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कृताकृत-आ
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यम; देवता; पूर्वजन्म में किये हुए शुभाशुभ कर्म जिनका कृमि - पु० [सं०] कीड़ा; मकड़ा; चींटी; लाख । -कोश, - फल इस जन्म में प्राप्त हो; शनि । कोष -पु० रेशम के कीड़ेका कोया, ककूना । धन- वि० कीड़ोंका नाश करनेवाला । -ज- वि० कीड़ोंसे उत्पन्न | पु० रेशम; अगर । - जा - स्त्री० लाख | -फल- पु० गूलर । - रोग - पु० आँतों में कीड़े या केंचुए पैदा हो जाना। - शोधित दुग्ध - (पैस्टराइज्ड मिल्क) वह दूध जिसके कीटाणु विशेष प्रक्रिया द्वारा नष्ट कर दिये गये हों । कृश - वि० [सं०] दुबला, कमजोर; थोड़ा; अकिंचन । कृशता - स्त्री० [सं०] दुबलापन | कृशता ई * - स्त्री० दे० 'कृशता' | कृशरान्न - पु० [सं०] खिचड़ी | कृशांगी - स्त्री० [सं०] दुबली-पतली स्त्री; प्रियंगु लता । कृशानु - पु० [सं०] अग्नि; चित्रक | कृशित - वि० [सं०] क्षीणकाय, दुबला-पतला । कृशोदरी - वि० स्त्री० [सं०] पतली कमर वाली (स्त्री) । कृषक - पु० [सं०] हल जोतनेवाला, किसान; बैल; फाल । कृषाण - पु० [सं०] किसान, खेतिहर |
कृताकृत - वि० [सं०] किया और न किया हुआ; अंशतः किया हुआ ।
कृतात्यय- पु० [सं०] भोग द्वारा कर्मनाश (सांख्य०) । कृतापराध - वि० [सं०] अपराधी ।
कृतार्थ - वि० [सं०] कृतकार्य, सफलमनोरथ, संतुष्ट । कृति - स्त्री० [सं०] क्रिया; काम; रचना; जादू ; दो समान अंकोंका घात ( ग० ); २० की संख्या; वध । -स्वाम्यपु० ( कॉपीराइट) किसी लेख, पुस्तक, कविता, कहानी आदिको पुनः प्रकाशित करने, बेचने आदिका अधिकार । कृती ( तिनू ) - वि० [सं०] कृतकार्य; भाग्यवान्; जिसने अच्छे काम किये हों, पुण्यवान् ; कुशल; आज्ञाकारी । कृत्-वि० [सं०] करने, बनानेवाला; कर्ता (केवल कर्तृवाचक संज्ञा बनाने में व्यवहृत - जैसे 'ग्रंथकृत्', 'पुण्यकृत् ') । कृत्ति - स्त्री० [सं०] खाल; मृगचर्म; भोजपत्र; कृत्तिका नक्षत्र । - वास, - वासा (सस ) - पु० शिव । कृत्तिका - स्त्री० [सं०] २७ नक्षत्रों में से तीसरा । कृत्य - वि० [सं०] करने योग्य, कर्तव्य । पु० कर्तव्य कर्म; शास्त्रविहित कर्म ( पूजन, हवन आदि); काम । कृत्या - स्त्री० [सं०] काम; अभिचार; जादूगरनी; एक शक्ति या देवी जो अभिचार द्वारा किसीको मारनेके लिए अनुछान विशेषसे उत्पन्न की जाती है; कर्कशा स्त्री । कृत्याकृत्य - पु० [सं०] कर्तव्याकर्तव्य | कृत्रिम - वि० [सं०] बनाया हुआ, बनावटी; (माँ- बापकी स्वीकृति बिना ) गोद लिया हुआ । पु० पुत्रवत् पालित अनाथ बालक । - गर्भरोपण - पु० (आर्टिफिशल इन सेमिनेशन) पिचकारी आदिकी सहायतासे शुक्राणु भीतर प्रविष्ट कराकर गर्भस्थिति कराना, कृत्रिम उपायों द्वारा गर्भाधान कराना |
कृपालु - वि० [सं०] कृपायुक्त, दयालु ।
कृपिन* - वि०, पु० दे० 'कृपण' ।
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कृपिनाई * - स्त्री० कृपणता ।
