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दुष्काल-दूध दुष्काल-पु० [सं०] बुरा समय, ऐसा समय जिसमें लोगों- या देवताको पुकारना; शपथ, कसम दुहनेका काम; को तरह-तरहके कष्ट हों; प्रलय; दुर्भिक्ष शिव ।
दुहनेकी उजरत । दुष्कीर्ति-स्त्री० [सं०] अपयश, बदनामी ।
दुहाग-पु० दुर्भाग्य; वैधव्य । दुष्कुल-पु० [सं०] नीच कुल, तुच्छ धराना । वि० नीच | दहागिन*-वि०स्त्री० दुर्भाग्यवती, अभागिन, विधवा(स्त्री)। कुलमें उत्पन्न, नीच कुलका ।
दुहागिला-वि० अभागा, भाग्यहीन; शून्य, खाली। दुष्कुलीन-वि० [सं०] नीच कुलमें उत्पन्न, नीच कुलका । दुहागी*-वि० भाग्यहीन, अभागा। दुष्कृत-पु० [सं०] नीच कर्मः पाप ।
दुहाना-स० क्रि० दुहनेमें दूसरेको प्रवृत्त करना । दुष्कृति-स्त्री० [सं०] पाप । वि० नीचकर्म करनेवाला;पापी। दुहावनी-स्त्री० दूध दुहनेकी उजरत । दुष्ट-वि० [सं०] क्षतिग्रस्त; निकम्मा; दोषयुक्त, दूषित, दुहिता(7)-स्त्री० [सं०] पुत्री, कन्या। -()पतिसदोष; तर्कशास्त्र में व्यभिचार आदि दोषोंसे युक्त (हेतु); पु० जामाता। पित्त आदिके प्रकोपसे विकारग्रस्त (नेत्र आदि); खल, दुहिन*-पु० दे० 'द्रुहिण' । पिशुन, खोटा, नीच, बदमाश। -चेता (तस),- दुहेल*-पु० केश, संकट । धी,-बुद्धि-वि० खोटे हृदयका, दुष्ट स्वभावका ।-व्रण- दुहेला-पु० विकट खेल; कठिन कार्य कुशकर कर्म । वि० पु० वह घाव जो जल्दी अच्छा न हो; नासूर ।
दुःखमें पड़ा हुआ, दुःखी; कठिन, कष्टसाध्य । दुष्टा-स्त्री० [सं०] बुरी, असती स्त्री; वेश्या ।
दुहोतरा-पु० बेटीका बेटा । वि० दो और, दो अधिक । दुष्टाचार-पु० [सं०] दे० 'दुराचार' ।
दूँद-पु० दे० 'द्वद्व'। दुष्टाचारी (रिन्)-वि० [सं०] दे० 'दुराचारी'। दूँदना-अ० क्रि० द्वंद्व मचाना, झगड़ा करना । दुष्टामा (त्मन्), दुष्टाशय-वि० [सं०] दे० 'दुरात्मा'। दूँदि*-स्त्री० दे० 'दद्व' । दुष्पच-वि० [सं०] जो शीघ्र न पचे जो देर में पके। इजा-स्त्री० दे० 'दूज' । दुष्पार-वि० [सं०] जिसे पार करना कठिन हो; दुष्कर । । दृक-वि० दो-एक, कुछ। दुष्प्रकृति-स्त्री० [सं०] बुरा स्वभाव, खोटी आदत । वि० दुकान-स्त्री० दे० 'दुकान'। -दार-पु० दे० 'दुकानबुरे स्वभावका, नीच प्रकृतिका ।
दार'। -दारी-स्त्री० दे० 'दुकानदारी' । दुष्प्रवृत्ति-स्त्री० [सं०] बुरी प्रवृत्ति ।
दूखन-पु० दे० 'दूषण'। दुष्प्राप, दुष्प्राप्य-वि० [सं०] जिसका मिलना कठिन हो, दूखना*-अ० क्रि० दे० 'दुखना' । स० क्रि० दोषारोपण जो कठिनतासे प्राप्त हो सके, दुर्लभ ।
