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चेहलकदमी - चोर
इतना मारना कि चेहरेकी हुलिया बदल जाय। -सफेद हो जाना - रोग या भयके कारण चेहरेपर सफेदी आ जाना, उसकी चमक, सुखका गायब हो जाना । - - (२) पर हवा इयाँ उड़ना-भय, घबराहट से चेहरेका रंग उड़ जाना । चहलकदमी - स्त्री० [फा०] धीरे-धीरे थोड़ासा टहलना; मुसलमानोंकी अंत्येष्टिको एक रस्म ।
चेहलुम - वि० [फा०] चालीसवाँ । पु० मुसलमानों में मृत्युके चालीसवें दिनका फातिहा और भोज; मुहर्रमके चाली सवें दिन होनेवाला करबला के शहीदोंका फातिहा । चै* - पु० दे० 'चय' ।
चैत- पु० चैत्र मास, फाल्गुनके बादका महीना । चैतन्य - पु० [सं०] चेतना, ज्ञान, आत्मा; चित्स्वरूप परमात्मा; प्रकृति; गौरांग महाप्रभु ।
चैती - वि० चैतमें होनेवाला ( चैती गुलाब) । स्त्री० चैतमें पकनेवाली फसल, रबी; एक तरहका चलता गाना । चैत, चैत्तिक- वि० [सं०] चित्त-संबंधी, मानसिक । चैत्य - वि० [सं०] चिता-संबंधी, । पु० घर; देवालय; समाधि मंदिर, यज्ञशाला; गाँवकी सीमापरका वृक्षसमूह; बुद्धमूर्ति बौद्ध भिक्षु, बौद्ध विहार; पीपल; बेलका पेड़ । तरु, वृक्ष - पु० पीपल । - विहार - पु० बौद्ध या जैन मठ -स्थान- पु० वह स्थान जहाँ बुद्धदेवकी मूर्ति हो; पवित्र
स्थान ।
चैत्र- पु० [सं०] वह चांद्र मास जिसकी पूर्णिमा चित्रा नक्षत्रमें पड़ती है, चैत; देवालय, चैत्य; बौद्ध भिक्षु । -रथ, - रथ्य - पु० चित्ररथ गंधर्वका बनाया हुआ कुबेरका उद्यान । चैन - पु० सुख, आराम; कल, शांति । मु०- की वंशी
बजाना - बड़े आनंदसे दिन बिताना। -से कटना, - से गुजरना - आराम से जिंदगी बसर होना । चैयाँ* - पु० बाँह |
चैल - पु० [सं०] कपड़ा, वस्त्र पहनावा ।
चैला - पु० जलाने के लिए चिरी हुई लकड़ी, फट्ठा । चौंक * - स्त्री० चुंबनका चिह्न |
चाँगा - पु० बाँसकी खोखली नली जिसका एक सिरा बंद और दूसरा खुला हो; कागज आदिकी बनी हुई वैसी नली । चाँघना * - स० क्रि० चुगना । चोंच - स्त्री० चिड़ियोंके मुँहका अगला, नोकदार भाग, टोंट; मुँह ( व्यं० ) । मु० दो-दो चाँचे होना- कहासुनी होना । चाँचला - पु० दे० 'चोचला' ।
चाँटना * - स० क्रि० खोंटना; चौंथना, नोचना । चौड़ा - पु० सिंचाई के लिए खोदा गया छोटा कच्चा कुआँ । चौथ - पु० गाय-बैल आदिका एक बार में किया गया गोवर । चौथना - स० क्रि० खोंटना; नोचना; चीथना । चोआ - पु० कई गंधद्रव्योंको मिलाकर बनाया जानेवाला एक सुगंधित द्रव्य; किसी चीजकी कमी पूरी करनेके लिए उसके साथ रखी जाने वाली चीज; बाटकी कमी पूरी करनेके लिए लड़ेपर रखा जानेवाला कंकड़ आदि; दे० 'चोटा' । चोई - स्त्री० भिगोकर मलने से निकलनेवाला दालका छिलका। चोकर - पु० गेहूँ, जौ आदिका छिलका जो आटेको छानने से छलनी में रह जाता है ।
