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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६७ दूधा-भाती-दुलह धन । -फेनी-स्त्री० दूधके साथ खाया जानेवाला एक दूरदर्शी होनेका भाव, दूरदेशी। -दर्शी(शिन्)-वि० पकवान । -बहन-स्त्री० एक ही स्त्रीका दूध पीनेके दूरकी बात सोचनेवाला, दूरदेश, परिणामदशी । पु०गीध; नाते मानी जानेवाली बहन । -भाई-पु. ऐसे दो पंडित ।-दृष्टि-स्त्री० दूरदर्शिता, दूरदेशी।-प्रभावी,बालकों या व्यक्तियोंमेंसे एक जो सहोदर न हों पर एक । व्यापी-वि० (फार-रीचिंग) जिसका प्रभाव बहुत दूरतक ही स्त्रीका दूध पीकर पले हों। -महा-वि० जो अभी पड़े। -प्रहारी तोप,-मार-तोप-स्त्री० [हिं०] (लांगरेंज माताके दूधपर रहता हो; जिसके दूधके दाँत अभी न टूटे गन) दूरतक गोला फेंकनेवाली, लंबा निशाना मारनेवाली हों, अल्पवयस्क ।-मुख-विदे० 'दूधमुँहा' । मु०-उत- तोप। -भाष-पु०,-वाणी-स्त्री० (टेलीफोन) वह यंत्र रना-स्तनों में दूध आना। -का दूध और पानीका जिसमें, प्रायः बिजलीकी सहायतासे, दूरके शब्द या दृरकी पानी-ठीक-ठीक, सच्चा सञ्चा न्याय करना । -का | वाणी ज्योंकी त्यों सुनाई दे, टेलीफोन। -भाष, वाणीबच्चा-केवल दूधके आधारपर रहनेवाला बच्चा, अति मिलानकेंद्र-पु० (टेलीफोन एक्सचेंज) किसी नगर या शिशु । -की मक्खी-अत्यंत तुच्छ या घृणित वस्तु । जिलेका प्रधान दूरवाणी-कार्यालय जहाँ स्थानीय व्यक्तियोंसे -की मक्खीकी तरह निकालना या निकाल फेंकना- या बाहरके लोगोंसे दूरवाणी-यंत्रों द्वारा बातचीत करानेके अत्यंत तुच्छ वस्तुकी तरह एकदम अलग कर देना ।-के लिए दोनों ओरके यंत्रोंमें संबंध स्थापित करनेकी व्यवस्था दाँत-शैशवावस्था में निकले दाँत । -चढ़ना-स्तनोंमें की जाती है। -मुद्र-पु०(टेलीप्रिंटर) वह यंत्र ाजसमें तार कम दूध उतरना । -चढ़ाना-दुहनेके समय गाय द्वारा प्राप्त संदेश स्वयं टाइप हो जाता है। वर्ती(र्तिन)आदिका अपने स्तनों में कुछ दूध चुरा रखना । -छुड़ाना वि० दूरीपर रहनेवाला, जो दूर हो। -विक्षेपक-पु० -बच्चेको केवल दूधपर न रहने देना। -पड़ना-कच्चे (ट्रांसमिटर) एक स्थानपर उत्पन्न की गयी ध्वनि, गति दानोंमें रस भर आना । -पीता बञ्चा-एक दम आदिको विद्युत्तरंगों, प्रकाश-लहरी आदिकी सहायतासे नन्हा बच्चा । दूधी नहाना, पूतो फलना-धन-जनसे दूर-दूरतक फलानवाला यत्र ।-विक्षेपण-पु०(ट्रांसमिशन) खूब संपन्न होना। एक स्थानपर उत्पन्न ध्वनि आदिको दूर-दूरतक फैलाने, दृधा-भाती -स्त्री० एक वैवाहिक प्रथा जिसमें वर-कन्या पहुँचानेकी क्रिया। -विक्षेपण केंद्र-पु० (ट्रांसमिटिंग एक दूसरेको अपने हाथों दूध-भात खिलाते है । स्टेशन) वह स्थान जहाँसे दूरविक्षेपण-यंत्र द्वारा कोई दूधिया-स्त्री० एक तरहका सफेद पत्थर; खरिया मिट्टी; ध्वनि (भाषण, नाटक, संगीत आदि) दूर-दूरतक फैलाने, एक सफेद घास । वि० दूध-संबंधी; दूध मिला हुआ दूधके पहुँचानेकी व्यवस्था हो।