________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३३३
तुहिनांशु-तृप्ति चंद्रिका; कपूर । -कर,-किरण,-गु,-द्युति,-रश्मि- तूरान-पु० [फा०] तातार देश । · पु० चंद्रमा कपूर ।-गिरि,-शैल-पु० हिमालय पर्वत । | तूरानी-वि० [फा०] तूरानका; तूरान-संबंधी । पु० तूरानतुहिनांशु-पु० [सं०] चंद्रमा; कपूर ।
का निवासी। तुहिनाचल, तुहिनादि-पु० [सं०] हिमालय पर्वत । तूर्ण-वि० [सं०] तेज । अ० तेजीसे, शीघ्र । तूंबड़ा-पु० तूंबा।
तूर्य-पु० [सं०] तुरही; मुरज, मृदंग । तूंबा-पु० कटुतुंबी; कड़वे कद्दूको खोखला कर बनाया तूल-पु० लाल रंगका कपड़ा; गाढ़ा लाल रंग; [सं०] हुआ पात्र ।
आकाश; रुई; तूतका पेड़ [अ०] लंबाई, विस्तार, ढेर । तूंबी-स्त्री०छोटा तूंबा रक्त या वायु खींचनेका एक औजार । * वि० समान, सदृश । मु०-पकड़ना-किसी बातका तू-सर्व० एक सर्वनाम जो उस व्यक्तिके लिए आता है बहुत अधिक बढ़ जाना या उग्र रूप धारण करना । जिसे संबोधित करके कुछ कहा जाता है; 'तुम'का एक- तूलता*-स्त्री० समता, सादृश्य । वचन रूप(इसका प्रयोग छोटों या नीचोंके लिए होता है)। तूलना*-अ० क्रि० समान होना, समता करना । सक्रि० स्त्री० कुत्तोंको बुलानेका शब्द । -तू, मैं-मैं-स्त्री० धुरीमें तेल देना या इस कार्यके लिए पहियेको लकड़ीके वाकलह, बोल-ठोल, गाली-गलौज । मु०-तू, मैं-मैं| सहारे टिकाना। करना-कहा-सुनी करना, गाली-गलौज करना । तूलमतूल*-अ० आमने-सामने, समक्ष ।। तूख-पु० खरका, सींक ।
तूला-स्त्री० [सं०] कपास, दीपककी बत्ती। तूटना-अ० क्रि० दे० 'टूटना' ।
तूलिका-स्त्री० [सं०] चित्रकारोंकी रंग भरनेकी कूची3B तूठना*-अ० क्रि० दे० 'तुष्टना' ।
लेखनी; रुई-भरा गद्दा, तोशक । तूण-पु० [सं०] दे० 'तूणीर' ।
तूष्णीक-वि० [सं०] मौन रहनेवाला। तूणी -स्त्री० [सं०] तरकश । -धर,-धार-पु० कमनैत । तूष्णीम्-अ० [सं०] चुप चाप, बिना बोले ।(तूष्णी)युद्धतणीर-पु० [सं०] बाण रखनेका चोंगा, तरकश, निषंग। पु० वह युद्ध जिसमें शत्रुपक्षक प्रमुख व्यक्ति फोड़ लिये तूतिया-पु० नीला थोथा ।
जायँ (को०)। तृती-स्त्री० एक छोटी चिड़िया जिसकी बोली बहुत मीठी | तूस-पु० तुष, भूसी; भूसा एक प्रकारका उम्दा ऊन, होती है । मु०(नक्कारखानेमें)-की आवाज-शोरगुल पश्मीना; गहरे लाल रंगका कपड़ा। होते समयकी धीमी आवाज जो सुनाई नहीं पड़ती; तूसना-स० क्रि० संतुष्ट करना, प्रसन्न करना । अ०कि० बड़ौके सामने छोटोकी बात (जिसकी कदर नहीं होती)। प्रसन्न या संतुष्ट होना। (किसीकी)-बोलना-(किसीकी) धाक जमना, खूब | तृखा*-स्त्रा० द० तृषा' चलती होना।