कृपी - स्त्री० [सं०] कृपाचार्यकी बहन और द्रोणाचार्यकी पत्नी । - सुत - पु० अश्वत्थामा ।
कृषि - स्त्री० [सं०] जोतना बोना, खेती; जमीन जोतना । - कर्म (नू ) - पु० खेतीका काम । - कार - पु० कृषक | - मंत्र - पु० ( ट्रॅक्टर) पहियोंवाला एक तरहका इंजन जिसका प्रयोग कृषि संबंधी अनेक कार्यों में किया जाता है । - जीवी (विनू) वि० खेती से निर्वाह करनेवाला (किसान) । कृषिक - पु० [सं०] कृषक | वि० कृषि सम्बन्धी । कृषी - स्त्री० [सं०] खेत; * खेती, कृपि । कृषीवल - पु० [सं०] किसान, खेतिहर । कृष्ट-वि० [सं०] खींचा हुआ; जोता हुआ ।
कृदंत - पु० [सं०] धातु कृत् प्रत्यय लगानेसे बना शब्द । कृपण- वि० [सं०] सूम, कंजूस; नीच; क्षुद्र । पु० कंजूस आदमी । - बुद्धि-वि० छोटे दिलका, क्षुद्राशय । कृपणता - स्त्री० [सं०] कंजूसी; दैन्य । कृपन* - वि०, पु० दे० 'कृपण' । कृपनाई * - स्त्री० दे० 'कृपणता' । कृपया - अ० [सं०] कृपापूर्वक, कृपा करके ।
कृपा - स्त्री० [सं०] प्रत्युपकारकी अपेक्षा न रखते हुए परदुःख निवारणकी इच्छा, अनुग्रह, दया । -दृष्टि-स्त्री० कृपाभाव । - पात्र - वि० जो कृपाके योग्य हो, अनुग्रहभाजन | - सिंधु - वि० कृपाके समुद्र (भगवान्) । कृपाण - पु० [सं०] तलवार; छुरी; कटारी; एक दंडक वृत्त । कृपाणिका - स्त्री० [सं०] छोटी तलवार; कटारी ।
कृपाणी - स्त्री० [सं०] छोटी तलवार; कटार; कतरनी; छुरी । कृष्णाभिसारिका - स्त्री० [सं०] अँधेरी रात में अभिसार कृपाल * - वि० दे० 'कृपालु' ।
करनेवाली नायिका ।
कृष्ण-वि० [सं०] काला, श्याम; नीला; कुत्सित या पापकर्म करनेवाला, दुष्ट । पु० काला या गहरा नीला रंग; यदुवंशी वसुदेव और देवकीके पुत्र जो विष्णुके आठवें अवतार माने जाते हैं; परब्रह्मा काला हिरन कौआ; कोकिल; अशुभ या पापकर्म; अँधेरा पाख; कलियुग; वेदव्यास, अर्जुन; काला अगर; काली मिर्च, लोहा, सुरमा; करौदा; एक मंत्रकार ऋषि । - कर्म (नू ) - ५० काली करतूत, पापकर्म । - गिरि- पु० नीलगिरि । -चंद्रपु० वासुदेव । - जीरक- पु० स्याह जीरा । द्वैपायन० महाभारत और पुराणोंके रचयिता वेदव्यास । -धनपु० जुए आदिसे कमाया हुआ धन, पापकी कमाई । - पक्ष- पु० अँधेरा पाख; अर्जुन -फल- ५० करौदा । - सार - पु० कृष्ण मृग; थूहड़; शीशम; खैरका पेड़ । कृष्णा - स्त्री० [सं०] द्रौपदी; दक्षिण भारतकी एक नदी; काली दाख; काली पत्तियोंवाली तुलसी; पिप्पली; काला जीरा; अग्निकी ७ जिह्वाओं में से एक । कृष्णाजिन - पु० [सं०] काले मृगका चर्म ।
कृष्णाष्टमी - स्त्री० [सं०] भाद्र कृष्णा अष्टमी । कृष्ण - वि० [सं०] खेती करने योग्य (भूमि) (कल्टिवेबिल) । केंचुआ (वा) - पु० एक बरसाती कीड़ा जिसकी देह बिना हड्डी और लगभग एक बित्ता लंबी होती है; आँतों में पैदा हो जाने और मलके साथ बाहर आनेवाला कीड़ा ।
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