करना, दोष लगाना। दुष्प्रेक्ष्य-वि० [सं०] जिसे देखना कठिन हो, जिसकी ओर दूज-स्त्री. प्रत्येक पक्षकी दूसरी तिथि, द्वितीया । मु०-का
ताका न जा सके जिसकी ओर देखनेका साहस न हो। चाँद होना-बहुत कम दिखाई पड़ना। दुष्यंत-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध पुरुवंशी राजा जिनके पुत्र दूजा*-वि० दूसरा। भरतके नामपर इस देशका नाम भारत पड़ा।
दत-पु० [सं०] एक जगहसे दूसरी जगह चिट्ठी-पत्री, दुसराना*-स० क्रि० दुहराना ।
संदेश आदि पहुँचानेके लिए नियुक्त व्यक्ति, हरकारा; दुसरिहा*-वि० साथ रहनेवाला, सहाय; बराबरीका दावा । किसी राजा या राष्ट्रका वह प्रतिनिधि जो राजनीतिक करनेवाला, प्रतिद्वंद्वी।
कार्यसे अन्य राष्ट्र में भेजा गया हो या स्थायी रूपसे रहता दुसह*-वि० दे० 'दुःसह।
हो, राजदूत; प्रेमी-प्रेमिकाका संदेश एक दूसरेके पास दुसही*-वि० कठिनाईसे सहनेवाला; विद्वषी, डाह पहुँचानेवाला व्यक्ति । -कर्म(न)-पु० दूतका काम । करनेवाला।
दूतर*-वि० दुस्तर, कठिन ।। दुसासन-पु० दे० 'दुःशासन'।
दूतावास-पु० [सं०] राजदूतके रहनेका स्थान और उसका दुस्तर-वि० [सं०] जिसे पार करना कठिन हो, जो सर- | कार्यालय । लतासे पार न किया जा सके।
दृतिका, दती-स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो प्रेमी और दस्त्यज-वि० [सं०] जिसे छोड़ा न जा सके जिसे छोड़ना प्रेमिकाको मिलाये या एककासंदेश दूसरेके पास पहुँचाये। कठिन हो।
दूदुह*-पु० दे० 'दुंदुभ'। दुस्सह-वि० [सं०] दे० 'दुःसह'।
दध-पु० स्त्री. गाय, भैस आदिके स्तनसे निकलनेवाला दुहना-स० क्रि० स्तनको उँगलियोंसे दबाकर दूध निका- सफेद रंगका प्रसिद्ध तरल पदार्थ जिसपर उनके बच्चे लना; निचोड़ना, सार भाग निकालना; (किसीका) धन अधिक दिनोंतक रहते हैं; अन्नके कच्चे दानों तथा कुछ अपहरण करना; (किसीको) चूसना । मु. दुह लेना- पौधोंके अंगोंमेंसे निकलनेवाला दूधके रंगका रस । सर्वस्व अपहरण कर लेना; किसीसे अधिकसे अधिक लाभ -चढ़ी-वि० स्त्री० जिसका दूध बढ़ गया हो, जिसके उठाना।
स्तनमें और अधिक दूध भर आया हो । -पिलाई-स्त्री० दुहनी-स्त्री० दूध दुहनेका पात्र, दोहनी।
विवाह-संबंधी एक रस्म जिसमें बरातके रवाना होनेके दुहरा-वि० दे० 'दोहरा'।
पहले वरके पालकी आदिपर चढ़ते समय उसकी माता दुहाई-स्त्री० घोषणा, मुनादी; रक्षाके लिए की गयी उसे दूध पिलानेकीसी मुद्रा करती है। इस कार्यके उपपुकार; आपत्तिके समय रक्षाके लिए किसी समर्थ व्यक्ति लक्ष्य में माताको दिया जानेवाला नेग। -पूत-पु० जन
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