________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१५१
काँजी-काक काँजी-स्त्री० दे० 'कांजी' ।
काँदा-पु. एक गुल्म जिसमें प्याज जैसी गाँठ पड़ती है। कांजी हाउस-पु० [अ० काइन-हाउस] मवेशीखाना, वह | प्याज । बाड़ा जिसमें दूसरेका खेत आदि खानेवाले या लावारिस काँदो*-पु० पंक, कीचड़ । चौपाये बंद किये जाते हैं ।
| काँध*-पु० कंधा; कोल्हू के जाठका ऊपरका भाग। काँट*-१० दे० 'काँटा'।
काँधना*-सक्रि०उठाना; सँभालना;मचानामान लेना। काँटा-पु० पेड़-पौधोंकी टहनियों में निकली हुई सूई जैसी | काँधर*-पु० कृष्ण । पैनी नोकवाली चीज, कंटका लोहेकी लंबी, पतली कील; काँधा*-पु० कृष्ण; कंधा । मछली पकड़नेकी कँटिया; अंकुसोंका समूह जिससे कुएँ में काँधी-स्त्री० कंधा । मु०-देना-टालमटूल करना । गिरे हुए कलश, बालटी आदि निकालते हैं; मछलीकी -मारना-सवारको गिरानेकी गर जसे घोड़ेका झटकेसे बारीक हथियाँ जो खाते हुए गले में चुभती हैं; लोहे-पीतल गरदन फेरना। आदिके तराजूकी डाँडामें बीचो-बीच लगी सुई; सोना-कॉप-स्त्री० कानमें पहननेका एक गहना, करनफूल; चाँदी तौलनेका काटेदार तराजू; घड़ीकी सूई; वह आला| पतली, लचीली तीली; पतंगमें लगायी जानेवाली तीली; जिससे किसान भूसा उठाते हैं। वह क्रिया जिसमे हिसाब- कलईका चूना; हाथीका दाँत; सूअरका खाँग । के सही-गलत होनेकी जाँच की जाय (ग); एक आला | काँपना-अक्रि०हिलना; लरजनाः डरसे हिलना, थर्राना । जिससे यूरोपीय खाना उठाकर खाते हैं; फल आदि तोड़ने- काँपा-पु० बाँसकी पतली तीली । की अँकुसी; झाड़ टांगनेका हुक; नाककी कील । मु० | काय-काय--पु० दे० 'काँव-काँव' । -निकलना-मनका क्लेश, कसक मिटना। -होना- | काँव-काँव-पु. कौवेका शन्द । सूखकर कड़ा हो जाना; सूखकर ठटरीभर रह जाना। काँवर-स्त्री० बाँसका मोटा फट्टा जिसे कंधेपर रखकर और काँटेकी तौल-बिलकुल ठीक, न कम न अधिक । छोरोंपर बंधे छीकों पर चीजें रखकर ढोते हैं, बहँगी। -पड़ना-गले या जीभका प्याससे सूखना । (राहमें)- काँवरि*-स्त्री० दे० 'काँवर'। -बिछाना-बाधाएँ खड़ी करना, रोड़े अटकाना।-बोना काँवरिया-पु. काँवर लेकर चलनेवाला व्यक्ति, काँवारथी । -बुराई करना; भावी अनिष्टका कारण बनना। कॉटौँ- काँवारथी-पु० काँवर लेकर तीर्थयात्रा करनेवाला । पर लोटना-बेचैन होना, तड़पना; ईर्ष्यासे जलना। | काँस-पु० एक लंबी घास जो शरद् ऋतुमें फूलती है । काँटी-स्त्री० छोटा काँटा; कँटिया; अंकुड़ी।
काँसा-पु० ताँबे और जस्तेके मेलसे बनी एक धातु; भीख काँठा*-पु० गला; किनारा; पार्श्व तोतके गलेकी मंडला- माँगनेका खप्पर । -गर-पु० काँसेका काम करनेवाला। कार रेखा।
