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कुलक-कुशल और मालिनमें से कोई। -पति-पु० कुलका मुखिया | कुलाँट-स्त्री० दे० 'कुलाँच';+ कलाबाजी। वह ब्रह्मर्षि जो १० हजार मुनियों या विद्यार्थियोंका कुलाचल, कुलाद्वि-पु० [सं०] दे० 'कुलपर्वत' । भरण-पोषण करता हुआ उन्हें पढ़ायः (वाइस-चांसलर) कुलाचार-पु० [सं०] कुलकी रीति-नीति; कुलधर्म | विद्यापीठ या विश्वविद्यालयका प्रधान अधिकारी, जिसका कुलाधि*-स्त्री० पाप । पद अधिपति (चांसलर )के बाद ही माना जाता है। कुलाबा-पु० किवाड़को चौखटसे जकड़नेका काँटा; मछली -परंपरा-स्त्री० वंश परंपर।। -पर्वत-पु० भारतवर्ष के | फंसानेका काँटा; मोरी। इन ७ प्रधान पर्वतों में से कोई-महेंद्र, मलय, सह्य, शक्ति, कुलाल-पु० [सं०] कुम्हार, बनमुर्गा; उल्लू । ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र। -पूज्य-पु० कुल-परंपरासे कुलाह-पु० [सं०] काले घुटनोंवाला भूरे रंगका घोड़ा पृजा-सम्मानका अधिकारी । -बोरना-वि. कुलका [फा०] ऊँची नोककी टोपी जिसे ईरान-अफगानिस्तानके नाम डुबानेवाला, नालायक । -वधू-स्त्री० भले घरकी लोग पगड़ीके नीचे पहनते हैं; राजमुकुट, ताज; टोपी। स्त्री। -वृद्ध-पु० घरका बड़ा-बूढ़ा, बुजुर्ग । -श्रेष्ट- कुलाहल*-पु० दे० 'कोलाहल'। वि० कुल में योग्यतम । पु० कायस्थोंकी एक उपजाति । कुलिंग-पु० [सं०] चिड़िया गौरा एक तरहका चूहा । --सचिव-पु० ( रजिस्ट्रार ) दे० 'पीठस्थविर'। -स्त्री- कलिक-वि० [सं०] कुलीन । पु० शिल्पि-श्रेणीका प्रधान, स्त्री० दे० 'कुलवधू'।
कुलका प्रधान । कुलक-पु० [सं०] शिल्पियोंकी श्रेणीका मुखिया; बाँबी; कुलिश-पु० [सं०] इंद्रका वज्र; बिजली; हीरा; कुठार । परवलकी लता; कुचिला; पाँच पोंका समूह; सदृश एवं -धर-पाणि-पु० इंद्र। सम्बद्ध वस्तुओंका समूह (सेट) । वि० अच्छे कुलका। कली-पु० [तु.] गुलाम; बोझ ढोनेवाला, मजदूर । कुलकना-अ० क्रि० प्रसन्न होना, किलकना ।
-कबारी-पु० निम्न श्रेणीके लोग। कुलकुलाना-अ० क्रि० कुलकुलकी आवाज निकलना।
कुलीन-वि० [सं०] ऊंचे कुलमें जनमा हुआ; शुद्ध; यभिचारी, लंपट मि०] अनौरस पत्र-दत्तक, निर्मल । -तंत्र-पु० (आलिगकी) उच्च कुलके व्यक्तियों गोलक आदि।
द्वारा शासन चलानेकी.पद्धति । कुलटा-स्त्री० [सं०] व्यभिचारिणी, अनेक पुरुषोंसे प्रेम कुलुफ-पु० ताला, कुपल । करनेवाली स्त्री।
कुलू, कुल्त-पु०[सं] पश्चिमोत्तर भारतका एक जन-पद। कुलत्थ-पु., कुलस्थिका-स्त्री० [सं०] कुलथी।
कुलेल-सी० दे० 'कलोल' । कुलथी-स्त्री० उरदकी जातिका एक मोटा अन्न ।
