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कुशलाई
थना
मंगल, खैरियत, सलामती; भलाई; चातुर्य । -क्षेम-पु० आनंद-मंगल; सुख-स्वास्थ्य - प्रश्न- पु० कुशल-मंगल, खैरियत पूछना । - मंगल- पु० कुशल क्षेम, खैरियत । कुशलाई, कुशलात * - स्त्री० दे० 'कुसलाई' | कुशा - स्त्री० [सं०] रस्सी; लगाम; कुशः काठका तख्ता । कुशाग्र - वि० [सं०] कुशकी नोक जैसा तीक्ष्ण, तेज । - बुद्धि-वि० पैनी, तीक्ष्ण बुद्धिवाला ।
कुशादगी - स्त्री० [फा०] कुशादा होना; फैलाव, विस्तृति । कुशादा - वि० [फा०] फैला हुआ; लंबा-चौड़ा; खुला हुआ । कुशासन - पु० [सं०] कुशाका बना हुआ आसन दे० 'कु' के साथ ।
कुशिक - पु० [सं०] एक राजा जो विश्वामित्रके दादा, गाधिके पिता थे; फाल; तेलकी तलछट | कुशीनगर - पु० [सं०] बुद्धका निर्वाणस्थल, कसया । कुशीलव- पु० [सं०] भाट, चारण; नट; गायक; वाल्मीकि । कुशेश* - पु० दे० 'कुशेशय' । कुशेशय - पु० [सं०] कमल; कुई; सारस । कुशोदक- पु० [सं०] कुश सहित जल । कुश्तमकुश्ता - पु० गुत्थमगुत्था, कुश्ती ।
कुश्ता - पु० [फा०] धातु या औषधद्रव्यका भस्म; लाश । कुश्ती - स्त्री० [फा०] दो आदमियोंका एक दूसरेको पछानेके लिए गुथकर लड़ना, मलयुद्ध । - बाज़- वि० कुश्ती लड़नेवाला । मु० - खाना - कुश्ती में हार जाना । -मारना - कुश्ती जीतना, विपक्षीको पछाड़ देना । कुष्ठ-पु० [सं०] कोढ़; कूट; कुड़ा; एक विष । कुष्ठालय-पु० [सं०] (लेपर ऐसाइलम ) कोढ़ियोंकी देखरेख और सहायताकी दृष्टिसे बनाया गया निवास स्थान । कुष्ठी (ष्ठिन् ) - वि० [सं०] कुष्ठ रोग से पीड़ित, कोढ़ी । कुष्मांड, कुष्मांडक - पु० [सं०] कुम्हड़ा | कुसल * - वि०, स्त्री० दे० 'कुशल' । कुसलई * - स्त्री० कुशलता । कुसलाई ** - स्त्री० कुशलता; कुशल-क्षेम । कुसलात * - स्त्री० कुशल- समाचार | कुसली * - स्त्री० आमकी गुठली; गोझा । वि० दे० ' कुशली' । कुसवारी - पु० रेशमका जंगली कीड़ा; रेशमका कोया । कुसी - स्त्री० हलकी फाल । कुसीद - पु० [सं०] सूदपर रुपये देना, महाजनी; सूदपर लिया हुआ कर्ज; सूदखोर सूद । - जीवी (विन्) - पु० महाजनी करनेवाला, सूदखोर ।
कुसुंभ - पु० [सं०] कुसुमका फूल; केसर; सोना । कुसुंभा- पु० कुसुमका रंग; एक मादक द्रव्य । कुसुंभी - वि० कुसुमके रंगका ।
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कुसुम-पु० [सं०] फूल; स्त्रीका रज; आँखोंका एक रोग; एक पौधा जिसके फूल लाल, गुलाबी, पीले आदि रंगके होते हैं; अग्निका एक रूप । -चाप - धन्वा (न्वन्) पु० कामदेव । - पंचक - पु० कामदेव के बाणरूप पाँच फूल । - पुर- पु०पाटलिपुत्र, पटना । - बाण, -शर, सायकपु० कामदेव | - रेणु - पु० पराग - शयन- पु०, - शय्या - स्त्री० फूलोंकी सेज । - स्तबक - पु० फूलों का गुच्छा, गुलदस्ता ।