तृजग-वि०, पु० दे० 'तिर्यक् । तूदा-पु० [फा०] ढेर, पुश्ता, टीला; हदबंदीका निशान तृण-पु० [सं०] तिनका घास । -कुटी,-स्त्री०,-कुटीर,
चाँदमारीका अभ्यास करनेका मिट्टीका टीला।। -कुटीरक-पु० घास-फूसकी बनी कुटिया। -धान्यतून-पु० एक पेड़, तुन; लाल वस्त्र-विशेष; *तूण, तूणीर । पु० तिन्नी नामक धान, नीवारसावाँ । मु०-गहना या तूनीर*-पु० तूणीर ।
पकड़ना-शरणमें जाना; दैन्य प्रकट करना। -(किसी तूफ़ान-पु० [अ०] जोरकी बाढ़, सैलाब; आधी, अंधड़ वस्तुपर)-टूटना-किसी वस्तुका इतना सुंदर होना कि जिसमें हवा-पानी आदिका भीषण उरपात हो; भारी। । देखनेवाले उसपर अपनेको न्योछावर कर दें। (किसीसे) आपत्ति, कहर हंगामा उपद्रव, दंगा-फसाद ।
-तोड़ना-संबंधविच्छेद करना, नाता तोड़ना । मु०-उठाना या खड़ा करना-बखेड़ा मचाना।
-तोडना-बलैया लेना; अपनेको न्योछावर करना। तूफ़ानी-वि० [अ०] प्रचंड; फसादी; ऊधमी, उपद्रवी।। तृणाग्नि-स्त्री०, तृणानल-पु० [सं०] तिनकेको आग । तूमड़ी-स्त्री० दे० 'तुमड़ी'।
तृणावर्त-पु० [सं०] वात्याचक्र, बवंडर, एक दैत्य जो तूमना-स० क्रि० उँगलियोंसे नोच-नोचकर रुईके रेशोंको। ___ बवंडरका रूप धारण कर कृष्णको मारने गया था। अलग करना; ऐब निकालना भद्दी गालियाँ देना; पीटनाः | तृतीय-वि० [सं०] तीसरा। नाकमें दम करना; चुनना ।
तृतीयांश-पु० [सं०] तीसरा भाग। तूमरी-स्त्री० दे० 'तुमड़ी' ।
तृतीया-वि० स्त्री० [सं०] तीसरी । स्त्री० पक्षकी तीसरी तूमा-पु. नवा। -पर.टी,-फेरी-स्त्री० इसकी चीज तिथि, तीज, करण कारककी विभक्ति । उसको देना; फेर-बदल ।
ततीयाश्रम-पु० [सं०] तीसरा आश्रम, वानप्रस्थ । तूमार-पु० [अ०] छोटा बातको बेकार बहुत बढ़ा देना।। तृन*-पु० दे० 'तृण'। तूर-स्त्री० अरहर । पु० [सं०] हरकारा; एक तरहका | तृपति*-स्त्री० दे० 'तृप्ति' । बाजा; * तुरही; ताना लपेटनेकी जुलाहोंकी एक लकड़ी। तृपित*-वि० दे० 'तृप्त' । तूरज-पु० दे० 'तृर्य' ।।
तृपिता-स्त्री० 'तृप्ति' । तूरण, तूरन*-अ० दे० 'तूर्ण' ।।
तृप्त-वि० [सं०] अघाया हुआ, संतुष्ट । तूरना-स० क्रि० दे० 'तोड़ना' । पु० तुरही ।
तृप्ताना*-अ० क्रि० तृप्त होना । तूरा-स्त्री० [सं०] वेग । * पु० तुरही।
तृप्ति-स्त्री० [सं०] तृप्त होनेका भाव, भोजन आदिकी प्राप्तिमे
For Private and Personal Use Only