चोख * - स्त्री० तेजी, फुरती । वि० दे० 'चोखा' |
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चोखना । - स०क्रि० थनसे मुँह लगाकर दूध पीना, चूसना । चोखनि* - स्त्री० चोखनेकी क्रिया ।
चोखा - वि० खालिस, बेमेल; सच्चा, खरा; चतुर; तीखी धारवाला | पु० आलू, बैगन आदिका भरता । चोगद-पु० दे० 'चुराद' ।
चोग़ा - पु० [फा०] लंबा, ढीला-ढाला अँगरखा जिसका आगा खुला होता है (गाउन) ।
चोचला - पु० नखरा, हाव-भाव 1- (ले) बाज़ - वि० नखरेबाज
चोज - पु० चमत्कारपूर्ण उक्ति; व्यंग्यभरी हँसी । चांद-स्त्री० आघात; वार, घात-प्रतिघात, घाव; हिंस्र पशुका आक्रमण; व्यथा; व्यंग्य; बार, दफा; हानि पहुँचाने के लिए चली हुई चाल । -चपेट- पु० घाव, ठेस । मु० - उभरना - चोट खाये हुए अंगका ठंढ लगने आदि से फिर सूज आना, दर्द करना । चोटना पोटना* - स० क्रि० मनाना, फुसलाना । चोटहा - वि० जिसपर चोटका चिह्न हो । चोंट करनेवाला | चोटा-पु० रावके ऊपर उठ आनेवाला शीरा, जूसी । चोटार* - वि० चोट करनेवाला; चोट खाया हुआ । चोटारना* - स० क्रि० चोट करना । चोटिया - स्त्री० चोटी, बालोंकी लट | चोटियाना - स०क्रि० चोट पहुँचाना; चोटी पकड़ना । चोटी - स्त्री० (हिंदुओंके ) सिर के बीचोबीच छोड़ रखे हुए लंबे बाल, शिखा; स्त्रीके सिरके गुंथे हुए और पीठकी ओर या अगल-बगल लटकनेवाले बाल; वह रंगीन डोरा जो चोटी बाँधने के काम आता है; चिड़ियोंके सिरपरकी कलगी; एक गहना जो जूड़े में बाँधकर पहना जाता है; पहाड़का सबसे ऊँचा भाग, शिखर; (ला० ) उत्कर्षकी सीमा । - का - औवल दरजेका, सर्वोत्कृष्ट । -द्वार - वि० चोटी - वाला । मु० - कटाना - बस में होना, गुलाम बनना । - कतरना - बसमें करना, अधीन करना । -करनासिरके बाल सँवारकर गूँथना । - दबना, - हाथमें होना - दबाव में होना, काबू में होना ।
चोटी-पोटी * - वि० चिकनी-चुपड़ी, बनावटी (बात ) | चोट्टा-पु० चोर |
चोद* - पु० चाव, उमंग । चोदक- वि० [सं०] प्रेरक |
चोदना - स० क्रि० संभोग करना । स्त्री० [सं० ] प्रेरणा; प्रवर्तन; विधि, शास्त्रादेश ।
चोप- पु० आमकी ढेपनी तोड़नेसे निकलनेवाला तेजावी रस; * चाह; चाव; उमंग बढ़ावा । स्त्री० दे० 'चोब' | -दार - पु० दे० 'चोबदार' | चोपना * - अ० क्रि० मोहित होना; आसक्त होना । चोपी *वि० चाव, चाह, उत्साह रखनेवाला । स्त्री० आमके मुँह पर से निकलनेवाला रस ।
चोब - स्त्री० [फा०] लकड़ी; डंडा, सोंटा; खेमेका डंडा; ढोल, नगाड़ा आदि बजानेकी लकड़ी; सोना या चाँदी मढ़ा हुआ डंडा, असा -दार पु० असावरदार । चोर - पु० [सं०] चोरी करनेवाला, छिपकर दूसरेकी चीज हथिया लेनेवाला, तस्कर; उचितसे कम काम करने, कम
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