कलेलना*-अ० क्रि० कलोल करना । कुलना-अ० कि० दर्द करना, टीसना ।
कुल्माष-पु० [सं०] कुलथी; चना आदि द्विदल । कुलफ*-पु० दे० 'कुफ्ल' ।
कुल्या-स्त्री० [सं०] नहर नाली; छोटी नदी; कुलीन स्त्री। कुलात-स्त्री० [अ०] मनोव्यथा, रंज; विकलता। कुल्ला-पु० गरारा, कुल्ली; काकुल; घोड़ेका एक रंग या कुलफा-पु० एक पौधा जिसका साग खाया जाता है उस रंगका धोड़ा। डोलके आकारका आला जिसमें मलाई, संतरे आदिकी कुल्ली-स्त्री० मुँह साफ करने के लिए मुँहमें पानी भरकर बरफ जमाते हैं।
फेंकना; पानीका एक घूट । कुलफ़ी-स्त्री० वह नली जैसा साँचा जिसमें दूध, मलाई | कुल्हड़-पु० पुरवा, मिट्टीका छोटा जलपात्र ।
आदि भरकर बरफसे जमाते है। उक्त साँचे में भरकर कुल्हाड़ा-पु० लकड़ी चीरने, काटनेका एक औजार। जमायी हुई चीज; पीतल या ताँबेकी नली जो नैचे और | कुल्हाड़ी-स्त्री० छोटा कुल्हाड़ा। निगालीको जोड़ती है।
कुल्हिया-स्त्री० छोटा पुरवा; घरिया । मु०-में गुड़ कुलबुलाना-अ०क्रि० कीड़ों, मछलियों आदिका एक साथ । फोड़ना-छिपाकर काम करना। हिलना-डोलना; हाथ-पाँव हिलाना; सोतेमें हिलना; कुवलय-पु०[सं०] कुई नीली कुई नील कमल; भूमंडल । (हाथ-पाँवमें) खुजली-सी होना; बेचैनी प्रकट करना। कुवलयापीड़-पु० [सं०] एक हस्ति-रूपधारी असुर भो कुलबुलाहट-स्त्री० कुलबुलानेका भाव ।
कृष्णके हाथों मारा गया। कुलवंत-वि० कुलीन ।
कुवलयिनी-स्त्री० [सं०] नीली कुई का पौधा नीली कुई के कुलवंती-वि० स्त्री० कुलीन और सती (स्त्री)।
फूलोंका समूह। कुलवान(वत्)-वि० [सं०] कुलीन । स्त्री० 'कुलवती'।] | कुवाँ-पु० दे० 'कु आँ' । कुलह-स्त्री० टोपी शिकारी चिड़ियों की आँखें ढक रखने-कश-पु० [सं०] कड़ी और नुकीली पत्तियोंवाली एक घास वाली टोपी, अँधियारी ('कुलाह'का लघु रूप)।
जो यश, पूजन आदि धर्मकृत्योंकी आवश्यक सामग्री है, कुलहा-पु० दे० 'कुलह'।
दर्भ रामके ज्येष्ठ पुत्र; कुशद्वीप; जल; हरिसको जुए में कुलही*-स्त्री० बच्चोंको टोपी, कनटोप।
जोड़नेवाली रस्सी,नाधा; फाल । विन्दुष्ट, विक्षिप्त । कुलांगना-स्त्री० [सं०] कुलवधू ।
-ध्वज-पु० राजा जनकके छोटे भाई । -मुद्रिकाकुलांगार-पु० [सं०] कुलका नाश करनेवाला; कुल-कलंक । । स्त्री० पवित्री, पैती। कुलाँच-स्त्री० छलाँग, चौकड़ी (भरना, मारना)। कुशल-वि० [सं०] चतुर, होशियार; कार्यविशेषमें निपुण कलाँचना-अ० कि० चौकड़ी भरना; दौड़-धूप करना। (नीतिकुशल, कर्मकुशल); उचित प्रसन्न । स्त्री० क्षेम,
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