-विक्षेपण-यंत्र-पु०(ट्रांसमिटिंग रंगका, सफेद, कच्चा होनेके कारण जिसमें अभी दूध हो, एपैरेटस) दे० 'दूरविक्षेपक' ।-वीक्षण-पु०दे० 'दूरबीन' । बहुत कच्चा । -वीक्षण-यंत्र-पु०(टेलिस्कोप) वह यंत्र जिससे देखनेपर दून-स्त्री० दूनेका भाव । वि० दुगुना, दोहरा; [सं०] क्लांत; दूरकी वस्तुएँ निकटस्थ जैसी तथा आकारमें अपेक्षाकृत पीडित क्षुब्ध; उपतप्त । मु०-की लेना या हाँकना- बड़ी एवं स्पष्टतर दिखाई पड़ें। -स्थ,-स्थित-वि० जो डाँग मारना । -की सूझना-शक्तिसे बाहरकी बातका निकट न हो, असमीपस्थ । मु०-करना-हटाना; अलग मनमें आना। करना; नष्ट करना। -की कहना-बड़े मार्केकी बात दूनर*-वि० जो झुककर दोहरा हो गया हो। कहना, बड़ी सूझकी बात कहना। -की बात-असंभव दूना-वि० दुगुना, दोगुना । बात; मार्केकी या सूक्ष्म बात । -की सोचना-दूरदनी*-वि० दोनों। देशीकी बात सोचना। -भागना-बहुत बचना, अपनेको दूब-स्त्री० एक प्रसिद्ध घास, दूर्वा । किसीसे बहुत अलग रखना। -होना-मिट जाना, बना दूबरा*-वि० दुर्बल, कृश दीनहीन; अशक्त । न रहना; हट जाना। दूबा -स्त्री० दूब। दर-अ०,वि० [फा०] दे० 'दूर' (सं०)। -बीन-पु० एक दूभर-वि० भारी, बोझिल; कठिन; असह्या दुष्कर । यंत्र जिसके द्वारा दूरकी वस्तुएँ बड़ी और समीपस्थ दमना*-अ० क्रि० हिलना, डोलना। दिखाई देती हैं। दूरंदेश-वि० [फा०] दे० 'दूरदर्शी । दूरबा-स्त्री० दूब। दरंदेशी-स्त्री० [फा०] दे० 'दूरदर्शिता' । दूरागत-वि० [सं०] दूरसे आया हुआ। दूर-अ० [सं०] देश-काल आदिकी दृष्टिसे अधिक अंतरपरः | दूरान्वय-पु० [सं०] कर्ता-क्रिया, विशेष्य-विशेषण आदिविशिष्ट स्थान-समय आदिसे बहुत हटकर, फासलेपर। का एक दूसरेसे दूर होना; रचनाका एक दोष (सा०)। वि० जो दूर हो, असमीपस्थ । -गामी (मिन्)-वि० दारि*-अ०, वि० दूर । दूरतक जानेवाला । -दर्शक-पु० पंडित, प्राज्ञ । वि० दूरी-स्त्री० अंतर, फासला । दूरतक देखनेवाला; जिसके द्वारा दूरतककी चीज देखी | दूरीकरण-पु० [सं०] दूर करना। जाय; दूरतक सोचनेवाला, बुद्धिमान् । -दर्शक यंत्र- दूर्वा-स्त्री० [सं०] दूब । -क्षेत्र-पु० (लॉन) किसी गृह, न' । -दर्शन-पु० गीध; पंडित; दूरबीन। प्रासाद आदिके सामने, पीछे या बगलका वह खुला मैदान -दर्शन यंत्र-पु० (टेलीविजन) वह यंत्र जिससे व्यवधान जो दूर्वासे आच्छादित हो। रहते हुए भी दूरकी वस्तुएँ, घटनाएँ आदि स्पष्ट देखी जा| दलन-पु० दे० 'दोलन' । सकें ।-दर्शिता-स्त्री०दूरकी बात सोचनेका गुण या शक्तिः | दूलह-पु० दे० 'दूल्हा' । For Private and Personal Use Only
SR No.020367
Book TitleGyan Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmandal Limited
PublisherGyanmandal Limited
Publication Year1957
Total Pages1016
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size28 MB
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