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कूई-कृतांत कूई-स्त्री० दे० 'कुई।
कूतना-सक्रि० अंदाजा, तखमीना करना। कूक-स्त्री० कोयलकी बोली; घड़ी, बाजे आदिमें कुंजी देना। कूद-स्त्री० कूदनेको क्रिया, कुदान । -फाँद-स्त्री० कूकना-अ०क्रि० कोयलका बोलना, 'कुहू कुहू' करना। उछल-कूद। सक्रि० घड़ी या बाजे में ताली भरना ।
कूदना-अ०क्रि० उछलना; ऊँचाईसे उछलकर नीचे आना; कूकर-पु० कुत्ता ।-कोर-पु० कुत्तेके आगे डाली जाने- इतराना । स० क्रि० फाँदना, लाँधना । वाली जूठन, टुकड़ा तुच्छ वस्तु ।
कूप-पु० [सं०] कुआँ; गड्ढा; छेद; चमड़ेका बना तेलका कूका-पु० सिखोंका एक संप्रदाय; लंबी गहरी आवाज। कुप्पा ।-कच्छप,-मंडूक-पु० कुएँका कछुआ,"मेढका कूच-पु० [फा०] एकसे दूसरी जगह जाना, रवानगी; वह जो अपने स्थानसे कहीं बाहर न गया हो और जिसके मृत्युः परलोकयात्रा ।-ब-कृच-अ० मंजिलपर मंजिल ज्ञानकी सीमा बहुत संकुचित हो। -चक्र-यंत्र-पु० ते करते हुए। मु० (किसीके) देवता-कर जाना- पानी निकालनेकी चरखी । भौंचक्का रद्द जाना ।-का डंका बजना-(फौजका)रवाना कूब-पु० दे० 'कूबड़' । होना । -बोलना-रवानगीका हुक्म देना रवाना होना। कूबड़-पु० पीठकी हड्डीका इस तरह निकल आना कि कूचा-*पु० क्रौंच पक्षी-'बायें कुररी दहिने कूचा'-५०; वह टेढ़ी हो जाय । [फा०] गली, सँकरा रास्ता। -गर्दी-स्त्री० बेमतलब कूबरी-स्त्री० [सं०] दे० 'कुबरी' । इधर-उधर घूमते रहना, आवारागदी। -बंद-पु० बंद कूबा-पु० दे० 'कूबड़' । गली, वह गली जिसमें एक ही और रास्ता हो। कूर-वि० निर्दयः कर, मनहूस; निकम्मा; नालायका कूचिका-स्त्री० [सं०] कूँची; कुंजी।
कायर; मूर्ख; * मिथ्या। कूची-स्त्री० दे० 'कूची'।
कूरम*-पु० दे० 'कूर्म' । कूज, कूजन--पु० [सं०] पक्षीका कलरव ।
कूरा-पु० ढेर, राशि; भाग । वि० कुटिल; खराब । कूजना-अ० क्रि० मधुर ध्वनि करना ।
कूरी-स्त्री० छोटी राशि; * टीला, धुस । कूजा-पु.ल्हड़ाकुल्हड़में जमायी हुई मिसरी बेलेका फूल। कूर्चिका-स्त्री० [सं०] कूँची तसवीर बनानेकी कूँची; कुंजी। कजित-वि० [सं०] ध्वनित, गूंजा हुआ। पु० कूजन। कूर्म-पु० [सं०] कछुआ; विष्णुके दस अवतारों से दूसरा; कूट-पु० [सं०] छल, कपट, म्यान आदिमें छिपाया हुआ वह प्राण या वायु जिससे पलकें खुलती-मुंदती हैं । हथियार: जटिल प्रश्न; पहाड़की चोटी; सींग; राशि, ढेर | कूल-पु० [सं०] नदी आदिका किनारा, तट; सामीप्य; असत्य व्यंग्य; निहाई कीना; नगर-द्वार; गृह । वि० दहा तालाब; सेनाका पृष्ठभाग । * अ० पास । अचल; बनावटी; मिथ्यावादी । -कर्म (न्)-पु० छल, कूलवती-स्त्री० [सं०] नदी । धोखेबाजी। -नीति-स्त्रो० छल-कपटकी नीति, चाल- कूलिनी-स्त्री० [सं०] नदी। बाजी। -पणकारक-वि० जाली सिक्का आदि बनाने | कूल्हा-पु० कमरके दोनों ओरकी हड्डी । वाला । :-प्रश्न-पु० पहेली । -मुद्रा-स्त्री० जाली मुहर .