काँसार-पु० कसेरा। कांड-पु० [सं०] अंश, विभाग; ईख-नरकुल आदिकी पोर; कांस्य-पु० [सं०] ताँबे और जस्तेके मेलसे बनी एक पेड़का तना, वृक्ष-स्कंध; ग्रंथका विभाग, परिच्छेद गुच्छा; धातु.। वि० कासेका बना हुआ। -कार-पु० कसेरा; समूह; शाखा; डंडा; बाण; सरकंडा; डंठल; नाल; हाथ- ठठेरा ।-युग-पु० इतिहासका वह युग जिसमें हथियार, पाँवकी लंबी हट्टी; नली; अवसर; निर्जन स्थान; घटना बरतन आदि काँसेके ही बनते थे। (हत्याकांड)। वि० कुत्सित, खराब (केवल समासांतमें)। का-प्र० संबंध कारककी विभक्ति । * सर्व० क्या। काँड़ना*-स० क्रि० कुचलना-'भट भारी भारी रावरे कै काइयाँ-वि० धूर्त, चालाक। चाउरसे काँडिगो'- कविता, कूटना ।
काई-स्त्री० पानी या सील में रहनेवाले पत्थर आदिपर काँडी-स्त्री० (छाजनमें लगनेवाली) लकड़ीका बला या
जमनेवाली बारीक, रेशे जैसी घास; बँधे पानीके ऊपर बाँस ओखलीका गढ़ा; हाथीका एक रोग जो तलवेमें आनेवाली गोल पत्तियोंकी एक धास; मिट्टीकी तरह जमा होता है; भारी चीजें ढकेलनेका लकड़ीका टंडा; मछ- हुआ मैल; ताँबे-पीतल आदिपर लगनेवाला मोरचा । लियोंका झुंड ।
मु०-छुड़ाना-जमा हुआ मैल छुड़ाना; दुःख-दैन्य दूर कांत-वि० [सं०] प्रिय; मनोरम, शोभन । पु० प्यार करना। -सा फटना-बिखर जाना । करनेवाला, पति; प्रिय व्यक्ति; विष्णु; कृष्ण; चंद्रमा काऊ*-अ० कभी । सर्व० कुछ; कोई । वसंत; कार्तिकेयकुंकुम; एक तरहका लोहा ।-पाषाण- काक-पु० [सं०] कौआ। -चेष्टा-स्त्री० कौए की तरह पु०चुबक । -लोह-पु. कांतसार; इस्पात । -सार- चौकन्ना रहना। -तालीय न्याय-पु० किसी घटनाका पु० एक तरहका लोहा जो दवाके काम आता है। केवल संयोगवश होना ( जैसे ताड़के पेड़के नीचे कौएके कांता-स्त्री० [सं०] प्रिया; पत्नी; सुंदरी स्त्री पृथ्वी । बैठते ही उसके ऊपर ताड़के पके फलका चू पड़ना)। कांतार-पु० [सं०] गहन वन; दुर्गम पथ; विवर, गड्ढा । -दंत-पु० कौएका दाँत; कोई अनहोनी बात (ला०)। कांति-स्त्री० [सं०] सौंदर्य, चमक, दीप्ति; इच्छा; सुंदर -पक्ष-पु० कनपटियोंपर लटकनेवाले बालोंके पट्टे, स्त्री; चंद्रमाकी सोलह कलाओंमेंसे एक; दुर्गा । -सार- जुल्फ । -पाद-पु० छूटे हुए शब्दके लिए पंक्तिके नीचे पु० एक बढ़िया लोहा।
बनाया जानेवाला चिह्न (A) | -पाली-स्त्री० कोयल । काँती*-स्त्री० बिच्छूका डंक; तीव्र व्यथा; छुरी; कैची।। -बंध्या,-वंध्या-स्त्री० एक बच्चा जनकर वंध्या हो काथरि*-स्त्री० गुदड़ी।
जानेवाली स्त्री। -माचिका,-माची,-माता-स्त्री० काँदना-अ० क्रि० रोना-चिल्लाना।
मकोय । १०-क
For Private and Personal Use Only