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कुसुमांजलि - स्त्री० [सं०] फूलोंसे भरी अंजलि । कुसुमाकर - पु० [सं०] बाग; वसंत | कुसुमागम - पु० [सं०] वसंत । कुसुमाधिप, कुसुमाधिराज - पु० [सं०] चंपाका पेड़ । कुसुमायुध - पु० [सं०] कामदेव | कुसुमासव - पु० [सं०] शहद; फूलोंसे बनी शराब । कुसुमित- वि० [सं०] फूला हुआ, पुष्पित । . कुसूर - पु० [अ०] जुर्म, अपराधः भूल-चूक; कोताही, दोष । - मंद, -वार- वि० अपराधी; दोषी । कुसेस, कुसेसय * - पु० दे० 'कुशेशय' । कुस्टी * - पु० कोढ़ी |
कुहँ कुहँ - पु० दे० 'कुमकुम' |
कुह चा* - पु० कलाई ।
कुहक - स्त्री०मोर या कोयलका बोल । पु० [सं०] इंद्रजाल; धोखेबाजी; ठग, वंचक |
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कुहकना - अ० क्रि० मोर, कोयल आदिका मीठी आवाज में बोलना, कृजना |
कुहकनी - स्त्री० कोयल ।
कुहकुह * - पु० कुंकुम; केसर ।
कुहना * - स० क्रि० कूटना, मारना 'कासी कामधेनु कलि कुहत कसाई हैं' - कविता० ।
कुहनी - स्त्री० बाहु और भुजाका जोड़ |
कुहर - पु० [सं०] छेद; कान या गलेका छेद; * कुहरा । कुहरा - पु० हवामें मिले हुए जलकण जो ठंडसे जमकर नीचे गिरते हैं ।
कुहराम - पु० कई आदमियोंका एक साथ रोना-पीटना, बावेला; कोलाहल |
कुहाड़ा ( रा ) - पु० कुल्हाड़ा ।
कुहाना * - अ० क्रि रूठना, नाराज होना ।
कुहासा * - पु० दे० 'कुहरा' |
कुही - स्त्री० बहरी । पु० एक तरहका घोड़ा ।
कुहु कुहू - स्त्री० [सं०] अमावास्या; कोयलकी कूक । - कंठ, मुख, रव - पु० कोयल । कुहुक-स्त्री० चिड़ियोंकी मधुर बोली, कूजन । - बान - पु० एक बाण जिसे चलाते समय आवाज निकलती है । कूँख+ - स्त्री० कोख ; पेट; काँखनेका शब्द । कूँच - स्त्री० लोहारोंकी बड़ी सँडसी; पैरकी मोटी नस । कूँचा - पु० बढ़नी; करछा ।
कूँची - स्त्री० छोटी बढ़नी; ब्रश; तूलिका; मिसरी जमानेकी कुल्हिया ; * ताली ।
कूज - पु० क्रौंच पक्षी ।
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कूजना * - अ० क्रि० दे० 'कृजना' ।
कुँड - स्त्री० लोहेकी टोपी; पानी निकाल नेका डोल जैसा एक बरतन; जोतनेसे बनी हुई गहरी लकीर; एक गहरा पात्र जो तबलेका बायाँ बनाने के काम आता है । कूँड़ा-पु० पानी रखनेका चौड़ा बरतन, कुंडा; गमला, कठौता; रोशनी करनेकी शीशेकी हाँड़ी । कूड़ी - स्त्री० पत्थरको कटोरी, पथरी; छोटी नाँद । कूँथना - अ० क्रि० पीड़ासे 'उह' की आवाज निकालना; दबी आवाज से कराहना; कबूतरोंका गुडरगू करना ।