कूवत-स्त्री० [अ०] शक्ति, बल । या आदेश (को०)। -युद्ध-पु० छल, धोखेकी लड़ाई, कूष्मांड-पु० [सं०] कुम्हड़ा; एक मंत्रकार ऋषि । अधर्मयुद्ध । -योजना-स्त्री० कुचक्र, पड्यंत्र । -लेख,- कूह-स्त्री० हाथीकी चिग्वाड़, चीख । लेख्य-पु० जाली दस्तावेज। -साक्षी (क्षिन)-पु० | कृच्छ्र-वि० [सं०] कष्टमय; कष्टसाध्य । पु० कष्ट; दुःखः झूठी गवाही देनेवाला । -साक्ष्य-पु० झूठी शहादत । कठिनाई; सांतपन प्रायश्चित्त, व्रतः पाप; मूत्रकृच्छ रोग। -स्थ-वि० चोटीपर, सबसे ऊपर अवस्थित; जो सदा एक कृत-वि० [सं०] किया हुआ; बनाया हुआ; पकाया हुआ। रूपमें स्थित रहे, अपरिणामी । पु० परमात्मा। -स्वर्ण- पु० काम; उपकार; कर्मफल । -काम-वि० जिसकी पु० खोटा, नकली सोना।
कामना पूरी हो गयी हो। -कारज*-वि० दे० 'कृतकूटना-स० क्रि० मूसल-मुंगरीसे किसी चीजको लगातार कार्य'। -कार्य-वि० जो अपना कार्य या अभीष्ट सिद्ध पीटना; सिल-चक्की आदिमें टाँकीसे दाँता निकालना, कर चुका हो, सफलमनोरथ । -कृत्य-वि० सफलमनोमारना-पीटना; बधिया करना । मु० कूट-कूटकर भरा रथ, कृतार्थ । -धन-वि० नेकी, उपकार न माननेवाला। होना-(किसी दोष या गुणकी) अतिशयता, अत्य- -[कृतघ्नता-स्त्री० एहसान न मानना ।-नताई*धिकता होना।
स्त्री० कृतघ्नता। -घ्नी*-वि० दे० 'कृतघ्न'। -ज्ञकूटायुध-पु० [सं०] छड़ी आदिके भीतर छिपाया हुआ वि० नेकी, उपकार माननेवाला, एहसानमंद । -दंड*हथियार।
पु० यमराज। -निश्चय-वि० जिसने किसी बातका कूटार्थ-पु० [सं०] जल्दी समझमें न आनेवाला, गूढ अर्थ । पक्का निश्चय कर लिया हो । -युग-पु० चारों युगोंमेंसे कूटू-पु० एक पौधेका बीज जो व्रतादिमें खाया जाता है।
पहला, सतयुग । -विद्य-वि० विद्वान् । -वीर्य-वि० कूड़ा-पु० धूल, राख आदि, बुहारन; रद्दी, निकम्मी वीर्यशाली, बली । पु० सहस्रार्जुनका पिता। -संकल्पचीजें। -करकट-पु० रद्दी, निकम्मी चीजें; कतवार । वि०जिमने कोई संकल्प, निश्चय किया हो। -ख़ाना-पु० कूड़ा फेंकनेकी जगह ।
कृतक-वि० [सं०] बनाया हुआ, बनावटी; अनित्य कूढ़-वि० मूर्ख, निर्बुद्धि । -मरज-वि० मंदबुद्धि । (न्या०)।-पुत्र-पु० गोद लिया हुआ पुत्र, दत्तक । कृत-स्त्री० संख्या, माप, तौल आदिका अंदाजा, तखमीना। कृतांत-वि० [सं०] अंत या निश्चय करनेवाला । पु०
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