पु० उजाला, प्रकाश ।
अंतः-अ० [सं०] दे० 'अंतर'। -कथा-स्त्री० किसी अंजोरना*-स० क्रि० हरण करना; समेट लेना; (दिया)
प्रसंगमें संकेतित अन्य कथा, घटना या बात । -करणबालना।
पु० भीतरी इंद्रिय; शान, सुख-दुःखके अनुभवका साधन, अंजोरी*-स्त्री० उजाला, चाँदनी । वि० (स्त्री०) उजियाली।
मन मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार इन चार वृत्तियोंका अंझा-पु० अनध्याय, छुट्टी, नागा लोप ।
योग। -कलह-पु. आपसी लड़ाई, गृहयुद्ध ।अँटना-अ० क्रि० समाना ठीक आना,ठीक नापका होना कुटिल-वि० भीतरका कुटिल, छली। -कोण-पु० (कपड़ा,जूता इ०); काफी होना पूरा पड़ना; खप जाना। भीतरका कोण, 'इंटीरियर ऐंगेल'। -क्रिया-स्त्री० अंटसंट-वि०, पु० दे० 'अंडबंड' ।
भीतरी व्यापार; मनको शुद्ध करनेवाला कर्म । -क्षिप्तभंटा-पु० बड़ी गोली; बड़ी कौड़ी; सूत या रेशमका लच्छा; वि० (इन्जेक्टेड) जो सूई द्वारा भीतर प्रविष्ट कराया गया बिलियर्डका खेल। -घर-पु.बिलियर्ड खेलनेका कमरा। हो। -क्षेप,-क्षेपण-पु० (इन्जेक्शन) सूई द्वारा भीतर भंटाचित-वि० पूरी तरह चित; स्तब्ध; नशेमें चर, प्रवेश करानेका कार्य । -पट-पु० दूल्हे और दुलहिनके बेसुध; बर्बाद, बेकार (ला०)।
बीच खड़ा किया जानेवाला कपड़ेका परदा; अतरौटा। गबंधू-पु० सब कुछ हार जानेपरदाँवपर रखी जानेवाली -पटी-स्त्री०वह चित्रपट जिसपर पर्वत,नदी आदिका दृश्य
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